कार्ल डेविड ऐंडर्सन

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०८:०६, २१ जुलाई २०१८ का अवतरण
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें
लेख सूचना
कार्ल डेविड ऐंडर्सन
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2
पृष्ठ संख्या 267
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक भगवतीप्रसाद श्रीवास्तव

ऐंडसेन, कार्ल डेविड अमरीका के प्रमुख भौतिक वैज्ञानिक हैं। इनका जन्म 3 सितंबर, सन्‌ 1905 ई. को न्यूयार्क में हुआ। उच्च शिक्षा इन्होंने कैलिर्फ़ोर्निया इंस्टिटयूट ऑव टेक्नॉलाजी, पैसाडना में प्राप्त की। 1930 में इन्हें पी.एच.डा. उपाधि मिली। 1933 में ये कैलिफ़ोनिया इंस्टिटयूट में सहायक प्रोफेसर नियुक्त हुए, फिर 1939 में प्रोफेसर बना दिए गए।

अनुसंधान कार्य –सन्‌ 1927 में जिन दिनोंआपने अंतरिक्ष किरणों के बारे में अपना शोधकार्य आरंभ किया, उन दिनों इन किरणों के बारे में इस महत्वपूर्ण प्रश्न का हल ढूँढ़ा जा रहा था कि ये किरणें अत्यधिक ऊर्जावाले कणों से बनी हैं अथवा ये शक्तिशाली गामा किरणों की जाति की हैं। प्रोफेसर मिलिकन की प्रेरणा से ऐंडर्सन ने सुसंगठित योजना के अनुसार अपने प्रयोग आरंभ किए। इन प्रयोगों में मेघकक्ष (क्लाउड चेंबर) को चुंबकीय क्षेत्र में रखा गया था और इस बात का प्रबंध किया गया था कि एक लंबी अवधि तक प्रत्येक 15 सेकंड के अंतर पर कक्ष में प्रकट होनेवाले विद्युत्‌कणों की मार्गरेखा का फोटो अपने आप खिंचता रहे। इन मार्ग रेखाओं की वक्रता नापकर ऐंडर्सन ने निर्विवाद रूप से 1932 में यह सिद्ध किया कि अंतरिक्ष किरणों की ऊर्जा जब पदार्थ में परिणत होती है तो एक इलेक्ट्रान के साथ-साथ उतनी ही धनविद्युत्‌ मात्रावाला दूसरा कण भी उत्पन्न होता है, जिसे 'पाज़िट्रान' का नाम दिया गया। पाज़िट्रान का भार ठीक इलेक्ट्रान के भार के बराबर होता है। 1936 में पाज़िट्रान की खोज के उपलक्ष में आपको नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।

इन्हीं प्रयोगों के सिलसिले में ऐंडर्सन ने इस बात की भी संभावना बतलाई की अंतरिक्ष किरणों में एक नई जाति के विद्युत्‌कण भी विद्यमान रह सकते हैं जिनका भार इलेक्ट्रान और प्रोटान के भार के बीच होना चाहिए तथा जिनकी विद्युन्मात्रा इलेक्ट्रान की विद्युन्मात्रा के बराबर ही ऋणात्मक या धनात्मक जाति की होनी चाहिए। ऐंडर्सन ने इन्हें मेसोट्रान नाम दिया। बाद में ये ही कण मेसन कहलाए।


टीका टिप्पणी और संदर्भ