इक्कितीज़

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लेख सूचना
इक्कितीज़
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 506
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक ओमकारनाथ उपाध्याय

इक्वितीज़ आरंभ में रोमन सेना का घुड़सवार अंग, बाद में राजनीतिक दल। समूचे प्रजातंत्र में इस सेना का बोलबाला रहा और 220 ई.पू. के बाद तो रोम में सबसे पहले मताधिकार उसी का होता था। इस सेना के सैनिकों का चुनाव अत्यंत अभिजात कुलों से होता था। धनी परिवारों के अभिजात कुमार बड़े उत्साह से इस घुड़सवार सेना में भर्ती होते थे। एक समय तो रोमन विधान द्वारा विशेष आय के व्यक्तियों को इक्वितीज़ में भर्ती होना अनिवार्य कर दिया गया। धीरे-धीरे इस सेना के तीन वर्ग हो गए : पात्रीशियम, प्लेबेअन और मिश्रित। प्रजातंत्र का अंत हो जाने पर इनका भी अंत हो गया, पर सम्राट् ओगुस्तस ने फिर एक बार इनका संगठन किया और ये साम्राज्य की सेना के विशिष्ट अंग बन गए।

रोमन साम्राज्य के विस्तार के बाद इक्वितीज़ का सैनिक रूप नष्ट हो गा। वे रोम में ही संभ्रांत और समृद्ध नागरिक होकर रह गए और उनका स्थान साधारण घुड़सवार सेना ने ले लिया। धीरे-धीरे इनका दल धनवान होने से रोम में अत्यंत सामर्थ्यवान हो गया। इनके दल में वे सभी लोग सम्मिलित हो सकते थे जो चार लाख रोमन मुद्राओं के स्वामी थे। पर उसकी राजधानी में रहने के कारण और धनाढ्य होने से इनकी शक्ति रोम में इतनी बढ़ी कि ये वहाँ संकट बन गए। प्रांतों की गवर्नरियों के क्रय-विक्रय से सिनेटरों के पदों तक की बागडोर इनके हाथ में रहने लगी। समूचे साम्राज्य की अर्थशक्ति और अर्थनीति इन्हीं के हाथों में थी और ये सम्राटों के उत्थान-पतन के भी अनेक बार अभिभावक बन गए। प्रसिद्ध सम्राट् ओगुस्टस ने इनका घुड़सवार सेना के रूप में फिर संगठन किया, परंतु वह आंशिक रूप में ही सफल हो सका, क्योंकि शक्ति की तृष्णा समृद्ध अभिजात्यों में इतनी थी कि वे नए विधान को पूर्णतया स्वीकार न कर सके। इक्वितीज़ का अंत साम्राज्य के साथ ही हुआ।


टीका टिप्पणी और संदर्भ