एस्कीमो भाषा

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लेख सूचना
एस्कीमो भाषा
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2
पृष्ठ संख्या 261
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक विश्वंभर पांडेय

एस्कीमो भाषा प्रमुख नृवंश-विद्या-विशारदों के अनुसार एस्कीमो जाति रक्त और भाषा की दृष्टि से उत्तरी अमरीकी इंडियन जाति की ही एक शाखा है। ग्रीनलैंड से लेकर सुदूर अलास्का तक एस्कीमो जाति के लोग एक ही भाषा बोलते हैं। अपनी समन्वयात्मक वृत्ति के कारण एस्कीमो भाषा रूपबहुल बन गई है। पूरी तरह अपना काम चलाने के लिए एक एस्कीमो को सामान्यतया 10000 से अधिक शब्दो का ज्ञान होना चाहिए। अँग्रेजी एवं अन्य यूरोपीय भाषाओं की अपेक्षा एस्कीमो भाषा की यह सामान्य शब्दसंख्या कहीं अधिक है। एक-एक एस्कीमो शब्द के अनेक रूप होते हैं। संज्ञावाचक एक शब्द के एस्कीमो भाषा में बहुत भिन्नार्थी रूप मिलेंगे। क्रियावाचक शब्दों के रूप तो सबसे अधिक हैं। इसीलिए एस्कीमों भाषा दुनिया की कठिन से कठिन भाषाओं में से एक मानी जाती है। एस्कीमों और दूसरी अन्य भाषाओं के संबंध में एक खिचड़ी भाषा बन गई है जिसकी शब्दसंख्या तीन सौ से छह सौ तक है। इसमें अधिकतर तो एस्कीमो शब्द ही हैं किंतु कुछ शब्द अँग्रेजी, डच, स्पेनी आदि के भी हैं। बहुधा सैलानी लोग इसी संक्षिप्त खिचड़ी भाषा को एस्कीमो भाषा कहकर पुकारते हैं।

एस्कीमो भाषा में व्यंजनों को ध्वन्यात्मक दृष्टि से कंठ्य, तालव्य, दंत्य और ओष्ठ्य इन चार श्रेणियों में बाँटा जा सकता है। कंठ्य व्यंजनाक्षर के आगे जानेवाला स्वर भी कंठ्य स्वर बन जाता है। कि इस विशेषता के कारण कभी-कभी सुननेवाले को ऐसा प्रतीत होता है कि एस्कीमो भाषा गले पर बल देकर बोली जा रही है, अन्यथा एस्कीमो भाषा का रूप स्पष्ट और सुरीला है। शब्दों का उच्चारण स्वर और व्यंजनों की दीर्घता या रस्वता पर निर्भर करता है। स्वर और व्यंजन कभी दीर्घ हो जाते हैं और कभी ह्रस्व। इस दीर्घता और ह्रस्वता पर ही शब्द का अर्थ निर्भर होता है।

एस्कीमो भाषा का व्याकरण भी शब्दों के लचीले रूप के कारण अत्यंत समृद्ध है। सामान्य क्रिया के लगभग 350 रूप प्रयुक्त होते हैं। यदि द्विवचन, बहुवचन आदि सभी रूपों को ले तो सामान्य संज्ञा के लगभग 150 रूप मिलेंगे। वाक्यरचना आदि के लगभग 250 रूप मिलेंगे। किंतु ऐसा बृहत्‌ रचनाविन्यास होने पर भी एस्कीमो व्याकरण संक्षिप्त और तर्कपूर्ण आधारों पर अवलंबित है। एस्कीमो भाषा में स्त्रीलिंग या पुंल्लिंग का भेद नहीं है। संबंधवाचक रूप संज्ञा के रूपपरिवर्तन में ही व्यक्त हो जाता है।

आखेट और पशुओं से संबंधित शब्दावली की संख्या काफी प्रचुर है। हथियारों और बर्तनों के विविध उपयोगों से संबंधित शब्द भी बहुत अधिक हैं।

मास्को विश्विद्यालय में एस्कीमो-भाषा-विज्ञान एस्कीमो साहित्य के प्रकाशन में स्तुत्य कार्य कर रहा है।[१]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सं.ग्रं.-शाल बिज़र : फ़ोनेटिक स्टडी ऑव दि एस्कीमो लैंग्वेज (1904)