चरक

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ११:०६, ११ फ़रवरी २०१७ का अवतरण ('{{लेख सूचना |पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4 |पृष्ठ स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
लेख सूचना
चरक
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4
पृष्ठ संख्या 165
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक रामप्रसाद त्रिपाठी
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक अत्रि देव विद्यालंकार

चरक चरकसंहिता आयुर्वेद में प्रसिद्ध है। इसके उपदेशक अत्रिपुत्र पुनर्वसु, ग्रंथकर्ता अग्निवेश और प्रतिसंस्कारक चरक हैं।

प्राचीन वाङ्‌मय के परिशीलन से ज्ञात होता है कि उन दिनों ग्रंथ या तंत्र की रचना शाखा के नाम से होती थी। जैसे कठ शाखा में कठोपनिषद् बनी। शाखाएँ या चरण उन दिनों के विद्यापीठ थे, जहाँ अनेक विषयों का अध्ययन होता था। अत: संभव है, चरकसंहिता का प्रतिसंस्कार चरक शाखा में हुआ हो।

चरकसंहिता में पालि साहित्य के कुछ शब्द मिलते हैं, जैसे अवक्रांति, जेंताक (जंताक - विनयपिटक), भंगोदन, खुड्डाक, भूतधात्री (निद्रा के लिये)। इससे चरकसंहिता का उपदेशकाल उपनिषदों के बाद और बुद्ध के पूर्व निश्चित होता है। इसका प्रतिसंस्कार कनिष्क के समय 78 ई. के लगभग हुआ।

त्रिपिटक के चीनी अनुवाद में कनिष्क के राजवैद्य के रूप में चरक का उल्लेख है। किंतु कनिष्क बौद्ध था और उसका कवि अश्वघोष भी बौद्ध था, पर चरक संहिता में बुद्धमत का जोरदार खंडन मिलता है। अत: चरक और कनिष्क का संबंध संदिग्ध ही नहीं असंभव जान पड़ता है। पर्याप्त प्रमाणों के अभाव में मत स्थिर करना कठिन है।



टीका टिप्पणी और संदर्भ