केबल

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०९:२६, ७ अगस्त २०१८ का अवतरण
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें
लेख सूचना
केबल
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 118-119
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक सीताराम बालकृष्ण जोशी

केबल इस्पात का लचकदार रस्सा जो इंजीनियरी के विभिन्न प्रयोजनों, जैसे भारी बोझों को उठाने, रेलवे के मार्ग के रस्से, गाइओं (guys), उत्तोलक, संवाहक, केवल मार्ग, झूला पुलों में मुख्या वाहक तार और पूर्वप्रतिबलित कंक्रीट में केबल के रूप में, प्रयुक्त होता है। इस्पात के अनेक तारों के संयोग से तारसूत्र (Strand) और अनेक तारसूत्रों को मिलाकर एक केबल बनता है। तारसूत्र के तार और केबल में लगे तारसूत्रों को कभी कभी एक दूसरे के समांतर रखकर और एकत्रित करके एक इकाई में ऐंठ दिया जाता है

चित्र:Cable.jpg

इस प्रकार तारों को ऐंठकर तारसूत्र और तारसूत्रों को ऐंठकर केबल बनाया जाता है। जब तारों को एक दिशा में ऐंठकर तारसूत्र बनाया जाता हैं और तारसूत्रों को विपरीत दिशा में ऐंठकर केबल बनाया जाता है तब इसे नियमित ले (Lay) कहते हैं। जब तारसूत्रों को उसी दिशा में ऐंठा जाता है जिसमें उनमें लगे तार ऐंठे होते हैं तब यह लांग ले (Lang lay) रस्सा कहा जाता है। ६ X १७ नियमित ले रस्सा उसको कहते हैं जिसमें छ: ऐसे तरसूत्र हों जिनके केंद्र षड्भुज के कोणों पर हों और प्रत्येक तारसूत्र में १७ तारे हों। नियमित ले के रस्सों के कुचले जाने और विकृत होने की संभावना कम होती है क्योंकि लांग ले रस्से घिसाव रोकने में अधिक समर्थ होते हैं । प्रत्येक तार और तारसूत्र को गठित करने से पूर्व उसे अंतिम सर्पिल आकार देने के लिये पूर्वनिर्मित कर लिया जाता है ताकि तारों और तारसूत्रों की सीधा होने की स्वाभाविक प्रवृत्ति का निवारण हो जाए।

झूला पुलों के समान महत्वपूर्ण केबल के कार्यों में केबल पर उसकी अंतिम शक्ति के आधे के बराबर पूर्वनिश्चित बोझ लटकाते हैं ताकि उसका संरचनात्क तनाव दूर हो जाय। यह भार बहुत अधिक समय तक बना रहने दिया जाता है और तब हटा दिया जाता है। ऐसी पूर्वक्रिया का पुलों के लटकते हुए केबल तथा ऊर्ध्वाधर रेडियो स्तंभों पर लगे गाई तारसूत्रों (guy strands) के स्थापन में विशेष महत्व है।

चित्र:Cable-1.jpg

यद्यपि तारों की आपेक्षिक दृढ़ता उपयोग के अनुसार परिवर्तनशील होती है, तथापि साधारणत: यह कहा जा सकता है कि केबल में लगे तारों में कार्बन की मात्रा लगभग .०६ % से .०८ % होती है, जिससे उसकी चरम दृढ़ता लगभग १०० टन प्रति वर्ग इंच या इससे अधिक होती है और उनका न्यूनतम खिंचाव ८ इंच निर्दिष्ट माप की लंबाई (gauge length) पर लगभग २ से ४ प्रतिशत होता है।

ऋतुओं के द्वारा प्रभावित होनेवाले केबलों की रक्षा बहुधा जस्ते की कलई चढ़ाकर की जाती है। कलई करने के लिये तारों को हलके अम्ल में डालकर सफाई की जाती है। तब इसे पिघले हुए शुद्ध जस्ते में (जस्ता ९९.७५) प्रतिशत शुद्धता का जिसमें लोहे की मात्रा ०.०३ प्रतिशत से अधिक न हो डालते हैं, इससे इस पर जस्ते की परत चढ़ जाती है। जो इस्पात के संक्षारण को रोकती है। जस्ते की तह का चिपकना जस्ते और इस्पात के सीधे रासायनिक संयोग पर निर्भर है।

लोहे की कड़ियों से बनी जंजोरों को भी केबल कहते हैं। यह जहाजों के लंगर डालने के काम आता है। जमीन के नीचे या समुद्र के पानी में डाले हुए तार के उन रस्सों को भी केबल कहते हैं जिनके द्वारा तार या टेलीफोन का संचार होता है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ