चित्रगर्दभ
चित्रगर्दभ
| |
पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4 |
पृष्ठ संख्या | 221 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | रामप्रसाद त्रिपाठी |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | सुरेश सिंह कुंअर |
चित्रगर्दभ (जेबरा) घोड़े के आकर के शफवर्गीय स्तनपोषी जीव हैं, जिनके शरीर पर खड़ी खड़ी धारियाँ पड़ी रहती हैं। यह जानवर अफ्रीका में पाया जाता है, जहाँ इसकी तीन जातियाँ मिलती हैं। पहले किस्म के चित्रगर्दभ का वैज्ञानिक नाम इक्वेस जेबरा है, जो अफ्रीका के दक्षिण-पश्चिमी भाग में पाया जाता है, दूसरा इक्वेस बरचली वहाँ के दक्षिण-पूर्वी और तीसरा इक्वेस ग्रेवी उत्तर-पूर्वी भागों में मिलती है। मानव सभ्यता के प्रसार के साथ साथ जेबरों की संख्या दिन प्रति दिन कम होती जा रही है और यदि यही हालत रही तो कुछ दिनों में इनका संसार से एकदम लोप हो जाने की आशंका है।
पहले किस्म के चित्रगर्दभ के खड़े होने पर कंधे तक की ऊँचाई भूमि से चार फुट के लगभग रहती है। इसकी त्वचा सफेद रहती है, जिस पर खड़ी खड़ी काली चौड़ी पट्टियाँ पड़ी रहती हैं। चेहरे का निचला भाग चटक भूरे रंग का रहता है और पेट तथा जंघों के भीतरी भाग के अलावा इसका सारा शरीर धारियों से भरा रहता है। इनमें टाँगों पर की धारियाँ पतली और आड़ी आड़ी रहती हैं। ये इसके खुर तक चली जाती हैं।
दूसरी किस्म के चित्रगर्दभ कद पहले से कुछ ऊँचा होता है, किंतु उसके कान पहले से छोटे रहते हैं। इसके अयाल के बाल पहले से लंबे और दुम उससे घनी रहती है। इसकी सफेद टाँगों को छोड़कर सारे शरीर का रंग हलका बादामी रहता है, जिसपर गाड़ी कत्थई या काली पट्टियाँ पड़ी रहती हैं। इसकी पीठ के पिछले भाग पर की धारियों में पहले की अपेक्षा कुछ भेद रहता है।
तीसरी किस्म का चित्रगर्दभ पहलेवाले ज़ेबरे से कुछ बड़ा और दूसरे से कुछ छोटा होता है। इसके कान प्रथम दोनों से लंबे और सफेद शरीर पर की काली धारियाँ प्रथम दोनों से पतली और घनी रहती हैं।
ज़ेबरों को घोड़ों की तरह पालतू करने का बहुत उद्योग किया गया, किंतु इसमें मनुष्य को बहुत थोड़ी ही सफलता प्राप्त हो सकी। ये इतने जंगली होते हैं कि अनायास ही बुरी तरह काटने की कोशिश करते हैं। इनकी इस आदत को छुड़ाने में मनुष्य को सफलता नहीं मिली। ये बहुत ही भड़कीले जंतु हैं, जिन्हें हिंसक जीवों से अपना बचाव करने के लिये हमेशा चौकन्ना रहना पड़ता है और इतना भारी भरकम शरीर लेकर अपनी आत्मरक्षा के लिये बहुत तेज भागना पड़ता है। इनकी सूँघने और सुनने की शक्ति भी बहुत तेज होती है। इनका मुख्य भोजन घास पात है। ज़ेबरों की खाल काफी कीमती है। इक्वेस बरचली का मांस अफ्रीका के आदिवासी बड़े स्वाद से खाते हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ