जॉन ऐडम्स
जॉन ऐडम्स
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 273 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | अवंतीलाल लूंबा |
ऐडम्स, जॉन (1735-1826) प्रसिद्ध विद्वान्, सफल विधिज्ञ तथा संयुक्त राज्य अमरीका के द्वितीय राष्ट्रपति का जन्म 30 अक्टूबर, 1735 को मेसाचूसेट्स के ब्रेनट्री नामक स्थान में हुआ। इनके पिता कृषक थे। उनके ज्येष्ठ पुत्र जॉन क्विन्सी ऐडम्स भी संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति हुए (द्र. 'ऐडम्स, जॉन क्विंसी')।
जॉन ने संविधान विशेषज्ञ के रूप में अपनी समसामयिक घटनाओं को प्रभावित किया। सर्वप्रथम ह्विग दल के नेता के रूप में 1765 के स्टैंप ऐक्ट का विरोध करने में अपनी कर्मठता तथा सक्रियता का परिचय दिया। दिसंबर, 1765 में राज्यपाल तथा परिषद् के समक्ष भाषण देते हुए उन्होंने ब्रिटिश संसद् में मेसाचूसेट्स का प्रतिनिधान न होने के आधार पर स्टैंप ऐक्ट को अवैध घोषित किया। तथापि 1798 में उन्होंने बोस्टन हत्याकांड के अभियुक्त ब्रिटिश सैनिकों का पक्ष लेकर उन्हें बचाने का सफल प्रयास किया। अपनी सत्यनिष्ठा तथा न्यायप्रियता के कारण वह मेसाचूसेट्स लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए।
जॉन ऐडम्स फ़िलाडेल्फ़िया की प्रथम महाद्वीपीय महासभा के निर्वाचित प्रतिनिधि थे। वे स्वतंत्रता की घोषणा करनेवाली समिति के भी सदस्य थे। ऐडम्स नवंबर, 1778 तक कांग्रेस में रहे और इस अवधि में वे वैदेशिक संबंध समिति के सदस्य तथा युद्धसामग्री बोर्ड के अध्यक्ष रहे और अनेक बार यूरोप के विदेशों में उन्होंने स्वदेश का प्रतिनिधान किया।
1785 में ऐडम्स इंग्लैंड के प्रथम राजदूत नियुक्त हुए। क्रांति के उपरांत शांतिकाल की गंभीर स्थिति से उत्पन्न दुर्व्यवस्थाओं ने उनको रूढ़िवादी बना दिया तथापि अपनी रचना संयुक्त राज्य के संविधान के एक प्रतिवाद में वह कुलीन तंत्र के संरक्षक के रूप में प्रकट होते हैं। इस परिवर्तन का उनकी लोकप्रियता पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ा। ऐडम्स पहले संयुक्त राज्य अमरीका के उपराष्ट्रपति, फिर 1796 में राष्ट्रपति चुने गए। वे संघवादी दल के निर्माताओं में से थे। ऐडम्स के राष्ट्रपतित्व काल के चार वर्ष (1797-1801) कुछ ऐसी जटिल और विलक्षण घटनाओं से संबद्ध रहे कि उनके भार से उनका भावी जीवन अत्यधिक विषादमय हो गया। विदेशी तथा राजद्रोह संबंधी कानूनों के पास होने से संघवादी दल को अत्यधिक विरोध और क्षति सहनी पड़ी। स्वयं दल के अंतरंग संगठन में भी पारस्परिक मतभेद तथा दलबंदी प्रारंभ हो गई। ऐडम्स और हैमिल्टन एक दूसरे के विरोधी हो गए। ऐडम्स सुयोग्य, सच्चे तथा निर्भीक व्यक्ति थे परंतु अपनी उग्र व्यावहारिकता तथा विवेकहीनता के कारण अपनी अध्यक्षता में संघवादी दल को संगठित रखने में असमर्थ रहे; यहाँ तक कि इनके अपने मंत्रिमंडल के सदस्य भी ऐडम्स के बजाय हैमिल्टन को अपना नेता मानने लगे।
यद्यपि 1800 में राष्ट्रपति पद के लिए उनको दोबारा मनोनीत किया गया परंतु अपने शक्तिशाली विपक्षी टामस जेफ़र्सन से उन्हें हार खानी पड़ी। अपनी पराजय से उनको गहरी पीड़ा पहुँची। तदुपरांत उन्होंने राजनीति से अपना हाथ खींच लिया और विषादपूर्ण जीवन व्यतीत करते रहे। 4 जुलाई, 1826 को स्वतंत्रता की घोषणा की 50 वी वर्षगाँठ के अवसर पर क्विन्सी नामक स्थान में ऐडम्स का देहावसान हुआ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ