टरपीन
टरपीन
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4 |
पृष्ठ संख्या | 114 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | फूलदेव सहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | फूलदेवसहाय वर्मा |
टरपीन (Terpenes) यह शब्द टरपेंटाइन ऑयल (तारपीन के तेल) से निकला है, जिसमें अनेक टरपीन पाए गए हैं। टरपीन हाइड्रोकार्बन वर्ग का असंतृप्त यौगिक है, जिसमें केवल कार्बन और हाइड्रोजन तत्व होते है। टरपीनों का सामान्य सूत्र (का५ हा८)न [(C५H८)n] है जहाँ न (n) एक, दो, तीन, चार या चार से अधिक हो सकता है। टरपीन के अनेक अंतर्विभाग हैं। सरलतम टरपीन का सूत्र का५ हा८ [(C५H८) है। इसे हेमिटरपीन कहते हैं। हेमिटरपीन के अतिरिक्त वास्तविक टरपीन का१० हा१६ (C१०H१६), सेस्किवटरपीन का१५ हा२४ (C१५H२४), डाइटरपीन का२० हा३२ (C२०H३२) ट्राइटरपीन का३० हा४८ (C३०H४८) और पॉलिटरपीन (का५ हा८)न [(C५ H८)n] सूत्रों के होते हैं, जिनमें न (n) पाँच से अधिक संख्या होती है। टरपीनों का वर्गीकरण उनकी संरचना के आधार पर भी किया गया है। एक वर्ग के टरपीनों में कोई चक्रीय संरचना नहीं होती। इसे अचक्रीय (acyclic) या विवृत श्रृंखला का टरपीन कहते है। दूसरे वर्ग में चक्रीय (cyclic) संरचना होती है। उसे चक्रीय टरपीन कहते हैं। फिर चक्रीय टरपीन एक वलय वाला, दो वलयवाला या तीन से अधिक वलयवाला हो सकता है। ऐसे टरपीनों को क्रमश: एकचक्रीय, द्विचक्रीय, त्रिचक्रीय, या बहुचक्रीय, टरपीन कहते हैं।
टरपीन की उपस्थिति
टरपीन पौधों में विस्तृत रूप से पाए जाते हैं। ये पौधों के पत्तों, धड़ों, काठों, फूलों और फलों में होते हैं। कुछ पेड़ों और क्षुपों से ओलियोरेजिन या तैलरेजिन निकलता है। इसके असवन या वाष्प आसवन से टरपीन आसुकुत होकर निकलता है और आसवन पात्र में ठोस या अर्ध ठोस अवशेष रह जाता है, जिसे रोजिन कहते हैं। आसुत उत्पाद तारपीन का तेल है। इस तेल में अनेक टरपीन रहते हैं, जिनके विभिन्न सदस्यों का पृथक्करण हुआ है। पौधों से प्राप्त वाष्पीशील तेलों में टरपीन के साथ साथ बहुधा टरपीन के आक्सीजन संजात भी पाए जाते हैं। ये संरचना में टरपीन से बहुत मिलते जुलते हैं। इनमें कुछ बड़े व्यापारिक महत्व के हैं। एक ऐसा ही संजात कपूर है।
तारपीन के तेल का उपयोग
तारपीन के तेल का उपयोग बहुत काल से सुगंधित द्रव्य के रूप में, पाकनिर्माण तथा ओषाधियों, विशेषत: चर्मरोग और कृमिनाशक औषधियों, में होता आ रहा है। शुद्ध टरपीन के भी ऐसे ही उपयोग हैं। अनेक सुगंधित और कृमिनाशक द्रव्य इनसे आज तैयार होते हैं। सुगंधित द्रव्यों, विशेषत: कृत्रिम पुष्पगंधों के निर्माण में टरपीन का बड़ा महत्वपूर्ण योग है।
पौधों में टरपीन का क्या उपयोग है, इसका ठीक ठीक पता भी नहीं लगा है। संभवत: इनकी गंध से मधुमक्खियाँ आकर्षित होकर परागण (pollination) में सहायक होती हैं। पौधों में टरपीन का सृजन कैसे होता है, इसका भी अभी तक ठीक ठीक पता नहीं लगा है। कुछ लोगों ने शर्कराओं से और कुछ लोगों ने ल्युसीन (Leucine) नामक ऐमिनो यौगिक से इसे प्राप्त करने का दावा किया है, पर यह बात ठोस जीवरासायनिक प्रभाव के आधार पर प्रमाणित नहीं हुई है। प्रकृति में टरपीन बहुधा प्रकाशसक्रिय, दक्षिणावर्ती और वामावर्ती दोनों, रूपों में पाए जाते हैं, जब कि पौधों के अन्य प्राकृतिक उत्पाद, शर्कराएँ, ऐलकालॉयड, ऐमिनो अम्ल आदि सामान्यत: एक ही सक्रिय रूप में पाए जाते हैं। एक टरपीन को दूसरे टरपीन में परिणत होते पाया गया है।
हेमिटरपीन
सरलतम टरपीन हेमिटरपीन है, जिसका सूत्र का५ हा८ (C५H८) है। इसे आइसोप्रीन या बीटा-मेथाइल-ब्यूटा-डाइन' भी कहते हैं। इसका आविष्कार १८६० ई० में ग्रैविल विलियमस (Graville Williams) द्वारा हुआ था। कुचूक (Coutouch) के आसवन से उन्होंने इसे द्रव के रूप में प्राप्त किया था। पीछे टिल्डेन ने डाइपेंटीन से इसे प्राप्त किया। यह वर्णहीन द्रव है, जिसका आपेक्षिक घनत्व ०.६९ और क्वथनांक ३३.५ सें. है। बहुत समय तक रखे रहने से यह रबर में बदल जाता है। यहाँ टरपीन का बहुलकारण होता है। गरम करने या उत्प्रेरकों की उपस्थिति में बहुलकरण बड़ी शीघ्रता से संपन्न होता है। आज आइसोप्रीन कई स्रोतों से प्राप्त हुआ है। इनमें कुछ स्त्रोत व्यापारिक महत्व के हैं।
वास्तविक टरपीन
वास्तविक टरपीन वर्णहीन द्रव होते हैं। जल में अविलेय, पर ऐलकोहल, बेंज़ीन, ईथर आदि कार्बनिक विलायकों में विलेय होते हैं। इनमें विशिष्ट सौरभिक गंध होती है। ये प्रकाशत: सक्रिय तथा दक्षिणावती र् और वामावती रूपों में तथा निष्क्रिय रूपों में भी पाए जाते हैं। रसायनत: ये बड़े सक्रिय होते हैं। अनेक अभिकर्मकों, हाइड्रोजन, हाइड्रोजन क्लोराइड, ब्रोमीन, नाइट्रोसिल क्लोराइड आदि से यौगिक बनते हैं। ये बड़े शीघ्र आँक्सीकृत और बहुलकृत हो जाते हैं। वायु से मिलकर ये रेजिन सा पदार्थ बनाते हैं। इनके योगशील यौगिक ¢सिस¢औ ¢ट्रांस¢ दोनों रूपों में पाए जाते हैं।
इस वर्ग के अचक्रीय टरपीनों में मरसीन (Myrcine) क्वथनांक १६६०-१६८० और औसिमीन (Ocimene) कथनांक १७६०-१७८० सें०, अधिक महत्व के हैं। मरसीन अनेक वाष्पशील तेलों में, विशेषत: बे तेल (Bay oil) में, पाया जाता है। पाइनीन से भी यह प्राप्त हुआ है। इसमें तीन युग्मबंध हैं। यह ३००० सें० पर बहुलीकृत हो जाता है और जल्दी आक्सीकृत भी हो जाता है। इसका संरचनासूत्र निम्नलिखित है: (का हा३)२ का: का हा. का हा२ का हा२ का (का हा२). का हा : का हा२
[(CH3) 2 C:CH.CH2. CH2. C(:CH2). CH : CH2]
मरसीन और औसिमीन में केवल युग्मबंध की स्थिति में विभिन्नता है। एकचक्रीय टरपीनों में लिमोनीन (Limonene) व्यापक रूप से पाया जाता है। नीबू, संतरे और अन्य वाष्पशील तेलों में यह रहता है। यह वर्णहीन प्रकाशसक्रिय द्रव है। यह दक्षिणावर्ती (क्युमिन तेल में) और वामावर्ती (सिल्वर फर के कोन (cone) के तेल में), दोनों रूपों में पाया जाता है। इसका निष्क्रिय रूप डाइपेंटीन है, जिसका संश्लेषण जूनियर परकिन द्वारा १९०४ में हुआ था और इससे इसकी संरचना की पुष्टि हो गई। इस वर्ग के टरपिनोलीन, ऐल्फा-टरपिनीन, गामा-टरपिनीन, बीटा-फिलैंड्रीन तथा ऐल्फा-फिलैंड्रीन, अन्य टरपीन में। इन टरपीनों में युग्म बंधों की स्थिति में विभिन्नता है, जैसा निम्नलिखित सूत्रों से पता लगता है:
लिमोनिन ऐल्फाफिलैड्रीन टरपीनोलीन डाइपेंटीन सिल्वेस्ट्रिन
- इनके महत्व के औक्सिसंजातों के सूत्र इस प्रकार हैं :
ऐल्फाटर्पिनियोल सिनियोल थाइमोल मेंथोल
ऐल्फ़ापाइनीन कैंफीन फेंचीन
द्विचक्रीय टरपीनों में दो वलय होते हैं। इनमें साइक्लोहेक्सेन वलय साइक्लोब्यूटने वलय से संबद्ध रहता है। इनमें केवल एक युग्मबंध रहता है, जिससे योगशील यौगिक बनते हैं। ऐसे टरपीनों में पाइनीन, कैंफीन, फेंचीन किस्म के यौगिक रहते हैं।
सेल्क्विटरपीन
सेस्किवटरपीन और उनके आक्सिसंजात तारपीन के तेल में रहते हैं, जिनके प्रभाजक आसवन से ये पृथ्क किए जा सकते हैं। ये सामान्यत: श्यान होते हैं। इनका क्वथनांक २५०° और २८०° सें. के बीच तथा आपेक्षिक घनत्व ०.८५ से ०.९४ तक होता है। ये शुद्ध रूप में वर्णहीन होते है, पर अपद्रव्यों के कारण इनमें कुछ नीली आभा आ जाती है। अन्य गुणों में ये अन्य टरपीनों सदृश होते हैं। इनमें सरलता से संरचना बदलने की प्रवृत्ति होती है। संरचना के निर्धारण में भौतिक रीतियाँ, जैसे अवरक्त और पराबैंगनी किरणा अवशोषण इत्यादि, अधिक विश्वसनीय सिद्ध हुई है। इनके आक्सीकरण संजातों का विस्तार से अध्ययन हुआ है, पर विहाइड्रोजनीकरण ही अधिक लाभप्रद सिद्ध हुआ है। विहाइड्रोजनीकरण से कुछ से नैफ्थलीन संजात प्राप्त होते हैं और नैफ्थलीन संजात नहीं प्राप्त होते हैं। कुछ से कैडिलीन (Cadelene) और कुछ से यूडेलीन (Eudalene) प्राप्त हुए हैं।
डाइटरपीन (का२० हा३२ C२०H३२)
इसके क्वथनांक ३५०० - ४००० सें. के बीच होते हैं ये और इनके आक्सीजन संजात सामानयत: रोजिन में पाए जाते हैं। कैंफर तेल में कैंफोरीन नामक डाइटरपीन रहता है। जिसका गलनांक १२९० - १३१० सें० है। रोजिन और बालसम में पिमेरिक अम्ल और ऐबिएटिक अम्ल भी पाए जाते है। इनके विहाइड्रोजनीकरण से फिन्थ्रेाींन संजात बनते हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ