खलीलुल्ला खॉं
खलीलुल्ला खॉं
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 307 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | गफ्रुान बे |
खलीलुल्ला खाँ मुगलकालीन एक प्रमुख राज्याधिकारी। मीरबख्शी असालत खाँ का छोटा भाई और सैफ खाँ का दामाद। जहाँगीर के समय महावत खाँ के विद्रोह में यह कैद हुआ था। शाहजहाँ के राज्य में उन्नति की सीढ़ियाँ चढ़ता सेना के खास भाग का अध्यक्ष नियुक्त हुआ। उसने बड़ी वीरता से शाहजहाँ के आज्ञानुसार कहमर्द और गौरी दुर्गों की विजय की। यह शाहजादा औरगंजेब के साथ बलख पर आक्रमण के लिए गया और उन्नति करता हुआ, अलीमर्दान खाँ अमीर उल उमरा के साथ काबुल का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया। युद्ध के विषय में यह अत्यंत चतुर, वीर और अपनी धुन का पक्का था। शाहजहाँ ने इसी कारण इसे श्रीनगर पर अधिकार करके वहाँ के शासक को अपदस्थ करने के लिए भेजा। वहाँ जाकर इसने चाँदनी के थाने पर अधिकार कर लिया, किंतु वर्षा ऋतु आ जाने के कारण इसे पीछे हटना पड़ा। वह हरद्वार के कराड़ी को चांदनी का शासक नियुक्त करके वापस आया। इस सम्मान में उसे और उच्च पद मिले। 1068 हिज़री में जब शाहजहाँ अस्वस्थ होकर जलवायु परिवर्तन के विचार से आगरा आया तो खलीलुल्ला खाँ को उसने दिल्ली का अध्यक्ष नियुक्त किया।
शाहजहाँ के शासन का अंत होने पर दाराशिकोह ने मीरबख्शी मोहम्मद असीन खाँ को कारागार में डाल दिया और उसके पद पर खलीलुल्ला को नियुक्त किया। दाराशिकोह का अधिक विश्वासपात्र होने के कारण, उसने इसे औरगंजेब के विरुद्ध युद्ध करने के लिए धौलपुर भेजा। इसे सेना के विशिष्ट भाग का अध्यक्ष भी बनाया गया। इसने अत्यंत वीरता के साथ पंद्रह सहस्र सैनिकों को लेकर युद्ध किया।
जब परिस्थितियाँ बदली और इसकी गलत सलाह के कारण दारा की पराजय हुई तब इसके प्रसादस्वरूप औरगंजेब ने इसे अपने पास रख लिया और छह हजारी तथा 6000 सवार का भारी मन्सब देकर उसे दिल्ली से दाराशिकोह का पीछा करने के लिए भेजा। उसने बहादुर खाँ कोका के साथ दाराशिकोह का मुल्तान तक पीछा किया। इसी समय इसे 1069 हिजरी में पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया गया।
औरगंजेब के राज्य के चौथे वर्ष खलीलुल्ला खाँ अपने घर दिल्ली वापस आया और 1662 ई. में (2 रज्जब, सन् 1072 हिजरी को) उसकी मृत्यु हुई। सम्राट औरगंजेब ने इसकी मृत्यु के पश्चात इसके संबंधियों को अच्छे पद और वृत्तियाँ देकर संमानित किया। कहा जाता है, इसका बड़ा भाई असालत खाँ जितनी शांत प्रकृति का था, उतना ही यह खलीलुल्ला उग्र स्वभाव का था।
टीका टिप्पणी और संदर्भ