सर विंसटन ल्योनार्ड स्पेंसर चर्चिल
सर विंसटन ल्योनार्ड स्पेंसर चर्चिल
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4 |
पृष्ठ संख्या | 174 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | रामप्रसाद त्रिपाठी |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | गिरिराज काोिर गहराना |
चर्चिल, सर विंसटन ल्योनार्ड स्पेंसर अंग्रेज राजनीतिज्ञ। जन्म 30 नवंबर, 1874 को, आक्सफोर्ड शायर के ब्लेनहिम पैलेस में। इनके पिता लार्ड रेनडल्फ चर्चिल थे, माता जेनी न्यूयार्क नगर के लियोनार्ड जेराम की पुत्री थीं। इनकी शिक्षा हैरी और सैंहर्स्ट में हुई। 1895 में सेना में भरती हुए और 1897 में मालकंड के युद्धस्थल में तथा 1898 में उमदुरमान के युद्ध में भाग लिया। इन यद्धों ने उन्हें दो पुस्तकों - दि स्टोरी ऑव मालकंड फील्ड फोर्स (1898) और दि रिवर वार (1899) - के लिये पर्याप्त सामग्री प्रदान की। दक्षिणी अफ्रीका के युद्ध (1899-1902) के समय वह मार्निग पोस्ट के संवाददाता का कार्य कर रहे थे। वे वहाँ बंदी भी हुए, परंतु भाग निकले। उन्होंने अपने अनुभवों का उल्लेख 'लंदन टु लेडीस्मिथ वाया प्रिटोरिया' (1900) में किया है।
1900 में ओल्डहेम निर्वाचनक्षेत्र से संसत्सदस्य निर्वचित हुए। यहाँ पर वह काफी तैयारी के बाद भाषण किया करते थे। अत: आगे चलकर वादविवाद की कला में वह विशेष निपुण हुए। इनको अपन पिता के राजनीतिक संस्मरणों का काफी ज्ञान था। इसीलिये इन्होंने 1906 में 'लाइफ ऑव लार्ड रेवडल्फ चर्चिल' लिखी जो अंग्रेजी की सर्वोत्तम रुचिकर राजनीतिक जीवनियों में गिनी जाती है। 1904 में चेंबरलेन की व्यपारकर नीति से असंतुष्ट होकर चर्चिल लिबरल दल में सम्मिलित हुए और कैंपबेल बैनरमैन (1905-1908) के मंत्रिमंडल में वे उपनिवेशों के अधिसचिव नियुक्त हुए। 1908 में वे मंत्रिमंडल में व्यापारमंडल के सभापति के नाते सम्मिलित हुए। 1909 से 11 तक वे गृहसचिव रहे। औद्योगिक उपद्रवों को सँभालने में असमर्थ होने के कारण उन्हें जलसेना का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। इस पद पर उन्होंने बड़ी लगन और दूरदर्शिता से कार्य किया और यही कारण है कि 1914 में जब युद्ध प्रारंभ हुआ तो ब्रिटिश जलसेना पूर्ण रूप से सुसज्जित थी। वे जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा के समर्थक थे। जब उदारवादी सरकार का पतन हुआ तो उन्होंने राजनीति को त्याग युद्धस्थल में प्रवेश किया। 1917 में लायड जार्ज के नेतृत्व में वे युद्ध तथा परिवहन मंत्री हुए। लायड जार्ज से उनकी अधिक समय तक न पटी और 1922 में वे सदस्य भी निर्वाचित नहीं हुए।
1924 में वे एपिंग से संसत्सदस्य निर्वाचित हुए और स्टैंन्ली बाल्डविन ने उन्हें कंजरवेटिव दल में पुन: सम्मिलित होने के लिये आमंत्रित किया। 1929 में उनका बाल्डविन से भारत के संबध में मतभेद हो गया। चर्चिल भारत में ब्रिटिश-साम्राज्य-सत्ता का किसी प्रकार का भी समर्पण नहीं चाहते थे। 9 वर्ष तक वे मंत्रिमंडल से बाहर रहे। परंतु संसत्सदस्य तथा प्रभावशाली नेता होने के कारण वे सार्वजनिक प्रश्नों पर अपने विचार स्पष्ट करते रहे। इन्होंने हिटलर से समझौता की नीति का खुला विरोध किया। म्यूनिख समझौते को बिना युद्ध की हार बताया। वे इंग्लैंड को युद्ध के लिये तैयार करना चाहते थे और इसके लिये सोवियत संघ से तुरंत समझौता आवश्यक समझते थे। प्रधान मंत्री चैंबरलेन ने इनके दोनों सुझावों को अस्वीकार कर दिया।
3 सितंबर, 1939 को ब्रिटेन ने जब युत्र की घोषणा की तो चर्चिल को जलसेनाध्यक्ष नियुक्त किया गया। मई, 1940 में नार्वे की हार ने ब्रिटिश जनता में चैंबरलेन के प्रति विश्वास को डिगा दिया। 10 मई को चैंबरलेन ने त्यगपत्र दे दिया और चर्चिल ने प्रधान मंत्री पद संभाला और एक सम्मिलित राष्ट्रीय सरकार का निर्माण किया। लोकसभा में तीन दिन बाद भाषण देते हुए उन्होंने कहा कि 'मैं रक्त, श्रम, आँसू और पसीने के अतिरिक्त और प्रदान नहीं कर सकता। उनका युद्धविजय में अटूट विश्वास था, जो संकट के समय प्रेरणा देता रहा। ब्रिटिश साम्राज्य की संयुक्त शक्ति ही नहीं वरन् अमरीका और रूस की शक्तियों का जर्मनों के विरुद्ध सक्रिय रूप से प्रेरित किया।
उनके अथक परिश्रम, विश्वास, दृढ़ता और लगन के कारण मित्र राष्ट्रों की विजय हुई। इस विजय ने उनके लिये नवीन समस्याएँ उत्पन्न कर दीं। बेल्जियम, इटली और यूनान की कथित प्रतिक्रियावादी सरकारों के समर्थन का उनपर आरोप लगाया गया और साथ ही सोवियत संघ से पूर्वी यूरोप के सबंध में मतभद उत्पन्न हो गया 1945 में युद्ध की विजय के उत्सव मनाए गए, परंतु उसी वर्ष के जून के सार्वजनिक निर्वाचन में चर्चिल के दल की हार हुई और उन्हें विरोधी नेत का पद ग्रहण करना पड़ा। जनता जानती थी कि वे युद्ध स्थिति का नेतृत्व कर सकते हैं। आवश्यकता निर्माण की नहीं बल्कि युद्ध के पश्चात् निर्माण की थी। 1945-50 तक वे अपने संसदीय उत्तरदायित्वों के साथ साथ द्वितीय महायुद्ध का इतिहास लिखने में भी व्यस्त रहे। इसको इन्होंने छ: खंडों में लिखा है। 1953 में उन्हें साहित्य सेवा के लिये नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। 1950 के सार्वजनिक निर्वाचन में उनके दल के सदस्यों की संख्या बढ़ी और श्रमदल का बहुमत केवल सात सदस्यों का रह गया। अक्टूबर, 1951 के निर्वाचन में उनके दल की विजय हुई और वह पुन: प्रधान मंत्री नियुक्त हुए। वह विश्वशांति के लिये एकाग्रचित्त होकर प्रयत्नशील रहे उन्होंने अंग्रेजी भाषाभाषियों का एक वृहत् इतिहास अपने विशिष्ट दृष्टिकोण से लिखा है। वृद्धावस्था और अस्वस्थ्य के कारण उन्होंने 5 अप्रैल, 1955 को प्रधान मंत्री के पद से त्यागपत्र दे दिया और इस प्रकार राजनीति से अवकाश ग्रहण किया।
टीका टिप्पणी और संदर्भ