"अरण्यानी" के अवतरणों में अंतर
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण] | [अनिरीक्षित अवतरण] |
Bharatkhoj (चर्चा | योगदान) ('{{लेख सूचना |पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |पृष्ठ स...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Bharatkhoj (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति १: | पंक्ति १: | ||
+ | {{भारतकोश पर बने लेख}} | ||
{{लेख सूचना | {{लेख सूचना | ||
|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 | |पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
०६:५७, १ जून २०१८ के समय का अवतरण
चित्र:Tranfer-icon.png | यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें |
अरण्यानी
| |
पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 216 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | डॉ. ओंमकारनाथ उपाध्याय |
अरण्यानी ऋग्वेद की वनदेवी। यह समस्त जगत् की कल्याणकारिणी है। इसे मधुर गंध से सुरभित कहा गया है। यह समस्त वन्य जगत् की धात्री है (मृगाणां मातरछ) बिना उपजाए ही प्राणियों के लिए आहार उत्तझ करनेवाली है। ऋग्वेद में एक पूरा सूक्त (10,146) उसकी स्तुति में कहा गया है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ