आतिशबाजी

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०७:५५, १२ जून २०१८ का अवतरण
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें
लेख सूचना
आतिशबाजी
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 363
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी

आतिशबाजी उन युक्तियों का सामूहिक नाम है जिनसे अग्नि द्वारा प्रकाश, ध्वनि या धुएँ का अनुपम प्रदर्शन होता है। इनका उपयोग मनोरंजन के अतिरिक्त सेना तथा उद्योग में भी होता है। साधारण जलने में ईधंन को आवश्यक आक्सीजन हवा से मिलता है, परंतु आतिशबाजी में ईधंन के साथ कोई आक्सीजनप्रद पदार्थ मिला रहता है। फिर, ईधंन भी शीघ्र जलनेवाला होता है। इसी से अधिक ताप या प्रकाश या ध्वनि उत्पन्न होती है।

प्राचीन समय में आक्सिजन के लिए शोरे (पोटैसियम नाइट्रेट) का उपयोग किया जाता था, परंतु 1788 में बरटलो ने पोटेसियम क्लोरेट का आविष्कार किया जो शोरे से अच्छा पड़ता है। लगभग 1865 में और फिर 1894 में क्रमानुसार मैगनीसियम और ऐल्यूमिनियम का आविष्कार हुआ, जो जलने पर तीव्र प्रकाश उत्पन्न करते हैं। इनके उपयोग से आतिशबाजी ने बड़ी उन्नति की।

कुछ प्रकार की आतिशबाजी में उद्देश्य यह रहता हे कि जलती हुई गैसें बड़े वेग से निकलें। इनमें बारूद का प्रयोग किया जाता है जो गंधक, काठकोयला और शोरे का महीन मिश्रण होता है। विशेष वेग के लिए इन पदार्थों को बहुत बारीक पीसकर मिलाया जाता है। महताबी आदि में उद्देश्य यह रहता है कि चटक प्रकाश हो। सफेद प्रकाश के लिए ऐंटिमनी या आरसेनिक के लवण रहते हैं, परंतु इस रंग की महताबियाँ कम बनाई जाती हैं। रंगीन महताबियों में पोटेसियम क्लोरेट के साथ विभिन्न धातुओं के लवणों का प्रयोग किया जाता है, जैसे लाल रंग के लिए स्ट्रांशियम का नाइट्रेट या अन्य लवण; हरे के लिए बेरियम का नाइट्रेट या अन्य लवण; पीले के लिए सोडियम कारबोनेट आदि; नीले के लिए तांबे का कारबोनेट या अन्य लवण, जिसमें थोड़ा मरक्यूरस क्लोराइड मिला दिया जाता है। चमक के लिए मैगनीसियम या ऐल्युमिनियम का अत्यंत महीन चूर्ण मिलाया जाता है। बहुधा स्पिरिट में लाह(लाख) का घोल, या पानी में गोंद का घोल या तीसी (अलसी) का तेल मिलाकर अन्य सामग्री को बांध दिया जाता है। अधिकांश रंगीन ज्वाला देनेवाली आतिशबाजी में क्लोरेट और रंग उत्पन्न करनेवाले पदार्थों के अतिरिक्त गंधक तथा कुछ साधारण ज्वलनशील पदार्थ भी रहते हैं, जैसे लाह, कड़ी चर्बी, खनिज मोम, चीनी इत्यादि। उदाहरणस्वरूप दो योग नीचे दिए जाते हैं:

ल महताबी के लिए:
पोटैसियम परक्लोरेट 2 भाग
स्ट्रांशियम नाइट्रेट 9 भाग
गंधक 2 भाग
लाह 2 भाग
हरी महताबी के लिए:
पोटैसियम परक्लोरेट 6 भाग
बेरियम नाइट्रेट 30 भाग
गंधक 3 भाग
लाह 2 भाग

आतिशबाजी के लिए खोल साधारणत: कागज का बनता है। मजबूत खोल के लिए कागज पर लेई या सरेस पोतकर उसे गोल डंडे पर लपेटा जाता है। मुँंह संकरा करने के लिए गीली अवस्था में ही एक ओर डोर कसकर बाँध दी जाती है। जिन खोलों को बारूद का बल नहीं सहन करना पड़ता उनको बिना लेई के ही लपेटते हैं। अंतिम परत पर जरा-सी लेई लगा देते हैं। जो मसाला भरा जाता है उसे कूट-कूटकर खूब कस दिया जाता है और अंत में पलीता (शीघ्र आग पकड़नेवाली डोर, जो पानी में गाढ़ी सनी बारूद में डुबाने और निकालकर सुखाने से बनती है) लगा दिया जाता है।

बाणों के लिए खूब खोल बनाया जाता है। जली गैसों के नीचे मुँह जोर से निकलने के कारण ही बाण ऊपर चढ़ता है। इसलिए आवश्यक है कि बाण के भींतर बारूद जोर से जले। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए बाण से भरी बारूद के बीच में एक पोली शंक्वाकार जगह छोड़ दी जाती है, जिससे बारूद का जलता हुआ क्षेत्रफल अधिक रहे। जलती गैसों के निकलने के लिए मिट्टी की टोंटी लगाई जाती है जिसमें खोल स्वयं न जलने लगे। बाण के माथे पर, जो सबसे अंत में जलता है, एक टोप लगा दिया जाता है, जिसमें रंगबिरंगी पुलझड़ियाँ रहती हैं।

फुलझड़ियाँ अलग भी बनती और बिकती हैं। इनमें अन्य मसालों के अतिरिक्त लोहे की रेतन रहती है। इस्पात की रेतन से फूल अधिक श्वेत होते हैं। काजल डालने से बड़े फूल बनते हैं। जस्ते तथा ऐल्यूमिनियम का भी प्रयोग किया जाता है। एक नुसखा यह है:

पोटैसियम परक्लोरेट 30 भाग
बेरियम नाइट्रेट 5 भाग
ऐल्युमिनियम 22 भाग
लाह 3 भाग

चर्खी में बाँस का ऐसा ढाँचा रहता है जो अपनी धुरी पर नाच सके और इसकी परिधि पर आमने-सामने बाण की तरह बारूद भरी दो नलिकाएँ रहती हैं। बाँस के ढाँचे पर बंधी महताबियों से भली प्रकार के चित्र और अक्षर बनाए जा सकते हैं।[१]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सं.ग्रं.-ए.सेंट.एच. ब्रॉक: पायरोटेकनिक्स (1922)।