ग्रिम, जैकब लुडविग कार्ल

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  • ग्रिम, जैकब लुडविग कार्ल जर्मन भाषा तथा पुराणविद्, जिसका जन्म ४ जनवरी, १७८५ को हनाऊ में हुआ। सन्‌ १७९८ में कैसल पर साविन्यी के रोमन कानून संबंधी भाषणों को पढ़-सुनकर विज्ञान के महत्व को समझा। इसीलिये इतिहास एवं पुरातत्व संबंधी जिज्ञासा उनके साहित्य में सर्वत्र मिलती है। १८०५ में यह साविन्यी के साथ पैरिस चले गए।
  • वहाँ मध्यकालीन इतिहास का उन्होंने खूब अध्ययन किया। वहाँ से लौटकर आरंभ में युद्ध विभाग में क्लर्क हुए लेकिन पदोन्नति करते हुए ग्रिम और उनके भाई दोनों प्राध्यापक पद तक पहुँचे।
  • ग्रिम और भाई विल्हेल्म दोनों की रुचि भाषाशास्त्र की ओर बढ़ने लगी। इन्हें राष्ट्रीय कविता, चाहे वह महाकाव्य हो, बैलेड हो या जनकथाएँ, प्रिय थीं। सन्‌ १८१६-१८ में एक पुस्तक प्रकाशित की जिसमें प्राचीन जर्मन महाकाव्य की परंपरा के परिवर्तनों पर प्रकाश डाला।
  • सन्‌ १८१६-१८ में एक पुस्तक प्रकाशित की जिसमें प्राचीन जर्मन महाकाव्य की परंपरा के परिवर्तनों पर प्रकाश डाला। सन्‌ १८१२-१५ में दोनों भाइयों ने जर्मन लोकगाथाओं का व्याख्यात्मक संकलन प्रकाशित किया। फलस्वरूप सभ्य समाज में घर घर इनका नाम फैल गया।
  • इस संकलन ने पहली बार लोकगाथाओं को वैज्ञानिकता प्रदान की। १८३५ में पौराणिकताओं तथा विश्वासों को लेकर प्राचीन ट्यूटन काल से अपने समय तक के उनके पतन पर कालक्रमानुसार एक महान्‌ ग्रंथ प्रकाशित किया जिसमें उस विषय की सांगोपांग व्याख्या थी।
  • साथ ही साथ भाषा के संबंध में प्राचीन काल के लेखकों, काव्यों में पाए जानेवले स्वरूपों का अन्य किन किन भाषाओं- विशेषत: ग्रीक और लातीनी- से संबंध रहा है, यह भी दिखाया।
  • अपने व्याकरणसंबंधी ग्रंथ में 'ओल्ड हाई जर्मन' की विशेषताएँ दिखाने के लिये 'लो जर्मन', इंगलिश तथा नारवेयी, स्वीडी, डेनी आदि भाषाएँ भी शामिल की। सन्‌ १८१९ तथा २२ में क्रमश: इस व्याकरण के दोनों भाग प्रकाशित हुए।
  • ग्रिम के पूर्व तक भाषाशास्त्र को महत्व नहीं मिला था।
  • ग्रिम ने अपने अध्ययन एव सिद्धांत द्वारा इसे वैज्ञानिकता प्रदान की। १८४० में व्याकरण के तीसरे भाग का प्रथम खंड ही निकल सका। क्योंकि बाद का सारा समय शब्दकोश निर्माण में लग गया।


टीका टिप्पणी और संदर्भ