क्रोटन

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १२:१४, ११ फ़रवरी २०१७ का अवतरण ('{{लेख सूचना |पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |पृष्ठ स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
लेख सूचना
क्रोटन
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 223
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक परमेश्वरीलाल गुप्त

क्रोटन भारत और मलय प्रायद्वीप में उत्पन्न होनेवाला यूफारेबाइसी परिवार का एक वृक्ष जिसके बीज से तेल निकाला जाता है। उसके बीज अरंड के बीज के आकार के होते हैं किंतु उसके छिलके पर न तो चित्ती होती है और न चमक। इसके बीज के गूदे में 50 से 60 प्रतिशत तक तेल होता है और गर्म तवे के बीच दाब कर निकाला जाता है। यह तेल चिपचिपा हलका पीलापन लिए होता है और स्वाद में कटु और इसकी गंध असह्य होती है। वह उड़नशील तेलों, कार्बन डाइसल्फाइड, ईथर तथा कुछ सीमा तक अल्कोहल में घुलनशील है। इसमें एसेटिक, व्यूटाइरिक और वेलटिक एसिड होते हैं। इसका मुख्य अंश रेसीन होता है।

इसका प्रयोग दवाओं, मख्यत: पशुओं की दवाओं में होता है। किंतु त्वचा पर प्रयोग करने से तीव्र खुजली होती है और वह सूज जाता है। एक बूँद से भी कम खाने से तत्काल पेचिश हो जाती है, इस कारण यह अत्यंत खतरनाक तेल समझा जाता है।




टीका टिप्पणी और संदर्भ