"अपराजितवर्मन" के अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
छो (अपराजितवर्मन्‌ का नाम बदलकर अपराजितवर्मन कर दिया गया है)
 
पंक्ति १: पंक्ति १:
 +
{{भारतकोश पर बने लेख}}
 
{{लेख सूचना
 
{{लेख सूचना
 
|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
 
|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1

१३:२०, ६ अगस्त २०१४ के समय का अवतरण

चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें
लेख सूचना
अपराजितवर्मन
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 137
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1973 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक भगवतीशरण उपाध्याय ।

अपराजितवर्मन्‌ इस पल्लव राजा ने पल्लवों की विचलित कुललक्ष्मी को कुछ काल तक अचल रखा। वह 876 ई. के लगभग गद्दी पर बैठा और 895 ई. के लगभग उसकी मृत्यु हुई। उसने पांडयराज वरबुण द्वितीयको परास्त किया, परंतु चोडो की सर्वग्रासी शक्ति ने पल्लवों को जीतकर तोंडमंडलम्‌ पर अधिकार कर लिया और पल्लवों के स्वतंत्र शासन का अंत हो गया। अपराजितवर्मन्‌ अंतिम पल्लव राजा था।

पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध


टीका टिप्पणी और संदर्भ