क्वांटम सांख्यिकी

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लेख सूचना
क्वांटम सांख्यिकी
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 253
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक फकीरचंद औलक

क्वांटम सांख्यिकी (Quantum Statistics) भौतिकी में मुख्य रूप से तीन प्रकार की सांख्यिकी का उपयोग होता है। चिरसमत सांख्यिकी (मैक्सबेल- बोल्ट्जमैन सांख्यिकी), बोस-आइंस्टाइन और फर्मी- डिरैक सांख्यिकी। दूसरे और तीसरे प्रकार का सम्मिलित रूप में क्वांटम सांख्यिकी भी कहते हैं, क्योंकि इनमें हम क्वांटम सिद्धांत के द्धारा जटिल समुदायों के गुणधर्मो का अध्ययन करते हैं। क्वांटम सांख्यिकी के आविष्कार के पूर्व चिरसंमत (classical) सांख्यिकी से ही यह कार्य लिया जाता था और इसमें पर्याप्त सफलता भी मिलती थी। परंतु कालांतर में प्रकाश-विद्युत प्रभाव न्यून ताप पर विशेष ऊष्मा, काली वस्तु का विकिरण (black body radiation) विषयक कुछ ऐसे आविष्कार हुए जिनको चिरसंतम भौतिकी भली प्रकार से समझा नही सकी । इस प्रकार क्वांटम सिद्धांत का जन्म हुआ।

क्वांटम सांख्यिकी का आविष्कार भारत के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एस. एन. बोस ने सन्‌ 1924 में किया जब उन्होंने पहली बार प्लैंक का विकिरण नियम सांख्यिकी ढंग से निकाला। गैसीय समुदाय के लिए इसी नियम का प्रसार करते हुए आइंस्टाइन ने बोस-आइंस्टाइन सांख्यिकी नामक सिद्धांत का मौलिक रूप से प्रतिपादन किया। फर्मी और डिरैक ने सन्‌ 1924 में स्वतंत्र रूप से फर्मी -डिरैक सांख्यिकी की नींव, डाली, जो पाउली के अपवर्जन (exclusion) सिद्धांत पर आधारित थी।

समान कणों के किसी समुदाय में सिद्धांतत: कण कण में अंतर कर पाना असंभव है, इसलिए समुदाय का तरंगफलन (wave function) किन्हीं दो कणों के निर्देशांको (coordinates) में सममित (symmetrical) अथवा असममित (asymmetrical) होना चाहिए। इससे विनिमय क्रिया (exchange phenomena) जैसे बहुत से प्रभाव होते हैं, जो कतिपय धातुओं में लौह चुंबकत्च तथा प्रतिलोहचुबकत्व (anti-ferro magnetism) के लिए उत्तरदायी है। विभिन्न कणों को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है जिससे एक प्रकार के समान कणों का समुदाय बोस-आइंस्टाइन-सांख्यिकी के अनुसार होगा और दूसरे प्रकार के समान कणों का व्यवहार फर्मी-डिरैक-सांख्यिकी पर आधारित होगा। वे सब पारमाणवीय नाभिक जिनकी संहतिसंख्या युग्म होती है, बोस-आइंस्टाइन-सांख्यिकी में सम्मिलित हैं (उदहरणत: फ़ोटान, पाओन (pion) के-मेसान (K-meson)) आदि, तथा जिनकी संहतिसंख्या विषम होती है, वे सब फर्मी-डिरैक-सांख्यिकी के अनुसार व्यवहार करते है (उदाहरणत: इलेक्ट्रान, न्यूट्रान, प्रोटान आदि)।

सीमांत दशा में फर्मी-डिरैक, बोस-आइंस्टाइन तथा मैक्स्वेल सांख्यिकी का व्यवहार एक समान होता है। अक्रिय (non-interacting) समान कणों के समुदाय के गुण आदर्श गैस के गुणों से कितने भिन्न होते हैं,

इसका अनुमान हमें p=nh3/g(2pmkT) से मिलता है। इस सूत्र में m= कण की संहति, n= एक घन सम में कणों की संख्या, h= प्लैंक नियतांक, k= बोल्ट्जमैन नियतांक, T= समुदाय का परम ताप और g को हम भारगुणक कहते हैं जिसका मूल्य इलेक्ट्रान के लिए दो और मेसान के लिए तीन है। यदि p का मान एक से कम है (p<1) तो गैस का व्यवहार आदर्श गैस के समान होता है। बोस गैस के लिए p का अधिकतम मान 2.612 है और ऐसा गैस को पूर्णतया अपकृष्ट (degenerate) कहा जाता है। यह बोस -आइस्टाइन सघनन क्रिया से सबंधित है, जो द्रव He4 में 2.19 परम ताप पर होता है। इस परम ताप से निम्न ताप पर इस द्रव के कुछ गुण बड़े अद्भुत है, जैसे अतितरलता (superfluidity)। He3, जो फर्मी-डिरैक-सांख्यिकी का परिपालन करता है, He4 की तरह शून्य परम ताप तक द्रव ही रहता है और 0.08 परम ताप तक अतितरल नहीं बनता। इन दो द्रवों को क्वांटम द्रव कहते है।

फर्मी-डिरैक साख्यिकी में जब p एक से बहुत अधिक बड़ा होता है, तब गैस पूर्णतया अपिकृष्ट कहलाती है। धातुओं में चालन इलेक्ट्रान अपकृष्ट गैस बनाता है। धातुओं के वैद्युत और उष्मीय गुण इसी विधि से भली भाँति समझाए जा सकते है। ऊपर लिखें सूत्र से यह स्पष्ट है कि कोई गैस साधारण ताप पर मैक्स्वल सांख्यिकी के अनुसार व्यवहार करती है, परंतु ज्यों ज्यों उसका ताप कम होता जाता है और उसका दाब बढ़ती जाती है, p का मूल्य बढ़ता जाता है और गैस क्वांटम हो जाता है। एक विशेष श्रेणी के तारों का घनत्व, जिन्हें ह्वाइट ड्वार्फ (white dwarf) तारे कहते हैं, बहुत ही अधिक होता है (उदाहरणत: एक जीव जिसका भार धरती पर एक मन हो, ह्वाइट ड्वार्फ तार पर, यदि वह जीवित रह सके तो, एक लाख मन भार का भी हो सकता है)। ऐसे तारों के द्रव्य का व्यवहार पूर्णतया फर्मी-डिरैक-सांख्यिकी के अनुसार है।

अब तक बोस तथा फर्मी सांख्यिकी का केवल उन गैसों के गुणों के अध्ययन के लिये प्रयोग किया गया जिनके कणों में कोई आकर्षक शक्ति नहीं है और जिनके कण का मान शून्य है। परंतु गत दस-पंद्रह वर्षो से क्वांटम सांख्यिकी की सहायता से उन गैसों का भी अध्ययन किया जाने लगा है जिनके कणों में कुछ आकर्षण शक्ति होती है और जिनके कण कठोर गोले (hard sphere) की भाँति है। आज हमें क्वांटम सांख्यिकी द्वारा निन्न ताप पर धातुओं के गुणों के विषय में पहले से कहीं अधिक ज्ञान है; उदाहरणत;, अतिचालकता (super-conductivity) के विषय में। आशा है कि आगामी कुछ वर्षों में हम इस पथ पर और भी अधिक प्रगति कर सकेंगे।


टीका टिप्पणी और संदर्भ