ऐल्बैटरास
चित्र:Tranfer-icon.png | यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें |
ऐल्बैटरास
| |
पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 284 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | कैंडनाक जान डामनिक |
ऐल्बैटरास समुद्री पक्षी है। इसकी लगभग एक दर्जन जातियाँ हैं। सभी प्रोसिलेरीफ़ार्मिस गण में गिनी जाती हैं। ये पक्षी बड़े होते हैं। शरीर स्थूल, गरदन लंबी, पूँछ छोटी और टाँगें, भी छोटी होती है। पैर की अँगुलियाँ बतखों की तरह झिल्ली द्वारा जुड़ी होती हैं। चोंच मोटी होती है। अन्य पक्षियों की चोंच की तुलना में इसमें यह विशेषता होती है कि इसपर कई एक पट्टिकाएँ चढ़ी रहती हैं जो संरचना में सींग के समान होती हैं। नथुने चोंच के ऊपरी भाग में अगल-बगल रहते हैं। ऐलबैटरासों के पंख के छोर तक की नाप 10 से 12 फुट तक होती है। ये पक्षी अंडा देने तथा सेने और बच्चा पालने के समयों को छोड़ बिरले अवसरों पर ही भूमि पर आते हैं। ये मसिक्षेपी (कटल) मत्स्य तथा अन्य समुद्री जीव खाया करते हैं।
दक्षिणी समुद्रों तथा उत्तर प्रशांत महासागर में कुल मिलाकर ऐलबैटरासों की १३ जातियाँ हैं। ये पक्षी बहुधा जहाजों के साथ-साथ मीलों तक उड़ते चले जाते हैं। नाविक उन्हें सुगमता से पकड़ सकते हैं। ये बिरले ही अवसर पर कोई ध्वनि करते हैं। समुद्री टापुओं पर ये झुंडों में रहकर बच्चा पालते हैं। एक वर्ष में मादा पक्षी एक ही अंडा देती है। ये अंडे श्वेत होते हैं और इनके चौड़े सिर पर कुछ ललछौंह धब्बे होते हैं। साधारणत: सितंबर से दिसंबर तक अंडा सेने और बच्चा पालने की ऋतु रहती है। कुछ मादा पक्षी केवल प्रत्येक दूसरे वर्ष अंडा देती हैं। छोटे बच्चे माता पिता के मुख द्वारा निकाले गए अधपचे आहार पर पोषित होते हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ