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अध्यात्मरामायण
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 102 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1973 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | परशुराम चतुर्वेदी। |
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अध्यात्मरामायण वेदांत दर्शन आधारित रामभक्ति का प्रतिपादन करनेवाला रामचरितविषयक संस्कृति ग्रंथ। इसे 'अध्यात्म-रामचरित' (1-2-4) तथा 'आध्यात्मिक रामसंहिता' (6-16-33) भी कहा गया है। यह उमा-महेश्वर-संवाद के रूप में है और इसमें सात कांड एवं 65 अध्याय हैं जिन्हें प्राय: व्यास रचित और 'ब्रह्मांडपुराण' के 'उत्तरखंड' का एक अंश भी बतलाया जाता है, किंतु यह उसके किसी भी उपलब्ध संस्करण में नहीं पाया जाता। 'भविष्यपुराण' (प्रतिसर्ग पर्व) के अनुसार इसे किसी शिवोपासक राम शर्मन् ने रचे जिसे कुछ लोग स्वामी रामानंद भी समझते हैं, कितु यह मत सर्वसम्मत नहीं है। इसका रचनाकाल ईस्वी 14वीं सदी के पहले की नहीं माना जाता और साधारणत: यह 15वीं सदी ठहराया जाता है। इसपर अद्वैत मत के अतिरिक्त योगसाधना एवं तंत्रों का भी प्रभाव लक्षित होता है। इसे रामभक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण कहा गया है। इसमें राम, विष्णु के अवतार होने के साथ ही, परब्रह्म या निर्गुण ब्रह्मा भी मान गए और सीता की योगमाया कहा गया है। तुलसीदास का 'रामचरितमानस' इससे बहुत प्रभावित है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ