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'''अनंतदास (१)''' भक्तमाल के रचयिता नाभादास के गूरुभाई विनोदी जी के शिष्य अनंतदास का समय
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'''अनंतदास'''(1) भक्तमाल के रचयिता नाभादास के गूरुभाई विनोद जी के शिष्य अनंतदास का समय उनके द्वारा रचित नामदेव की परचई के आधार पर वि.सं. 1645 है। इन्होंने पीपा की परचई में अपनी गुरुपरंपरा को रामानंद से आरंभ माना है।उसका क्रम इस प्रकार दिया है-रामानंद-अनंतानंद-कृष्णदास-अग्रदास-विनोदी-अनंतदास। इन्होंने कबीरदास, नामदेव, पीपा, त्रिलोचन, रैदास जैसे संतों की परचइयाँ लिखी हैं।जिनसे इन संतों के जीवन की बहुत सी महत्वपूर्ण बातें ज्ञात होती हैं, और वे लेखक के लगभग समकालीन होने के कारण प्रमाण के रूप में भी स्वीकार की जा सकती हैं।
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'''अनंतदास'''(2) उत्कल प्रांत के पंचसखा वैष्णव भक्तों के संप्रदाय में पंचसखाओं अर्थात्‌ भगवान श्रीकृष्ण के पाँच प्रधान भक्तों में बलरामदास, यशोवंतदास, अनंतदास (जन्म सं. 1550) तथा अच्युतानंददास की गणना की जाती है। ये हिंदी के अनंतदास से भिन्न व्यक्ति हैं। इनके आराध्य पूर्णतया निर्गुण शून्यवत श्रीकृष्ण हैं।
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१२:२९, ५ अगस्त २०१५ के समय का अवतरण

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लेख सूचना
अनंतदास
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 106
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1973 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक (नागेन्द्रनाथ उपाध्याय) ।

अनंतदास(1) भक्तमाल के रचयिता नाभादास के गूरुभाई विनोद जी के शिष्य अनंतदास का समय उनके द्वारा रचित नामदेव की परचई के आधार पर वि.सं. 1645 है। इन्होंने पीपा की परचई में अपनी गुरुपरंपरा को रामानंद से आरंभ माना है।उसका क्रम इस प्रकार दिया है-रामानंद-अनंतानंद-कृष्णदास-अग्रदास-विनोदी-अनंतदास। इन्होंने कबीरदास, नामदेव, पीपा, त्रिलोचन, रैदास जैसे संतों की परचइयाँ लिखी हैं।जिनसे इन संतों के जीवन की बहुत सी महत्वपूर्ण बातें ज्ञात होती हैं, और वे लेखक के लगभग समकालीन होने के कारण प्रमाण के रूप में भी स्वीकार की जा सकती हैं।

अनंतदास(2) उत्कल प्रांत के पंचसखा वैष्णव भक्तों के संप्रदाय में पंचसखाओं अर्थात्‌ भगवान श्रीकृष्ण के पाँच प्रधान भक्तों में बलरामदास, यशोवंतदास, अनंतदास (जन्म सं. 1550) तथा अच्युतानंददास की गणना की जाती है। ये हिंदी के अनंतदास से भिन्न व्यक्ति हैं। इनके आराध्य पूर्णतया निर्गुण शून्यवत श्रीकृष्ण हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ