अली पाशा
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अली पाशा
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 258 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | डॉ. मुहम्मद अज़हर असगर अंसारी |
अली पाशा यह वह उपाधि है जो उस्मानी तुर्क अपने सरदारों को दिया करते थे। इस तरह की उपाधिवाले ओहदेदार कुल नौ हुए हैं। इसी नाम की दूसरी ऐतिहासिक उपाधि मिस्र के प्रसिद्ध राजनीतिज्ञों को दी जाती है जिनको 'अलीपाशा मुबारक' के नाम से पुकारा जाता है। यह 1823-24 ई. में पैदा हुए। यह एक साधारण वंश के व्यक्ति थे। पहले ये मिस्री तोपखाने में एक अधिकारी हुए और धीरे-धीरे उन्नति करके मंत्री के पद पर पहुँचे। 1844 ई. में फ्रांस गए और मेट्ज के तोपखाने के स्कूल में शिक्षा ग्रहण की। अली पाशा मुबारक ने मिस्र सरकार के प्रत्येक विभाग में बहुत ज्यादा सुधार किए। इन्हीं के मंत्रित्व में छापेखाने खुले और स्कूलों के लिए पढ़ाई जानेवाली पुस्तकें तैयार की गई। 1891 ई. में उन्होंने सर अलफ्रेड मिलनर के हस्तक्षेप के कारण त्यागपत्र दे दिया और राजनीति से अलग होकर एक साधारण व्यक्ति की तरह जीवन व्यतीत करने लगे। 14 नवंबर, 1893 को उनकी मृत्यु काहिरा में हो गई।
एक और अली पाशा मुहम्मद अमीन तुर्क राजनीतिज्ञ 1815 ई. में कुस्तुंतुनियाँ में पैदा हुए। यह रलीद पाशा के शिष्य थे। लंदन में 1841 ई. में तुर्की राजदूत रहे। पेरिस के सुलहनामें में तुर्की के प्रतिनिधि बनाकर भेजे गए। 1856-61 ई. तक उस्मानिया सल्तनत के मुख्य मंत्री रहे। इन्होंने बहुत सी नई बातें लागू कीं। इनकी मृत्यु 18 सितंबर, 1871 को हुई।
टीका टिप्पणी और संदर्भ