एडवर्ड

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लेख सूचना
एडवर्ड
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2
पृष्ठ संख्या 235
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक कैलासचंद्र शर्मा, राजनाथ

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एडवर्ड इस नाम के अनेक राजा हो गए हैं। इनका विवरण संक्षेप में इस प्रकार है। इनमें से पहला, इंग्लैंड का शासक, जिसे 'एल्डर' की संज्ञा भी मिली, राजा अल्फ्रडे का पुत्र था। उसने डेन सेनाओं को पराजित किया, हंबर के दक्षिण में समूचे इंग्लैंड पर आधिपत्य स्थापित किया तथा वेल्स और सुदूर उत्तर में अपना प्रभुत्व जमाया। उसने नया न्यायविधान स्थापित किया तथा मौलिक और सुंदर शैली के सिक्के प्रसारित किए। इस प्रकार उसने देश को राजनीतिक एकता देने का प्रयत्न किया। 899 ई. में वह सिंहासनारूढ़ हुआ तथा 924 में उसकी मृत्यु हुई।

दूसरा (मृत्यु 1066) इंग्लैंड का संत-बादशाह, कन्फ्रस़ेर नाम से प्रसिद्ध हुआ। उसका अधिकांश बचपन नार्मडी में व्यतीत हुआ। अत: सिंहासनासीन होने पर (1042) इंग्लैंड उसे अपरिचित देश सा लगा। इससे तथा स्वयं शिथिलचित होने के कारण, वह उद्दंड सामंतों पर नियंत्रण न रख सका। राजनीतिक समस्याओं के समाधान की असमर्थता ने उसकी प्रवृत्ति चर्च तथा धर्म की ओर अधिकाधिक मोड़ दी। वेस्ट मिंस्टर के गिरजे की संस्थापना में उसने विशेष सहयोग दिया।

तीसरा, एडवर्ड प्रथम (1229-1307), हेनरी तृतीय का पुत्र था। युवावस्था से ही उसने विस्तृत शासकीय और सामरिक अनुभव प्राप्त कर लिया था। पिता की मृत्यु पर यद्यपि वह 1272 में राजा घोषित कर दिया गया था, तथापि उस समय सिसिली में होने के कारण दो वर्ष बाद वह सिंहासन पर बैठ सका। सिंहासनासीन होने पर अनुभवी तथा परिपक्व राजनीतिज्ञ की तरह उसने समस्याओं का सामना किया। निस्संदेह, वह इंग्लैंड के मध्यकालीन राजाओं में सर्वश्रेष्ठ था। शासकीय दक्षता के कारण ही उसे 'महान्‌ न्यायविधानदाता' की पदवी मिली। उसके विधान का मुख्य ध्येय सामंती शक्ति के विरुद्ध सिंहासन की सत्ता को दृढ़तर करना था। उसने शासकीय प्रणाली की समता में भी अभिवृद्धि की। सामंती संस्था 'महान्‌ कौंसिल' में उसने जो परिवर्तन किए उनमें भावी पार्लियामेंट प्रणाली के तत्व निहित थे। उसके समय में फ्रांस नरेश फ़िलिप चतुर्थ के गास्कनी अधिकृत करने का प्रयत्न विफल रहा। एडवर्ड ब्रिटेन को राजनीतिक एकता प्रदान कराने में भी क्रियाशील रहा, यद्यपि स्काटलैंड में उसे विशेष संघर्ष का सामना करना पड़ा, विशेष रूप से विलियम वालेस तथा राबर्ट ब्रूस के विरुद्ध। ब्रूस के विरुद्ध युद्धयात्रा में, 1702 में, रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो गई।

एडवर्ड द्वितीय (1284-1327) एडवर्ड प्रथम से कांटील की एलीनर से चौथा पुत्र था। उसे इंग्लैंड के राजवंश के इतिहास में प्रथम बार 'प्रिस ऑव वेल्स' की पदवी मिली। वह अयोग्य शासक था। उसकी अभिरुचि केवल खेलकूद, नाटक तथा हस्तशिल्प में थी। शासन की अवहेलना तथा कृपापात्रों के प्रति पक्षपात की उसकी नीति ने सामंतों को उसके प्रति विद्रोह करने को बाध्य किया। अनेक वर्षो तक देश सामंती नेताओं के ही हाथ में रहा। अंतत: एडवर्ड 1327 में सिंहासन से च्युत कर दिया गया, तथा कुछ महीनों बाद उसकी हत्या कर दी गई।

एडवर्ड तृतीय (1312-1377) एडवर्ड द्वितीय का पुत्र था। 25 जनवरी, 1327 को वह सिंहासन पर बैठा। राज्याधिकार पाते ही 1330 में उसने स्काटलैंड को अधिकृत करने का कार्यरंभ कर दिया। हैलिडन हिल में स्काटलैंड की पूरी पराजय हुई। किंतु, तब उसका ध्यान फ्रांस की और बँट गया जिसे वह अपनी माता फ्रांस का इज़बेल, के राज्याधिकार की बिना पर हस्तगत करना चाहता था। तज्जनित युद्ध में कैले को संधि के अनुसार उसे फ्रांस के दक्षिण-पश्चिमी प्रदेश प्राप्त हुए, यद्यपि फ्रांसीसियों ने 1369 में कैले को छोड़कर बाकी प्रदेशों पर पुन: अधिकार स्थापित कर लिया। गृहक्षेत्र में भी उसने यथेष्ट शासन संबंधी योग्यता का परिचय दिया। शासन पर उसने पूर्ण व्यक्तिगत अधिकार जमा लिया। राजसी महत्वाकांक्षाओं से मुक्त होने के कारण सांमत तथा मध्य वर्ग दोनों ही को उसने शासन मे समुचित श्रेय दिया। तभी उसके शासन के 51वर्षो के दीर्घकाल में विशेष आंतरिक उपद्रव नहीं हुए। किंतु, तब भी प्रथम श्रेणी के शासक या सेनानियों में उसकी गणना नहीं की जा सकती, क्योंकि उसकी युद्ध या शासकीय नीति के स्थायी प्रभाव पनप नहीं सके, यद्यपि यह मानना पड़ेगा कि उसके समय में साधारण वर्ग का उत्थान भी संभव हो सका। उसके शासन के अंतिम वर्षो में, उसकी प्रेयसी एलिस के कुप्रभाव के कारण, शासन इतना भ्रष्ट और अव्यवस्थित हो गया कि उसके उत्तराधिकारी रिचर्ड द्वितीय को कठिन परिस्थिति का सामना करना पड़ा।

एडवर्ड चतुर्थ (1442-1483) यार्क के डयूक रिचर्ड का पुत्र था। 4 मार्च, 1461 को वह सिंहासनारूढ़ हुआ। अपने शक्तिशाली संबंधी वरविक के अर्ल की सहायता से उसे राजगद्दी प्राप्त हुई। किंतु, एडवर्ड के लैंकेस्टर वंश की एलिज़ाबेथ वुडविल से गुप्त विवाह कर लेने के कारण दोनों में विच्छेद हो गया। तज्जनित संघर्ष के फलस्वरूप 1470 में एडवर्ड को हालैंड भाग जाना पड़ा। 1471 में वापस लौटकर उसने बार्नेट के युद्ध में वारविक का वध कर दिया। लंदन के टावर (गढ़) में हेनरी छठे की हत्या के बाद एडवर्ड का मार्ग निष्टकंटक हो गया। 1475 में फ्रांस से संधि हुई, जिसमें 11वें लुई ने एडवर्ड को वार्षिक कर देना स्वीकार कर लिया। उसकी वार्षिक आय की वृद्धि तथा सैनिक और शासकीय योग्यता ने उसके शासन को हेनरी छठे के शासन से अधिक प्रभावशाली बना दिया, किंतु वह पूरी व्यवस्था स्थापित न कर सका। उसने व्यवसाय को प्रोत्साहन दिया और सेंट जार्ज के गिरजाघर तथा विंडसर का निर्माण किया और उसने ज्ञान और साहित्य को भी अपना अभिभावकत्व प्रदान किया। उसके आकर्षक व्यक्तित्व ने उसे और भी लोकप्रिय बना दिया; यद्यपि उसके विलासी जीवन ने मृत्यु को उसके निकटतर बुला लिया।

एडवर्ड पंचम (1470-83) ने 9 अप्रैल, 1483 को अपने पिता एडवर्ड चतुर्थ का उत्तराधिकार ग्रहण किया। 26 जून को उसके चाचा तथा अभिभावक ने सिंहासन छीन रिचर्ड तृतीय के नाम से शासन प्रारंभ किया। लंदन के टावर में एडवर्ड और उसके भाई रिचर्ड की हत्या कर दी गई।

एडवर्ड छठा (1537-53) जेन सिमूर से हेनरी अष्टम का पुत्र था। वह प्रारंभ में ही अकालप्रौढ़, अध्ययनशील, शुष्कप्रकृति, चतुर तथा कठोर प्रमाणित हुआ। उसकी अस्वस्थता ने भी संभवत: उसे अंतर्मुखी बना दिया था। उसकी धार्मिक अभिरुचि सुधारकों के ही पक्ष में प्रस्फुटित हुई। अपने अत्यधिक संक्षिप्त शासनकाल के कारण वह इतिहास पर अधिक स्थायी प्रभाव न डाल सका। उसकी कुमारावस्था के कारण, उसके पिता के वसीयतनामें के अनुसार 'कौंसिल ऑव रीजेंसी' की स्थापना की गई, एडवर्ड का चाचा एडवर्ड सिमूर (सामरसेट का ड्यूक), और डडले (नार्थबरलैंड का ड्यूक) जिसके सदस्य थे। एडवर्ड के सिंहासन पर बैठने पर सामरसेट ने शक्ति हस्तगत कर अपने को एडवर्ड का अभिभावक नियुक्त कर लिया। एडवर्ड का राज्यकाल मुख्यत: सामरसेट और नार्थबरलैंड के संघर्ष का ही वृत्तांत है। सामरसेट के अभिभावकत्व काल में एडवर्ड का मेरी स्टुअर्ड से विवाह हुआ, अंगरेजी चर्च के अनुकूल कुछ धार्मिक सुधार किए गए, तथा आर्थिक अव्यवस्था फैली। अंत में, 1549 में उसे अभिभावक के पद से विलग कर 1552 में सामरसेट के विरुद्ध षड्यंत्ररचना के अभियोग में प्राणदंड दे दिया गया। नार्थबरलैंड ने अपने पुत्र का विवाह लेडी जेन ग्रे से, जो हेनरी की वसीयत के अनुसार एडवर्ड, मेरी ट्यूडर और एलिज़ाबेथ के निस्संतान होने पर राज्य की उत्तराधिकारिणी होती, कर दिया। 1553 में एडवर्ड की विषम बीमारी में, नार्थबरलैंड ने जेन ग्रे को सिंहासन की उत्तराधिकारिणी घोषित कराने का विफल प्रयास किया। किंतु, उसी वर्ष एडवर्ड की मृत्यु हो गई, और मेरी इंग्लैंड के सिंहासन पर बैठी

एडवर्ड सप्तम (1841-1910) महारानी विक्टोरिया तथा राजकुमार अलबर्ट का ज्येष्ठ पुत्र था। मातापिता की युवराज को पूर्ण शिक्षित, सुसंस्कृत तथा योग्य बनाने की तीव्र आकांक्षा तथा आग्रह ने उसके व्यक्त्वि को स्वाभाविक रूप से मुखरित होने का यथेष्ट अवसर ही नहीं दिया। अस्तु, वह प्रसन्नचित, मौजी, आरामपसंद, स्नेही प्रकृति का तथा लोकप्रिय राजकुमार होकर ही रह गया। इसी कारण रोम, अमरीका, जहाँ जहाँ उसने यात्राएँ कीं–और उसे यात्राओं के अनेक अवसर भी मिले–उसका खूब स्वागत हुआ। डेन राजकुमारी सुंदरी अलेग्जैंड्रा के साथ उसका विवाह राष्ट्रीय समारोह के रूप में संपन्न हुआ। 1871 की खतरनाक बीमारी ने उसे और भी लोकप्रिय बना दिया। इंग्लैंड के बाहर वह 'यूरोप का चाचा' की संज्ञा से प्रसिद्ध हुआ। फ्रांस के प्रति उसकी सहानुभूति तथा जर्मन नरेश विलहेम द्वितीय के प्रति उसकी अरुचि सामयिक अंतरराष्ट्रीय परिस्थिति के साथ खूब मेल खा गई। किंतु, उसका साधारण व्यक्तित्व सामयिक इतिहास पर कोई विशेष प्रभावचिह्न न छोड़ सका। उसने अपनी वैधानिक तथा बौद्धिक सीमाओं के उल्लंघन का कभी प्रयास नहीं किया। पार्लियामेंट के दोनों सदनों के संघर्ष में भी उसने किसी पक्षपात का प्रदर्शन नहीं किया। जनसाधारण ने उसे सदैव अमित स्नेह दिया तथा उसकी मृत्यु पर आंतरिक शोक प्रगट किया।


एडवर्ड अष्टम (1894-1972) इंग्लैंड के सम्राट् जो केवल 325 दिन सिंहासनारूढ़ रहे। इनका जन्म 23 जून, 1894 ई. को ह्वाइट लॉज, रिचमंड, सरे में हुआ। ये जार्ज पंचम के ज्येष्ठ पुत्र थे और इनकी शिक्षा दीक्षा आसबर्न (डार्टमथ) तथा मैगडैलेन कालेज (ऑक्सफोर्ड) में संपन्न हुई। 'प्रिंस ऑव वेल्स' की हैसियत से इन्होंने ब्रिटिश नौसेना तथा प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश स्थलसेना में कार्य किया। 20 जनवरी, 1936 ई. को ये राजगद्दी पर बैठे और इसी वर्ष 11 दिसंबर को इसलिए राजसत्ता का परित्याग कर दिया कि ये श्रीमती सिंपसन नामक महिला से अत्यधिक प्रेम करते थे और उससे विवाह करना चाहते थे। लेकिन इंग्लैंड की ससंद् राजघराने के सदस्य तथा सर्वसाधारण उक्त विवाह के विरुद्ध थे।

श्रीमती सिपंसन 1896 ई. में पैदा हुई और 1916 ई. में उन्होंने अमरीकी नौसेना के लेफ़्टिनेंट श्री ई. डब्ल्यू. स्पेंसर से विवाह किया लेकिन 1927 ई. में स्पेंसर से उनका संबंध विच्छेद हो गया और अगले ही वर्ष उन्होंने लंदन में श्री अर्नेस्ट सिंपसन नामक अंग्रेज से, जिनका जन्म अमरीका में हुआ था, विवाह कर लिया।

एडवर्ड अष्टम से श्रीमती सिंपसन का परिचय 1930 ई. में एक प्रतिभोज के अवसर पर हुआ। पश्चात्‌ दोनों के बीच घनिष्ठता बढ़ती चली गई और अंत में यह घनिष्ठता प्रगाढ़ प्रेम में परिणत हो गई। 1936 ई. में श्रीमती सिंपसन ने अपने पति को तलाक दे दिया। 3 जून, 1937 ई. को एडवर्ड अष्टम का, जो अब ब्रिटेन के सम्राट् न होकर मात्र 'डयूक ऑव विंडसर' थे, विवाह श्रीमती सिंपसन से हो गया और वे 'डचेज़ ऑव विंडसर' कहलाने लगीं। 1940-45 ई. के दौरान ड्यूक बहामाज़ के गवर्नर रहे और बाद में पेरिस (फ्रांस) में प्रवासी जीवन व्यतीत करने लगे जहाँ 28 मई, 1972 ई. को उनका देहांत हो गया। मृत्यु से 10 दिन पूर्व उनकी भतीजी, ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ ने उनसे उनके पेरिस स्थित आवास पर मुलाकात की थी और मृत्यु के समय उनकी प्रेमिका पत्नी उनके पास थी।

ड्यूक ऑव विंडसर सच्चे प्रेम के प्रतीक थे। प्रेम के लिए उन्होंने गहरा मूल्य चुकाया था। खुशी खुशी राजसिंहासन का परित्याग कर उन्होंने प्रेमगाथा का नया और अनुपम इतिहास बनाया है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ