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कार्ल फ्रीड्रिख गौस
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4 |
पृष्ठ संख्या | 50 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | फूलदेव सहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | रत्न कुमारी |
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कार्ल फ्रीड्रिख गौस (Karl Friedrich,Gauss, सन् १७७७-१८५५), जर्मन गणितज्ञ, का जन्म ३० अप्रैल, १७७७ ई. को ब्रंज़विक के एक राजपरिवार में हुआ था। बाल्यावस्था में इनकी गणना करने की अद्भुत योग्यता से प्रभावित होकर ब्रंज़विक के ड्यूक ने इनकी शिक्षा का भार ग्रहण कर लिया। १८०७ ई. में ये गौटिंजन की वेधशाला के संचालक नियुक्त हुए और आजीवन इसी पद पर रहे। ये अपने अन्वेषणों को प्रकाशित करके प्राथमिकता प्राप्त करने के कभी इच्छुक नहीं रहे।
गणित को गौस की देनें अपूर्व हैं। सर्वप्रथम इन्होंने ही अनंत श्रेणियों का निर्दोष रूप से वर्णन किया, सारणियों एवं कल्पित राशियों की महत्ता को पहचाना तथा इनका विधिवत् प्रयोग किया, लघुतम वर्गों की विधि का अन्वेषण किया और दीर्घवृत्तीय फलनों के द्विक्आवर्तक को ज्ञात किया। इनके प्रसिद्ध ग्रंथ 'दिस्कुइजिस्योनेस अरितमेतिके' (Disquisitiones Arithmeticoe १८०१ ई.) के चतुर्थ भाग में सर्वांगसमता के सिद्धांत एवं वर्गात्मक व्युत्क्रमी के नियम का (जिसमें वर्गात्मक शेष के सिद्धांत का समावेश है), पंचम भाग में वर्गात्मक रूपों और सप्तम तथा अंतिम भाग में वृत्त के भाग के सिद्धांत का वर्णन है। इन्होंने चतुर्घातीय शेष एवं व्युत्क्रमी, समांशिक दीर्घवृत्तजीय आकर्षण एवं केशाकर्षण, भूमापन विज्ञान और ग्रहों एवं पुच्छल तारों की गति ज्ञात करने के नियमों पर भी शोधपत्र लिखे। इन्होंने हेलियोट्रोप (Heliotrope) और दिक्पात यंत्रों का निर्माण भी किया। २३ फरवरी, सन् १८५३ को इनका देहांत हो गया।
टीका टिप्पणी और संदर्भ