आंग्ल नॉरमन साहित्य
आंग्ल नॉरमन साहित्य
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 323 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | डॉ. रवींद्रनाथ देव |
आँग्ल-नॉरमन साहित्य रोमन विजय के बहुत पहले आर्यों के कुछ प्रारंभिक कबीले इंग्लैंड के दक्षिण एवं दक्षिण पश्चिम भागों में बस चुके थे। इन कबीलों में पहले तो गॉल तथा ब्राइटन आए, फिर रोमन आए। तत्पश्चात् सैक्सन और डेन आए और अंत में नॉर्मन आए।
इतिहास से हमें लोगों के स्थानांतरण की कथा मालूम पड़ती है। इन स्थानांतरणों के अनेक कारण हैं, लेकिन फिर भी हम उन्हें ढूंढ़ने का प्रयत्न करते हैं और विश्लेषण के बाद हम ऐसे तथ्य पाते हैं जिनकी व्याख्या नहीं की जा सकती। जो लोग शताब्दियों से एक स्थान पर सुख दु:ख झेलते हुए रहते आए हैं वे अचानक विचित्र आकांक्षाओं से प्रेरित होकर बड़े-बड़े पहाड़ों, तीव्रगामी नदियों और वीरान रेगिस्तानों को पार करने के लिए कटिबद्ध हो जाते हैं। इसके पीछे आर्थिक एवं भौगोलिक (ऋतु संबंधी) कारण हैं, किंतु कुछ और भी बातें हैं जो इनसे भिन्न हैं। चंगेज खां की भांति एक बड़ा नेता उठ खड़ा होता है और लोगों में एक नया जोश का दौर आ जाता है। उनमें अस्थिरता हो जाती है। वे अपने पुराने घरों में बैठै-बैठै कुपित और विचलित हो उठते हैं।
यही बात जर्मनिक कबीले के साथ घटी थी। वे योद्धा थे। वे लंबे तड़गे, चौडी हड्डियों तथा नीली आँखों वाले क्रूर व्यक्ति थे। वे रोमन सैन्यदल के विरुद्ध लोहा लेते रहे तथा शताब्दियों के कठिन संग्राम के बाद, अंत में, रोमन प्रतिरक्षा के कवच को भेदते हुए समस्त पश्चिमी यूरोप में फैल गए।
ये भयंकर विजेता तरंगों की भाँति अपने सुनसान और उजाड़ घरों से बाहर की ओर पश्चिम के हरे भरे संसार में आ निकले। जिन्होंने उनका प्रतिरोध किया वे नष्ट हो गए और जिन्होंने उनके प्रभुत्व को स्वीकार किया वे या तो दास थे या गँवार। इसके तुरंत बाद अपनी लंबी काली नावों पर सवार होकर इंगलिश चैनल नामक क्षुब्ध जलरेखा को उन्होंने पार किया और श्येनाक्ष कप्तानों के नेतृत्व में उत्तरी सागर में भी आगे बढ़े। फिर, विशेष नरसंहार के पश्चात् इंग्लैंड की उस जनता पर अधिकार जमाया जो रोमनों के आने के बाद यत्र-तत्र बड़ी असहाय स्थिति में रह गई थी। वे दक्षिण के समृद्ध भागों में, वहाँ के मूल निवासियों को मार भगाकर, जा बसे।
भयानक और हिंस्र होते हुए भी वे व्यवहारत:अपने में एक दूसरे के प्रति काफी निष्ठावान् थे। स्त्रियों के प्रति सम्मान की भावना रखते थे। वस्तुत: सैक्सन घरों में स्त्रियों को बहुत सी सुविधाएँ प्राप्त थीं और इस स्थिति को बदलने में सदियाँ लग गईं।
सैक्सन भूस्वामियों का जीवन अन्यदेशीय वीर युग के भूस्वामियों के जीवन के पर्याप्त समान था। सायंकाल जब कबीलों के सरदार भवनों में बैठकर मोटी रोटियाँ मांस के साथ खाते रहते थे, उसी समय चारण आते और प्राचीन वीरों यथा विडिसिथ और बियोउल्फ की गाथाएँ गाकर सुनाते थे। बियोउल्फ एक शक्तिशाली योद्धा था जो साहसिक अभियानों का अन्वेषी था। राजा राथगर का वह कृपापात्र बना, क्योंकि उन दिनों उसकी रियासत ग्रैडेन नामक दैत्य से आक्रांत थी। इसका कोई साहित्यिक सौष्ठव नहीं था, किंतु इसमें एक शक्ति और अभिव्यक्ति की क्षमता थी तथा आदिम मानवों के गुहाचित्रों की सी स्पष्टता थी। होमर युग की अपेक्षा इसमें अधिक प्रारंभिकता थी। वन्य हिंसक कल्पना होते हुए भी इसमें यत्र तत्र बौद्धिक (स्टोइक) पूर्णता थी। सैक्सन जाति का यह वास्तविक चित्र माना जा सकता है-उस जाति का जो स्वभाव से मनहूस और क्रूरता से चिह्नित थी, जो हँस भी नहीं सकती थी। वे सभी अपने देश की अंधकारयम ठंडी शीत ऋतुओं की याद दिलाते हैं। बियोडल्फ तथा बिडसिथ दोनों उस जाति की महान् गाथाएँ हैं जिनमें कालांतर में अनेक प्रक्षिप्त अंश जुड़ते गए अंत में ईसाकाल में लिखित रूप में आए। इसीलिए इसपर ईसाई भावनाओं का हल्का रंग चढ़ा हुआ है।
किंतु प्रथम आँग्ल - सैक्सन लेखक है एस साधु, केडमन। उसकी कविताएँ बाइबिल से अनूदित हैं। लेकिन उसमें पर्याप्त स्वच्छंदता बरती गई है, क्योंकि केडमन स्वयं लातीनी भाषा से अनभिज्ञ था।
इस समय जो भाषा विकसित हुई थी और जिसे हम आँग्ल-सैक्सन कहते हैं वह जर्मनिक भाषा थी जो वास्तव में जूट्स और फ्रीलैंडर्स कबीलों की भाषा से थोड़ी ही भिन्न थी। केल्टिक भाषा तथा लातीनी और गिरजाघरों की लातीनी के संपर्क में आने पर ही इसमें कुछ परिवर्तन हुआ और शीघ्र ही इसकी संश्लेषणात्मक विशेषताओं को स्थान देना आरंभ हुआ। इसमें मूल धातुएँ तो ज्यों की त्यों रह गई, किंतु उप सर्गादि बदलने आरंभ हो गए।
आँग्ल-सैक्सन साहित्य कविताओं से समृद्ध था जिनमें से अधिकतर मौखिक होने के कारण नष्ट हो गए और कुछ काल के थपेड़ों में बह गए, किंतु बची खुची कविताएँ अपनी विशेषताओं का परिचय देती हैं। इसमें केवल भव्यता थी, छंद संबंधी उसके प्रयोग बलाघातयुक्त एवं श्लेषात्मक होते थे। इसमें योगिक शब्दों का प्रयोग होता था। किंतु इसमें एक दुर्लभ स्पष्टता एवं सादगी वर्तमान थी, यद्यपि वह गीतिमयता एवं भव्यता से रहित होती थी।
आँग्ल - सैक्सनों का अपना कुछ गद्य साहित्य भी था। यह मुख्यत: तथ्यकथन के रूप में था और राजा अलफ्रेड महान् की कृतियाँ भी इसमें सम्मिलित थीं। सन् 1066 में एक घटना घटी जिसने इंग्लैंड के भाग्य को बदल दिया। विजेता विलियम, जो नार्मनों का सरदार तथा मूलत: जर्मनिक कबीले का था, अपने बंधुओं से विलग हो गया, क्योंकि उन्होंने लातीनी संस्कृति अपना ली थी। अत: वह सामने आया और इंग्लैंड की जीत लिया। इनकी भाषा नॉर्मन-फ्रेंच थी और लगभग 14वीं सदी के अंत तक फ्रांसीसी कुलीनों एवं राजदरबारों की भाषा बनी रही। 15वीं सदी बाद तक अधिकतर अंग्रेज, जो संयुक्त रूप से उस समय नॉर्मन और सैक्सन थे, फ्रांसीसी तथा अंग्रेजी दोनों का उपयोग करते थे।
1300 से 1400 तक अंग्रेजी भाषा में अनेक त्वरित परिवर्तन हुए। असभ्यों एवं बदमाशों की भाषा से बदलकर यह पार्लियामेंट की भाषा बनी और अंत में एलिजाबेथ युग के पूर्व में हुए महान् कवि चॉसर की भी यही भाषा थी। चॉसर को निश्चित रूप से कुछ साहित्यिक रूपों को अंतिम आकार देने का श्रेय है, यद्यपि ये रूप किसी न किसी रूप में वर्तमान थे। चॉसर ने कोई नई भाषा नही गढ़ी, केवल लंदन की भाषा पर अपनी निजी छाप लगा दी।
चॉसर-पूर्व-पद्यों की तिथि निश्चित करना कठिन है। उनमें से कुछ तो पांडुलिपियों के रूप में वितरित किए गए थे और कुछ स्मृति एवं मौखिक पाठ के आधार पर चल रहे थे। इससे कोई इतना सोच सकता है कि ये पद्य अधिकतर 13वीं सदी में और मुख्यत: उस सदी के उत्तरार्ध में लिखे गए थे। कभी कभी हम उसके अप्रत्याशित सौंदर्य के एक गीत में आश्चर्यजनक ताजगी का अनुभव करते हैं। जैसे-
Summer is a comen in londe sing cuckoo
(कोयल गाती है कि धरती पर ग्रीष्म आ रहा है)
कुछ तो आँग्ल-सैक्सन कल्पना के निबिड़ अंधकार से बिलकुल ही भिन्न हैं। यही कुछ ऐसी वस्तु है जो नॉर्मनों ने इंग्लैंड को दी-वह था जीवनोल्लास और थी निरीक्षण एवं मूल्याँकन की क्षमता। केल्टिक कल्पना तथा रहस्यवाद से सैक्सन रीतिबद्धता और घनत्व का मेल और फिर नॉर्मनों की जीवन के शिवतत्वों के प्रति प्रेमभावना का अनुलेप-यही कुछ ऐसी चीजें हैं जो इंग्लैंड के साहित्य को इतना महान् बना देती हैं। यह सब कुछ बहुत निष्प्राण रूप में आया है, फिर भी इसमें अंग्रेजों के स्वभाव के वे प्रमुख गुण अभिव्यक्त हैं जो उनके साहित्य में प्रतिबिंबित होते हैं।
नॉर्मनों तथा सैक्सनों के पारस्परिक विलयन की प्रारंभिक अवस्था में दोनों के साहित्य कुछ एक दूसरे से पृथक् थे अथवा कहा जा सकता है कि बड़े भद्दे तौर पर मिले थे। किंतु विलियन के पूर्ण होने के तुरंत बाद ही काफी संख्या में लंबी कविताएँ लिखी गई। पुरानी केल्टिक गाथाएँ ,जो राजा आर्थर से संबंधित थीं, फ्रांसीसी भाषा में महान् आर्थर संबंधी स्वच्छंदतावादी साहित्य बन गई। सर गवायन और 'हरित योद्धा' (ग्रीन नाइट) जैसी रोमानी अथवा 'मोती' जैसी सुंदर कोमल विषय वस्तुवाली एवं करूणापूर्ण कविताएँ पढ़कर कोई भी यह अनुभव करता है कि इन कविताओं के, विशेषत: आर्थर संबंधी रोमानी कथाओं के माध्यम से एक नए ढंग की राष्ट्रीयता अभिव्यक्त की जा रही है। राजा आर्थर एक राष्ट्रनायक का रूप धारण कर लेता है। केवल राजा आर्थर के धुंधले राष्ट्रनायकत्व में ही हम कोमलता एवं गहराई की भावना से ओतप्रोत नहीं होते बल्कि रिचर्ड रोल के गीतों में भी हम एक नई जिंदादिली ग्रहण कर सकते हैं। रिचर्ड रोल इंग्लैंड के मध्यकालीन रहस्यवादियों में सबसे बड़ा था। वह 1350 में चल बसा।
अधिकांश लेखक उत्तर के अथवा मरसिया के थे। किंतु अब हम लंदन के अभ्युदय का धन्यवाद दिए बिना न रहेंगे। लंदन की भाषा प्रमुख हो चली और यहाँ इन कवियों के नाम उल्लेखनीय समझे जाएँगे: लैग्लैंड, गोवर और चॉसर। ये सभी समसामयिक थे। यद्यपि लैग्लैंड अधिक वयस्क था, तथापि वह गोवर और चॉसर से अधिकतर मिलता रहा होगा, क्योंकि लंदन उस समय अल्प विस्तृत और घनी आबादीवाला प्रदेश था। कवि के रूप में लैग्लैंड ने बहुत कुछ खोया। उसकी मौलिक प्रतिभा एवं महानता लुप्त हो चुकी थी, क्योंकि जान पड़ता है, उसकी पांडुलिपियाँ बहुत हाथों में पड़ी, इससे कविताओं के मौलिक रूप नष्ट हो गए और अब कोई बहुत दक्ष संपादक ही उनको अंतिम शुद्ध रूप देने की आशा कर सकता है, क्योंकि ध्यानपूर्वक पढ़ने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि कवि अपनी रचनाओं में सर्वागपूर्ण था और उन पुनरूक्तियों और व्यर्थ की कवित्वहीन पंक्तियों से सर्वथा रहित था जिन्हें बाद को लोगों ने जोड़ दिया था।
दूसरा दोष यह था कि उसने आँग्ल-सैक्सन छंदों को, उसकी श्लेषात्मकता और बलाघात के साथ ग्रहण कर लिया था। उसने ऐसा बहुत कम अनुभव किया कि आँग्ल-सैक्सन भाषा की प्राचीन विशेषताएँ मृतप्राय हो रही थीं इसलिए भाषा की रूपसज्जा में आपातत: परिवर्तन आवश्यक था। और यदि उनका साहित्य आज उतना नहीं पढ़ा जाता जितना पढ़ा जाना चाहिए (क्योंकि रूढ़िवादी आवरण के साथ उसमें तीक्ष्ण व्यंग्य है), तो उसका कारण केवल उनके छंद हैं जो पाठकों को अपनी सामान्य पहुँच के बाहर प्रतीत होते हैं। उनकी श्लेषात्मकता में गति भरने और गौरव लाने की शक्ति नहीं है।
गोवर में हमें ऐसी काव्यात्मकता का दर्शन होता है जो थोड़ी गंभीर है। लातीनी, फ्रांसीसी और अंग्रेजी, तीनों में इसकी अच्छी गति थी। ध्यान देने योग्य मुख्य बात यह है कि वह अपनी ही मातृभाषा अंग्रेजी में, जो कि उस समय इन तीनों में सबसे अशक्त थी, विश्वस्त नहीं प्रतीत होता है। यद्यपि इसकी अंग्रेजी शैली चॉसर की भांति प्रसाद एवं लालित्यपूर्ण नहीं है तो भी सरल है और यदि वह 'नैतिक' धारणाओं से थोड़ा बहुत ग्रस्त होता तो वैसी ही अच्छी रचनाएँ दे सकता था।
फिर भी चॉसर का एक अलग ही संसार था। वह शायद लैग्लैंड से बहुत छोटा था, किंतु लगता है कि वह एक अलग ही दुनिया में रहता था। लैग्लैंड एक उत्प्रेरित मध्यकालीन कवि था और चॉसर में आधुनिक साहित्य की पहली वास्तविक आवाज थी। सचमुच यह एक दीर्घ प्रशिक्षणकाल था जिसमें उसने फ्रांसीसी पद्य के परंपरागत स्वच्छंदतावाद का अनुसरण किया। फ्रांसीसी कवियों, यथा ज्याँ द म्युंग, गिलेम द लारिस (Jean de Mung, Gullame de Lorris) को अनूदित किया। बोकाशियो पेत्रार्क और दांते जैसे महान् इतालीय साहित्यकों के पथ पर चला। किंतु इन औपचारिक रचनाओं में भी कुछ ऐसी बातें थीं जो कवि की भावी महानता प्रकट करती थीं। केवल इतना ही नहीं था कि वह फ्रांसीसी पद्य के नमूने पर आठ मात्राओंवाले पद्य सरलतापूर्वक गढ़ लेता था बल्कि यत्र तत्र किसी प्रकार का निरीक्षण अथवा बिंब यह भी बताते थे कि आगे कौन सी चीज विकसित होनेवाली है। लेकिन कैंटरबरी टेल्स की भांति मूल्यवान् सामग्री इनमें अप्राप्य थी। यह आधुनिक काल की सर्वप्रथम प्रामाणिक चीज थी। उसका एक अंश ही कवि की प्रतिभा का द्योतक है। कैंटरबरी की तीर्थयात्रा के लिए यात्रियों की एक दल में इकट्ठे होने जैसी एक सामान्य घटना बहुत साधारण सी प्रतीत होती है, जो मध्यकालीन अंग्रेज तीर्थयात्रियों के लिए स्वाभाविक भी थी, किंतु ऐसे विषय का यह एक सुंदर चयन तथा उत्कृष्ट कला का उदाहरण है। केवल एक ही झोंके में चॉसर ने मध्यकालीन इंग्लैंड के जीवन का एक महत्वपूर्ण अंश लेकर और उसमें स्वाभाविकता तथा नाटकीयता का नियोजन करते हुए आधुनिक युगीन ढंग से उसे अपनी निराली शैली में उद्घाटित किया।
इसमें चॉसर ने बड़ा भव्य संसार चित्रित किया है। इन तीर्थयात्रियों में ऐसे स्त्री पुरूष हैं जो अपनी एक सच्ची प्रतिकृति (टाइप) रखते हैं और वे स्वयं अपने आप भी वैसी ही दृढ़ता के साथ सच्चे हैं। यह एक आदर्श मिश्रण है जिसमें सम्मानित योद्धा, सुशीला प्रियोरेस (Prioress), चालाक चिकित्सक बाथ की बहुविवाहिता वाचाल पत्नी, बहस करनेवाला 'रसोइया', नीच अफसर (रीव), बादमाश, घृणित 'सम्मन तामील करनेवाला', 'मस्त फ्रायर' अथवा आक्सेन फोर्ड का क्लार्क, सच्चे विश्वास से दीप्त नि:सृत उद्ववेग, सभी घुले मिले हैं। वैविध्य का कितना सुंदर सामंजस्य है जो समस्त मध्यकालीन इंग्लैंड के समाज को ऐसी स्पष्टता के साथ चित्रित करता है जो सदैव अमर रहेगा।
चॉसर की सफलता के कौन से कारण हैं? उत्तर में कहा जाएगा, उसकी महान् प्रतिभा। किंतु महान् प्रतिभा एक बड़ा गोलमोल शब्द है। इसमें असंख्य गुणों का समावेश है जो हर नई पीढ़ी के महान् प्रतिभा संबंधी गुणों की कल्पना से एकदम उसी रूप में मेल नहीं खाते। महान् प्रतिभा अपनी किरणें भविष्य के गर्भ में फेंकती है और उसका संदेश इस भांति संप्रेषित होता है कि लोग उसे पूरे तौर से समझ नही पाते। इसलिए चॉसर ने अपने समसामयिकों के विपरीत जनता की भाषा अपनाई, किंतु नए छंद का चुनाव जनरुचि से विपरीत था। उसने सर्वप्रथम फ्रांसीसी कवियों का अनुकरण किया और आठ मात्रावाली द्विपदियों को सरलतापूर्वक लिखा। किंतु उसे मालूम था कि यह अंग्रेजी के अनुकूल नहीं पड़ता, क्योंकि इस प्रकार की लघु माप फ्रांसीसी भाषा की प्रतिभाओं के ही अनुकूल है, और क्योंकि उसकी ध्वनि में संबद्धता तथा एक स्वर के लोप का अधिक्य है। किंतु आँग्ल-सैक्सन पृष्ठभूमि के नाते अंग्रेजी में गति लाने के लिए कुछ अधिक स्थान की आवश्यकता रहती है। चॉसर ने पेंटामीटर नामक छंद दिया जो अंग्रेजी पद्य की बड़ी उपलब्धि है।
नॉर्मनों ओर सैक्सनों का पारस्परिक विलयन सर्वप्रथम चॉसर में ही परिलक्षित होता है। वस्तुत: यही अंग्रेजी का आदिकवि हैं जिसने उस काल की नई भाषा अंग्रेजी में अपने गीत गाए।
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