अनार
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अनार
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 115 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1973 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | जयराम सिंह । |
अनार का अंग्रेजी नाम पॉमग्रैनिट, वानस्पतिक नाम प्यूनिका ग्रेनेटम, प्रजाति प्यूनिका, जाति ग्रेनेटम और कुल प्यूनिकेसी है। इसका उत्पत्ति स्थान ईरान है। यह भारतवर्ष के प्रत्येक राज्य में पैदा होता है। बंबई प्रांत में इसकी खेती सबसे अधिक होती है। इसमें चीनी की मात्रा 12 से 15 प्रतिशत तक होती है। इसलिए यह प्राय: मीठा होता है। इसका रस संरक्षण विधि से सुरक्षित रखा जा सकता है। पौधे के लिए जाड़े में विशेष सर्दी तथा ग्रीष्म ऋतु में विशेष गर्मी चाहिए। अधिक वर्षा हानिकारक है। शुष्क वातावरण में यह अधिक प्रफुल्लित तथा स्वस्थ रहता है। अच्छी उपज तथा वृद्धि के लिए दोमट मिट्टी सर्वोत्तम है। क्षारीय मिट्टी भी उपयुक्त होती है।
प्रत्येक जाति के वृक्षों में कुछ न कुछ नपुंसक पुष्प लगा ही करते हैं। मस्केट रड, कंधारी, स्पैनिश रूबी, ढोलका तथा पेपरशेल भारत में प्रचलित किस्में हैं। प्रसारण कृंतन (कटिंग) द्वारा होता है। गूटी तथा दाब कलम (लेयरिंग) से भी पौधे तैयार होते हैं। ये 10 से 12 फुट तक की दूरी पर लगाए जाते हैं। ग्रीष्म ऋतु में तीन तथा जाड़े में एक सिंचाई कर देना पर्याप्त है। एक मन खाद (सड़ा गोबर), एक सेर आमोनियम सल्फेट, चार सेर राख तथा एक सेर चूना मिलाकर प्रति वर्ष, प्रति वृक्ष के हिसाब से जनवरी या फरवरी मास में देना चाहिए। एक वृक्ष से 60 से 80 तक फल मिलते हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ