खान

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लेख सूचना
खान
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 313
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक सैयद अतहर अब्बास रिज़वी

खान यह शब्द कागान अथवा अरर्बी के खाकान से बना है (जिसका संबंध संभवत: चीनी कुआँ से है) और मुसलमानों में सर्वप्रथम 10 वीं शताब्दी ई. में मध्य एशिया के तुर्को के एक वंश इलेकखानों के लिए प्रयुक्त हुआ। 12वीं तथा 13वीं सदी ई. में तुर्क लोग इसका प्रयोग राज्य के सर्वोच्च अधिकारी के लिए किया करते थे। जियाउद्दीन बरनी ने तारीखे-फीरोजशाही में लिखा है, जिस किसी सरखेल के पास दस अच्छे तथा चुने हुए सवार न हों, उसे सरखेल न कहना चाहिए। जिस सिपहसालार के पास उस सरखेल ऐसे न हों जो उसकी आज्ञानुसार अपने परिवार की भी बलि दे दें, सिपहसालार न कहना चाहिए। जिस अमीर के पास प्रबंध करने के लिए दस सिपहसालार न हों उसे अमीर न कहना चाहिए। जिस मलिक के अधीन दस अमीर न हों उस, मलिक को व्यर्थ समझना चाहिए। जिस खान के पास दस मलिक न हों उसे खान नहीं कहा जा सकता। जिस बादशाह के पास दस सहायक तथा विश्वासपात्र खान न हों उसे जहाँदारी (राज्यव्यवस्था) एवं जहाँगीरी (दिग्विजय) का नाम भी न लेना चाहिए। इस प्रकार खान बादशाह के सामंतों को कहा जाता था। मध्य एशिया के मंगोलों के राज्यकाल में सम्राट् को खान तथा चंगेज खाँ के वंशज अन्य शाहजादों को, जो छोटे राज्यों के स्वामी होते थे, सुल्तान कहा जाता था। भारतवर्ष में मुगलों के राज्यकाल में खानेखाना की उपाधि भी दी जाने लगी। बाबर के समय में यह तुर्की बिगलर बेगी का अनुरूप था। सर्वप्रथम बाबर ने दौलत खाँ के पुत्र दिलावर खाँ को खानेखाना की उपाधि प्रदान की थी। इसी प्रकार खानेदौराँ तथा खानेजहाँ की उपाधियाँ भी मुगलों के राज्यकाल में उच्चतम अमीरों एवं सरदारों को प्रदान की जाती थीं।[१]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सं. ग्रं-जियाउद्दीन बरनी : तारीखे फीरोजशाही; बाबरनामा; रिज़वी : आदि तुर्ककालीन भारत, मुगल कालीन भारत- बाबर; एनसाइक्लोपीडिया ऑव इस्लाम, भाग 2।