गंधार कला

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लेख सूचना
गंधार कला
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 350
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक परमेश्वरीलाल गुप्त

गंधार कला ईसा की आरंभिक शताब्दियों में गंधार प्रदेश में जिस कला का विकास हुआ वह भारतीय श्ल्पि शास्त्र में गंधार कला के नाम से प्रख्यात है। इस कला की विषयवस्तु सर्वथा भारतीय, मुख्यत: बौद्ध हैं किंतु उनको जिस शैली में प्रस्तुत किया गया है उस पर यूनानी कला की प्रचुर और कुछ कुछ रोमनी कला की छाप हैं। यह एक प्रकार से भारतीय और यूनानी कला की संकर कला है। धार्मिक होते हुए भी इस कला में आध्यात्मिकता का सर्वथा अभाव है। उसमें पूर्ण लौकिक मांसलता की अभिव्यक्ति हुई है। इस कला का प्रसार गंधार के बाहर मध्य एश्याि में काफी दूर तक था और इस कला के पत्थर और गचकारी (स्टको) में बनी मूर्तियाँ अफगातिस्तान तथा उसके तटवर्ती प्रदेशों में काफी मात्रा में उपलब्ध हुई हैं।


टीका टिप्पणी और संदर्भ