खेंचरी
खेंचरी
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 331 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | परमेश्वरीलाल गुप्त |
खेचरी योग साधना की एक मुद्रा। इस मुद्रा में चित्त एवं जिह्वा दोनों ही आकाश की ओर केंद्रित किए जाते हैं जिसके कारण इसका नाम खेचरी पड़ा है। इस मुद्रा की साधना के लिए पद्मासन में बैठकर दृष्टि को दोनों भौहों के बीच स्थिर करके फिर जिह्वा को उलटकर तालू से सटाते हुए पीछे रध्रं में डालने का प्रयास किया जाता है इसके लिये जिह्वा को बढ़ाना आवश्यक होता है। जिह्वा को लोहे की शलाका से दबाकर बढ़ाने का विधान पाया जाता है। कौल मार्ग में खेचरी मुद्रा को प्रतीकात्मक रूप में गोमांस भक्षण कहते हैं। गौ का अर्थ इंद्रिय अथवा जिह्वा और उसे उलटकर तालू से लगाने को भक्षण कहते हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ