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− | '''अग्निष्टोम''' यजुष् और अथर्वन् की यज्ञ पद्धति में अग्निष्टोम का अग्न्याधान, वाजपेय आदि की तरह ही महत्व है। इसे ज्योतिष्टोम भी कहते हैं। यह पाँच दिनों तक मनाया जाता है। प्राय राजसूय तथा अश्वमेध यज्ञों के कर्ता इस यज्ञ का प्रतिपादन आवश्यक समझते थे। वैदिक साहित्य के अतिरिक्त प्राचीन अभिलेखों (आंध्र) में भी हमें इस यज्ञ का उल्लेख मिलता है। | + | '''अग्निष्टोम''' यजुष् और अथर्वन् की यज्ञ पद्धति में अग्निष्टोम का अग्न्याधान, वाजपेय आदि की तरह ही महत्व है। इसे ज्योतिष्टोम भी कहते हैं। यह पाँच दिनों तक मनाया जाता है। प्राय राजसूय तथा अश्वमेध यज्ञों के कर्ता इस यज्ञ का प्रतिपादन आवश्यक समझते थे। वैदिक साहित्य के अतिरिक्त प्राचीन अभिलेखों (आंध्र) में भी हमें इस यज्ञ का उल्लेख मिलता है। |
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१३:०४, १७ सितम्बर २०१४ के समय का अवतरण
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अग्निष्टोम
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 76 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1973 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | चंद्रचूड़ मणि। |
अग्निष्टोम यजुष् और अथर्वन् की यज्ञ पद्धति में अग्निष्टोम का अग्न्याधान, वाजपेय आदि की तरह ही महत्व है। इसे ज्योतिष्टोम भी कहते हैं। यह पाँच दिनों तक मनाया जाता है। प्राय राजसूय तथा अश्वमेध यज्ञों के कर्ता इस यज्ञ का प्रतिपादन आवश्यक समझते थे। वैदिक साहित्य के अतिरिक्त प्राचीन अभिलेखों (आंध्र) में भी हमें इस यज्ञ का उल्लेख मिलता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ