पीरी क्यूरी

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लेख सूचना
पीरी क्यूरी
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 195
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक सत्यप्रकाश

पीरी क्यूरी का जन्म 15 मई, 1859 ई. को पेरिस में हुआ था। उन्होंने सारबान में शिक्षा प्राप्त की और वहीं वे भौतिकविज्ञान के अध्यापक बने। उनके आरंभकालिक शोधों में महत्वपूर्ण शोध था कि वस्तुओं के चुंबकत्व गुण एक निश्चित तापमान पर पहुँचकर बदल जाते हैं। इस तापमान को क्यूरी बिंदु (क्यूरी प्वाइंट) की संज्ञा दी गई।

सरवान में मारी का क्यूरी से परिचय हुआ और 1895 ई. में दोनों विवाहसूत्र में बँध गए और अब सम्मिलित रूप से अनुसंधान करने लगे। लगभग उन्हीं दिनों रंट्जने ने एक्सरे का आविष्कार किया था और हेनरी बेकरेल ने यह देखा कि यदि कुछ रासायनिक यौगिकों को अँधेरे में रखा जाए तो भी उनमें से ऐसी किरणें निकलती हैं जो काले कागज में बंद फोटोग्राफी के प्लेट को प्रभावित कर सकती हैं। उन्होंने यूरेनियम के रेडियोधर्मी गुण को पहचाना। इस प्रकार रेडियोधर्मी पदार्थों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित हुआ। मारी और पीरी ने भी अनेक यौगिकों के परीक्षण आरंभ किए। उनका ध्यान सहसा एक खनिज की ओर गया जिसे पिचब्लेंड कहते हैं। मारी ने पिचब्लेंड का रासायनिक विश्लेषण आरंभ किया और बड़े अध्यवसाय और परिश्रम के अनंतर 1898 ई. में उन्होंने पिचब्लेंड में से दो तत्व प्राप्त किए। एक तत्व का नाम उन्होंने अपनी जन्मभूमि के नाम पर पोलोनियम रखा और दूसरे का रेडियम। उनकी इस शोध पर उन्हें डाक्टर की उपाधि मिली तत्पश्चात्‌ क्यूरी दंपति ने रेडियों के गुणों की व्याख्या की दिशा में काफी कार्य किया। इस प्रकार उन्होंने आणविक भौतिक एवं रसायन संबंधी शोध की नींव डाली। रेडियम से निकली तीव्र किरणों द्वारा त्वचा संबंधी अनेक रोगों की सफल चिकित्सा की जा सकती है (देखिए रेडियम)।

1903 ई. में क्यूरी दंपति को रायल सोसाइटी का पदक प्राप्त हुआ और उसी वर्ष उन्हें हेनरी बेकरेल के साथ भौतिक विज्ञान का नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ। उन्हें नोबेल पुरस्कार उनके रेडियों किरणों की क्रिया (रेडियो एक्टीविटी) के लिए दिया गया था।

पीरी क्यूरी 1905 ई. में अकादमी ऑव साइंस में निर्वाचित हुए किंतु 19 अप्रैल, 1906 ई. को एक दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई। पीरी की मृत्यु के अनंतर मारी उनके स्थान पर पेरिस विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बनीं। 1911 ई. में उन्हें दुबारा नोबेल पुरस्कार मिला। इस बार उन्हें रसायनविज्ञान के अंतर्गत रेडियम की खोज और उसके गुणों के अध्ययन के लिये पुरस्कार दिया गया। इस प्रकार वह पहली व्यक्ति हैं जिन्हें यह पुरस्कार दो बार प्राप्त होने का सम्मान मिला है।

मारी क्यूरी ने अपने जन्मस्थान में रेडियो-सक्रियता की शोध के लिये अनुसंधानशाकला स्थापित की। 1921 ई. में संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति वारेन हार्डिग ने अपने देश की महिलाओं की ओर से उन्हें उनकी सेवाओं के उपलक्ष्य में एक ग्राम रेडियम भेंट किया। जब वे 1929 ई. में दुबारा अमरीका गई तो राष्ट्रपति हूवर ने उन्हें उनकी वारसा की अनुसंधानशाला के लिए रेडियम खरीदने के लिए 50 हजार डालर भेंट किया।

क्यूरी दंपति के समान ही उनकी बेटी आइरनी और दामाद को भी 1935 ई. में कृत्रिम रेडियोधर्मी तत्व की खोज के लिये नोबेल पुरस्कार मिला।

4 जुलाई, 1934 ई. को मारी की मृत्यु हौटे सेवाय के सैनाटोरियम में हुई।[१]



टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. परमेश्वरीलाल गुप्त