कनफ़्यूशीवाद

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लेख सूचना
कनफ़्यूशीवाद
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2
पृष्ठ संख्या 380-388
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1975 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक श्रीकृष्ण सक्सेना
  • कनफ़्यूशीवाद कनफ़्यूशस्‌ के दार्शनिक, सामाजिक तथा राजनीतिक विचारों पर आधारित मत को कनफ़्यूशीवाद या कुंगफुत्सीवाद नाम दिया जाता है।
  • कनफ़ूशस्‌ के मतानुसार भलाई मनुष्य का स्वाभाविक गुण है।
  • मनुष्य को यह स्वाभाविक गुण ईश्वर से प्राप्त हुआ है। अत: इस स्वभाव के अनुसार कार्य करना ईश्वर की इच्छा का आदर करना है और उसके अनुसार कार्य न करना ईश्वर की अवज्ञा करना है।
  • कनफ़्यूशीवाद के अनुसार समाज का संगठन पाँच प्रकार के संबंधों पर आधारित है:
  1. शासक और शासित
  2. पिता और पुत्र
  3. ज्येष्ठ भ्राता और कनिष्ठ भ्राता
  4. पति और पत्नी तथा
  5. इष्ट मित्र।
  • इन पाँच में से पहले चार संबंधों में एक ओर आदेश देना और दूसरी ओर उसका पालन करना निहित है।
  • शासक का धर्म आज्ञा देना और शासित का कर्तव्य उस आज्ञा का पालन करना है।
  • इसी प्रकार पिता, पति और बड़े भाई का धर्म आदेश देना है और पुत्र, पत्नी एवं छोटे भाई का कर्तव्य आदेशों का पालन करना है। परंतु साथ ही यह आवश्यक है कि आदेश देनेवाले का शासन औचित्य, नीति और न्याय पर आधारित हो। तभी शासित गण से भी यह आशा की जा सकती है कि वे विश्वास तथा ईमान दारी से आज्ञाओं का पालन कर सकेंगे। पाँचवें, अर्थात्‌ मित्रों के संबंध में पारस्परिक गुणों का विकास ही मूल निर्धारक सिद्धांत होना चाहिए।
  • जब इन संबंधों के अंतर्गत व्यक्तियों के रागद्वेष के कारण कर्तव्यों की अवहेलना होती है तभी एक प्रकार की सामाजिक अराजकता की अवस्था उत्पन्न हो जाती है।
  • मनुष्य में अपने श्रेष्ठ व्यक्तियों का अनुकरण करने का स्वाभाविक गुण है।
  • यदि किसी समाज में आदर्श शासक प्रतिष्ठित हो जाए तो वहाँ की जनता भी आदर्श जनता बन सकती है।
  • कुशल शासक अपने चरित्र का उदाहरण प्रस्तुत करके अपने राज्य की जनता का सर्वतोमुखी सुधार कर सकता है।
  • कनफ़्यूशीवाद की शिक्षा में धर्मनिरपेक्षता का सर्वांगपूर्ण उदाहरण मिलता है।
  • कनफ़्यूशीवाद का मूल सिद्धांत इस स्वर्णिम नियम पर आधारित है कि 'दूसरों के प्रति वैसा ही व्यवहार करो जैसा तुम उनके द्वारा अपने प्रति किए जाने की इच्छा करते हो'।

टीका टिप्पणी और संदर्भ