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०८:३२, ८ जुलाई २०१८ के समय का अवतरण
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उमर बिन खत्ताब
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 130 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | कैलासचंद्र शर्मा |
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उमर बिन् खत्ताब इस्लाम के प्रवर्तक हज़रत मुहम्मद साहब के प्रिय सोहाबी (मित्र) और श्वसुर। अबू बकर सादिक के उत्तराधिकारी के रूप में मुहम्मद साहब के बाद अगस्त, 634 ई. में इन्हें ख़िलाफत (नमाज पढ़ाने) का कार्य सौंपा गया था। खलीफा होने के बाद इन्होंने सीरिया, फारस, फिनिशिया तथा उतरी अफ्रीका पर विजय प्राप्त की और 637 ई. में जेरूसलम पर अधिकार कर लिया। इनके सेनापतियों ने ईरान और मिस्र पर भी धावे किए थे। अलेक्जैंड़िया की विजय में वहाँ का सुप्रसिद्ध पुस्तकालय ध्वस्त कर दिया गया था। इनके समय में मुसलमानों ने 36000 नगर जीते, 4000 गिरजे तोड़े और 1400 मसजिदें बनवाई थीं। सबसे पहले इन्हीं को 'अमीरुल मोमिनीन्' की उपाधि से विभूषित किया गया था। इनके सात विवाह हुए थे। हज़रत अली की पुत्री उम्म: कुलसूम भी इनकी पत्नी थीं। 3 नंवबर, 644 ई., बुधवार को मसजिद में नमाज पढ़ते समय एक ईरानी गुलाम ने इन्हें तलवार से घायल कर दिया। तीन दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई।
टीका टिप्पणी और संदर्भ