आंजेलिको फ़्रा
आंजेलिको फ़्रा
| |
पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 324 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | डॉ. भगवतशरण उपाध्याय |
आंजेलिको फ़्रा (1387-1455) मध्यकाल और पुनर्जागरण काल के संधियुग का विख्यात इतालीय चित्रकार। उसका बप्तिस्में का नाम गुइदो और धर्म का नाम जोवानी था। तुस्कानी के विंचियों नगर में उसका जन्म हुआ था और युवावस्था में ही वह पादरी हो गया था। पोप के आवाहन पर वह रोम गया। वहाँ उसे आर्चबिशप का पद प्रदान किया गया, पर उसने उसे अस्वीकार कर दिया। उसकी धार्मिक चेतना में इतना ऊँचा पद धर्मेतर अलंकरण मात्र था। आंजेलिको निर्धनों और आर्तो का परम बंधु था और उनके दु:ख से द्रवित हो वह रो दिया करता था।
आंजेलिको का यह स्वभाव उसके चित्रणों के इतिहास में भी परिलक्षित होता है। जब कभी वह ईसा के प्राणदंड, शूली का चित्रण करता, रो पड़ता। इस प्रकार के उसके चित्रों की संख्या अनंत है। उसने रोम, फ्लोेरेंस आदि अनेक नगरों के गिरजाघरों में भित्तिचित्रण किए। इनसे भिन्न उसके अनेक चित्र फ्लोरेंस की उफ्फीजी गैलरी; पेरिस के ल्व्रुा आदि के संग्रहालयों में सुरक्षित हैं। उसका बनाया एक सुंदर चित्र लंदन में भी है। प्रसिद्ध इतालीय कलावंत चरितकार वसारी और सर चार्ल्स होम्स ने उसकी भूरि भूरि प्रशंसा की है। उसका 'कुमारी का अभिषेक' नामक चित्र असाधारण माना जाता है। खाकानवीसी में वह असामान्य था और अनेक कलासमीक्षकों की राय में वर्णतत्व का ऐसा सफल सक्रिय जानकार दूसरा नहीं हुआ। कहते हैं, आँजेलिको ने एक बार खिंचे खाके में रंग भरकर फिर उसपर कूंची नहीं चलाई, उसे दोबारा छुआ नहीं। वह रोम मेें ही 1455 में मरा।[१]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सं.ग्रं.-दी तुमियाती : फ़्रा आंजेलिको, फ्लोरेंस 1897; आर.एल.डगलस : फ्रा ऐंजेलिको, लंदन 1901; जी.विलियम्सन : फ़्रा ऐंजेलिको, लंदन, 1901।