खुदा
खुदा
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 326 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | परमेश्वरीलाल गुप्त |
खुदा ईश्वर के लिए फारसी शब्द। इसी का अरबी पर्याय अल्लाह है। ईश्वर की अभिव्यक्ति के लिए इस्लाम के अनुयायी खुदा और अल्लाह दोनों शब्दों का प्रयोग करते है। खुदा अथवा अल्लाह (ईश्वर) की व्याख्या इस्लाम के पंडित जीवन (हया), ज्ञान (इल्म), शक्ति (कुद्र), इच्छा (इराद), श्रवण (समअ), दृष्टि (बसर) और वॉक् (कलाम) इन सात बातों के आधार पर इस प्रकार करते है :
जीवन (हया)-ईश्वर का न तो कोई सहयोगी है और न उसके समान है। ईश्वर के सिवा यदि और कोई देवता पृथ्वी या स्वर्ग में रहे भी तो वे नष्ट हो गए। वह निर्विकल्प, अदृश्य, अरूप और अनंत है। वह किसी भौतिक तत्व से नहीं बना है।
ज्ञान (इल्म)-ईश्वर भूत, वर्तमान और भविष्य दृश्य-अदृश्य सबका ज्ञाता है चाहे वह पृथ्वी से संबंधित हो या स्वर्ग से। मनुष्य के मन में क्या है इसे वह जानता है। मनुष्य क्या कहेगा, यह भी उसे कहने के पहले ही मालूम है। वह विस्मृति, उपेक्षा और भूल से परे है। उसका ज्ञान शाश्वत है।
शक्ति (कुद्र)-ईश्वर सर्वशक्तिमान् है। वह मुर्दे को जिला सकता है; पत्थर में प्राण फूँक सकता है, वृक्ष को सचल कर सकता है। स्वर्ग और पृथ्वी को विनष्ट और उनकी पुनर्सृष्टि कर सकता है। उसकी सर्वशक्तिमत्ता पहले भी रही है और आगे भी रहेगी।
इच्छा (इराद)-ईश्वर जो चाहे वह कर सकता है। इसकी इच्छा में अच्छा बुरा सभी कुछ निहित है। आस्तिकों की आस्तिकता और नास्तिकों की नास्तिकता दोनों ही उसकी इच्छा हैं। उसमें इच्छा शाश्वत है।
श्रवण (समअ)-ईश्वर श्रवणरहित होते हुए भी सब सुनता है क्योंकि उसके अवयव मनुष्य सरीखे नहीं हैं।
दृष्टि (बसर)-ईश्वर सभी वस्तुओं को देखता है चाहे वह कितनी ही सूक्ष्म क्यों न हो। उसके मनुष्य के सदृश आँखें नहीं हैं।
वाक् (कलाम)-ईश्वर बोलता है किंतु मनुष्य की तरह जिह्वा से नहीं। ईश्वर का वाक्य एक है; किंतु उसके रूप विभिन्न हैं यथा-अदिश, निषेध, आश्वासन और धमकी। अपने कुछ सेवकों से सीधे बात करता है जैसा कि उसने पर्वत पर मूसा से और मुहम्मद से ज्ञान की रात्रि में किया था। अन्य लोगों से वह ग्रिब्रील के माध्यम से बात करता है। इस प्रकार वह पैगंबरों से बातें करता है। कुरान अल्लाह का कलाम है अत: शाश्वत है।
ईश्वर के इन गुणों की संख्या के प्रति तो इस्लाम में कोई मतभेद नहीं है किंतु उसके स्वभाव और ज्ञान को मनुष्य किस सीमा तक जान सकता है इस संबंध में मतभेद है।
परंपरावादी लोगों का कहना है कि जिस प्रकार सूर्य की रोशनी की ओर देखने पर आँखों के सामने अँधेरा छा जाता है और कुछ दिखाई नहीं पड़ता उसी प्रकार ईश्वर के गुणों की व्याख्या नहीं की जा सकती। अत: मनुष्य उन्हें समझ नहीं सकता। मनुष्य को अपनी धारणाओं पर विश्वास नहीं करना चाहिए, इसीलिये मुहम्मद ने जो कहा है उसे स्वीकार कर लेना चाहिए। ईश्वर के गुणों के संबंध में किसी प्रकार का कोई तर्क नहीं करना चाहिए।
इस संबंध में तार्किकों के तीन संप्रदाय हैं: (1) सिफाती-इन लोगों का कहना है कि ईश्वर के गुण शाश्वत हैं और वे बिना विभेद अथवा परिवर्तन के उनमें अंतर्भूत है। और सारे गुण एक दूसरे से गुथे हुए हैं। यथा जीवन का संबंध ज्ञान से है; ज्ञान का संबंध शक्ति से है। (2) मुतजिली-ये लोग सिफातियों की इस बात को स्वीकार नहीं करते। उनका शाश्वत गुणों में विश्वास नहीं है। उनका कहना है कि इसको स्वीकार करने का अर्थ शाश्वत के अस्तित्व में विविधता स्वीकार करना है। वे सुनने, देखने और बोलने को स्वीकार नहीं करते हैं। वे कहते हैं, ये तो शरीरधारियों के गुण हैं। इन्हें ईश्वर की शक्ति की अभिव्यक्ति को स्पष्ट करने के लिए उसका हाथ मात्र कहा जा सकता है। तीसरा संप्रदाय अशारी लोगों का है। वे गुणों को शाश्वत तो मानते हैं पर उन्हें ईश्वर से सर्वथा भिन्न समझते है। इस प्रकार वे मुतजिली लोगों के विरोधी हैं। उनका कहना है कि ईश्वर के गुण तो हैं पर वे उसके तत्व नहीं हैं; उनसे भिन्न हैं। उनकी भिन्नता ऐसी है कि ईश्वर और उसकी सृष्टि के बीच किसी प्रकार की तुलना हो ही नहीं सकती।
ईश्वर से साक्षात्कार के प्रश्न पर भी इस्लाम के अनुयायियों में काफी मतभेद है। परंपरावादी इसे संभव मानते हैं किंतु मुतजिली ईश्वर को मानव चक्षुओं से देख पाना संभव नहीं समझते।
टीका टिप्पणी और संदर्भ