क्षारीय मृदा

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लेख सूचना
क्षारीय मृदा
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 267
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक फूलदेवसहाय वर्मा

क्षारीय मृदा (Alkaline Earths) प्रारंभ में रसायनज्ञ उन पदार्थों को मृदा कहते थे जो अधातुएँ थीं और जिनपर अत्यधिक ताप का कोई प्रभाव नहीं पड़ता था। इनमें कुछ पदार्थों जैसे चूने के गुण क्षारों के गुणों से बहुत मिलते जुलते थे। इससे उन्होंने उसे क्षारीय मृदा नाम दिया।

क्षारीय मृदा में चूना, स्ट्रॉन्शिया और बाराइटा 1807 ई. तक रासायनिक तत्व समझे जाते थे। डेवी ने पहले पहल प्रमाणित किया कि ये वस्तुत: कैलसियम, स्ट्रॉन्शियम और बेरियम धातुओं के आक्साइड हैं। ये धातुएँ असंयुक्त दशा में नहीं पाई जाती। इनके दो प्रकार के आक्साइड बनते हैं। एक सामान्य आक्साइड, जो उष्माक्षेपण के साथ जल में घुलते हैं और दूसरे पेराक्साइड, जो जल में घुलकर हाइड्राक्साइड [R (OH)2] बनाते हैं और वायु में खुला रखने से कार्बन डाइ आक्साइड का अवशोषण करते हैं। धातुओं के दोनों ही आक्साइड समाक्षारीय होते हैं और अम्लों में शीघ्र घुलकर तदनुकूल लवण बनाते हैं। तत्वों के परमाणुभार की वृद्धि से हाइड्राक्साइडों की विलेयता बढ़ती जाती हैं, पर सल्फेटों की विलेयता घटती जाती है।

ये धातुएँ वायु में खुली रहने से जल्द उपचयित हो जाती है। इनके लवण अच्छे मणिभ बनाते हैं। क्लोराइड और नाइट्रेट जल में शीघ्र घुल जाते हैं, पर कार्बोनेट, फास्फेट और सल्फेट क म घुलते अथवा घुलते ही नहीं।


टीका टिप्पणी और संदर्भ