चारी
चारी
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4 |
पृष्ठ संख्या | 193 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | रामप्रसाद त्रिपाठी |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
चारी नृत्य की विशेष क्रिया। सामान्यत: श्रृंगारोद्दीपक नृत्य क्रिया को चारी कहा जाता है। कुछ लोग विशेष पदविन्यास को ही यह नाम देते हैं। भू और आकाश इसके दो मुख्य भेद हैं।
भूचारी में छब्बीस और आकाशचारी में सोलह क्रियाएँ सनिहित हैं। इन सभी क्रियाओं के लिये संयम और श्रम नितांत अपेक्षित है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ