ब्रजनारायण चकबस्त

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लेख सूचना
ब्रजनारायण चकबस्त
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4
पृष्ठ संख्या 150
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक रामप्रसाद त्रिपाठी
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक रजिया सज्जाद ज़हीर

चकबस्त, ब्रजनारायण ये प्रसिद्ध तथा सम्मानित कश्मीरी परिवार के थे। यद्यपि इनके पूर्वज लखनऊ के निवासी थे तथापि इनका जन्म फैजाबाद में सन्‌ 1882 ई. में हुआ था। इनके पिता पं. उदित नारायण जी इनकी अल्पावस्था ही में गत हो गए। इनकी माता तथा बड़े भाई महाराजनारायण ने इन्हें अच्छी शिक्षा दिलाई, जिससे ये सन्‌ 1907 ई. में वकालत परीक्षा में उत्तीर्ण होकर सफल वकील हुए। ये समाजसुधारक थे और सेवाकार्यो में सदा संनद्ध रहा करते थे। उर्दू कविता भी करने लगे थे और शीघ्र ही इसमें ऐसी योग्यता प्राप्त कर ली कि उर्दू के कवियों की प्रथम पंक्ति में इन्हें स्थान मिल गया। एक मुकदमे से रायबरेली से लौटते समय 12 फरवरी, सन्‌ 1926 ई. को स्टेशन पर ही फालिज का ऐसा आक्रमण हुआ कि कुछ ही घंटों में इनकी मृत्यु हो गई। इनकी मृत्यु से उर्दू भाषा तथा कविता को विशेष क्षति पहुँची।

चकबस्त लखनऊ के व्यवहार आदि के अच्छे आदर्श थे। इनके स्वभाव में ऐसी विनम्रता, मिलनसारी, सज्जनता तथा सुव्यवहारशीलता थी कि ये सर्वजन प्रिय हो गए थे। धार्मिक कट्टरता इनमें नाम को भी नहीं थी। इन्होंने पूर्ववर्ती कवियों की उर्दू कविताएँ बहुत पढ़ी थी और इनपर अनीस, आतिश तथा गालिब का प्रभाव अच्छा पड़ा था। उर्दू में प्राय: कविगण गजलों से ही कविता करना आरंभ करते हैं परंतु इन्होंने नज्म द्वारा आपनी कविता आरंभ की और फिर गज़ले भी ऐसी लिखीं जो उर्दू काव्यक्षेत्र में अपना जोड़ नहीं रखती। इनकी कविता में बौद्धिक कौशल अधिक है अर्थात्‌ केवल सुनकर आनंद लेने योग्य नहीं है प्रत्युत्‌ पढ़कर मनन करने योग्य है। इन्होंने अपने समय के नेताओं के जो मर्सिए लिखे हैं उन्हें पढ़ने से पाठकों के हृदय में देशभक्ति जाग्रत होती है। दृश्यवर्णन भी इनका उच्च कोटि का हुआ है और इसके लिये भाषा भी साफ सुथरी रखी है। इनकी वर्णनशैली में लखनऊ की रंगीनी तथा दिल्ली की सादगी और प्रभावोत्पादकता का सुंदर मेल है। उपदेश तथा ज्ञान की बातें भी ऐसे अच्छे ढंग से कहीं गई हैं कि सुननेवाले ऊबते नहीं। पद्य के सिवा गद्य भी इन्होंने बहुत लिखा है, जो 'मुजामीने चकबस्त' में संगृहीत हैं। इनमें आलोचनात्मक तथा राष्ट्रोन्नति संबंधी लेख हैं जो ध्यानपूर्वक पढ़ने योग्य है। गंभीर, विद्वत्तापूर्ण्‌ तथा विशिष्ट गद्य लिखने का इन्होंने नया मार्ग निकाला और देश की भिन्न भिन्न जातियों में तथा व्यवहार का संबंध दृढ़ किया। 'सुबहे वतन' में इनकी कविताओं का संग्रह है। इन्होंने 'कमला' नामक एक नाटक लिखा है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ