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किंग लियर शेक्स्‌पियर का इंगलैंड के प्राचीन इतिहास से संबंधित एक दु:खांत नाटक। इसका प्रथम अभिनय सन्‌ 1६०६ ई. तथा प्रथम प्रकाशन सन्‌ 1६०८ ई. में हुआ। इसकी कथावस्तु इस प्रकार है-
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किंग लियर शेक्स्‌पियर का इंगलैंड के प्राचीन इतिहास से संबंधित एक दु:खांत नाटक। इसका प्रथम अभिनय सन्‌ 16०6 ई. तथा प्रथम प्रकाशन सन्‌ 16०८ ई. में हुआ। इसकी कथावस्तु इस प्रकार है-
  
 
प्राचीन समय में किंग लियर इंग्लैंड का राजा था। वह स्वभाव से क्रोधी एवं विवेकरहित था। वृद्धावस्था के कारण अपना राज्य अपनी पुत्रियों को देकर वह चिंतामुक्त जीवन व्यतीत करना चाहता था। अतएव अपनी तीनों पुत्रियों-गोनेरिल, रीगन और कारडीलिया-को बुलाया और उनसे पूछा कि वे उसे कितना प्यार करती हैं। गोनेरिल का विवाह ड्यूक ऑव एलबेनी से और रीगन का ड्यूक ऑव कार्नवाल से हो चुका था तथा ड्यूक ऑव बरगंडी और फ्रांस का राजा दोनों ही कारडीलिया से परिणय के इच्छुक थे। गोनेरिल एवं रगीन ने पिता के प्रति अपना असीम स्नेह खूब बढ़ा चढ़ाकर प्रकट किया, किंतु कारडीलिया ने इने-गिने शब्दों में कहा कि वह अपने पिता को उतना ही प्यार करती है जितना उचित है, न कम, न अधिक। इस उत्तर से रुष्ट होकर किंग लियर ने कारडीलिया को तीसरा भाग न देकर अपने राज्य को गोनेरिल और रीगन में बराबर भागों में बाँट दिया। गोनेरिल और रीगन ने लियर एवं उनके साथियों तथा उनके सौ सामंतों को बारी -बारी से अपने साथ रखने का वचन दिया। राज्य का अंश न मिलने पर कारडीलिया फ्रांस के राजा के साथ देश से बाहर चली गई। लियर अपने साथियों सहित क्रमश: गोनेरिल और रीगन के पास रहने के लिए गया, किंतु दोनों ने अपने वृद्ध पिता के प्रति अत्यंत कठोर और स्वार्थपूर्ण व्यवहार किया। फलत: लियर तीव्र मानसिक आवेग की अवस्था में आंधी और वर्षा का प्रकोप झेलते हुए व्यग्र होकर इधर उधर भटकने लगा और अंत में विक्षिप्त हो गया। इन सभी अवस्थाओं में उसके स्नेही अनुचर अर्ल ऑव केंट और उनके विदूषक उसको निरंतर सांत्वना और सहायता प्रदान करते रहे।
 
प्राचीन समय में किंग लियर इंग्लैंड का राजा था। वह स्वभाव से क्रोधी एवं विवेकरहित था। वृद्धावस्था के कारण अपना राज्य अपनी पुत्रियों को देकर वह चिंतामुक्त जीवन व्यतीत करना चाहता था। अतएव अपनी तीनों पुत्रियों-गोनेरिल, रीगन और कारडीलिया-को बुलाया और उनसे पूछा कि वे उसे कितना प्यार करती हैं। गोनेरिल का विवाह ड्यूक ऑव एलबेनी से और रीगन का ड्यूक ऑव कार्नवाल से हो चुका था तथा ड्यूक ऑव बरगंडी और फ्रांस का राजा दोनों ही कारडीलिया से परिणय के इच्छुक थे। गोनेरिल एवं रगीन ने पिता के प्रति अपना असीम स्नेह खूब बढ़ा चढ़ाकर प्रकट किया, किंतु कारडीलिया ने इने-गिने शब्दों में कहा कि वह अपने पिता को उतना ही प्यार करती है जितना उचित है, न कम, न अधिक। इस उत्तर से रुष्ट होकर किंग लियर ने कारडीलिया को तीसरा भाग न देकर अपने राज्य को गोनेरिल और रीगन में बराबर भागों में बाँट दिया। गोनेरिल और रीगन ने लियर एवं उनके साथियों तथा उनके सौ सामंतों को बारी -बारी से अपने साथ रखने का वचन दिया। राज्य का अंश न मिलने पर कारडीलिया फ्रांस के राजा के साथ देश से बाहर चली गई। लियर अपने साथियों सहित क्रमश: गोनेरिल और रीगन के पास रहने के लिए गया, किंतु दोनों ने अपने वृद्ध पिता के प्रति अत्यंत कठोर और स्वार्थपूर्ण व्यवहार किया। फलत: लियर तीव्र मानसिक आवेग की अवस्था में आंधी और वर्षा का प्रकोप झेलते हुए व्यग्र होकर इधर उधर भटकने लगा और अंत में विक्षिप्त हो गया। इन सभी अवस्थाओं में उसके स्नेही अनुचर अर्ल ऑव केंट और उनके विदूषक उसको निरंतर सांत्वना और सहायता प्रदान करते रहे।

०७:३८, १८ अगस्त २०११ का अवतरण

लेख सूचना
किंग लियर
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 1
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक रामअवध द्विवेदी.

किंग लियर शेक्स्‌पियर का इंगलैंड के प्राचीन इतिहास से संबंधित एक दु:खांत नाटक। इसका प्रथम अभिनय सन्‌ 16०6 ई. तथा प्रथम प्रकाशन सन्‌ 16०८ ई. में हुआ। इसकी कथावस्तु इस प्रकार है-

प्राचीन समय में किंग लियर इंग्लैंड का राजा था। वह स्वभाव से क्रोधी एवं विवेकरहित था। वृद्धावस्था के कारण अपना राज्य अपनी पुत्रियों को देकर वह चिंतामुक्त जीवन व्यतीत करना चाहता था। अतएव अपनी तीनों पुत्रियों-गोनेरिल, रीगन और कारडीलिया-को बुलाया और उनसे पूछा कि वे उसे कितना प्यार करती हैं। गोनेरिल का विवाह ड्यूक ऑव एलबेनी से और रीगन का ड्यूक ऑव कार्नवाल से हो चुका था तथा ड्यूक ऑव बरगंडी और फ्रांस का राजा दोनों ही कारडीलिया से परिणय के इच्छुक थे। गोनेरिल एवं रगीन ने पिता के प्रति अपना असीम स्नेह खूब बढ़ा चढ़ाकर प्रकट किया, किंतु कारडीलिया ने इने-गिने शब्दों में कहा कि वह अपने पिता को उतना ही प्यार करती है जितना उचित है, न कम, न अधिक। इस उत्तर से रुष्ट होकर किंग लियर ने कारडीलिया को तीसरा भाग न देकर अपने राज्य को गोनेरिल और रीगन में बराबर भागों में बाँट दिया। गोनेरिल और रीगन ने लियर एवं उनके साथियों तथा उनके सौ सामंतों को बारी -बारी से अपने साथ रखने का वचन दिया। राज्य का अंश न मिलने पर कारडीलिया फ्रांस के राजा के साथ देश से बाहर चली गई। लियर अपने साथियों सहित क्रमश: गोनेरिल और रीगन के पास रहने के लिए गया, किंतु दोनों ने अपने वृद्ध पिता के प्रति अत्यंत कठोर और स्वार्थपूर्ण व्यवहार किया। फलत: लियर तीव्र मानसिक आवेग की अवस्था में आंधी और वर्षा का प्रकोप झेलते हुए व्यग्र होकर इधर उधर भटकने लगा और अंत में विक्षिप्त हो गया। इन सभी अवस्थाओं में उसके स्नेही अनुचर अर्ल ऑव केंट और उनके विदूषक उसको निरंतर सांत्वना और सहायता प्रदान करते रहे।

अर्ल ऑव ग्लस्टर के निवासस्थान पर रीगन और ड्यूक ऑव कार्नवाल के किंग लियर की भेंट हुई। ग्लस्टर अत्यंत सहृदय था। उसने लियर के प्रति पुत्रियों द्धारा किए गए दुर्व्यवहार की भर्त्सना की। इससे अप्रसन्न होकर कार्नवाल ने उसकी दोनों आँखें निकलवा लीं। नेत्रहीन ग्लस्टर की सहायता उनके पुत्र एडगर ने की। अपने पिता को लेकर वह छद्म वेष में विभिन्न स्थानों पर घूमता रहा। ग्लस्टर के जारज पुत्र एडमंड ने जो स्वभाव से ही नीच एवं कुचक्री था, अपने पिता के मन में सरल एवं उदार एडगर के प्रति गंभीर संदेह उत्पन्न कर दिया। गोनेरिल और रीगन दोनों को एडमंड को प्यार करती थींं; इसी कारण अंत में दोनों की मत्यु भी हुई। गोनेरिल ने ईर्ष्यावश रीगन को विषपान कराया और स्वयं आत्महत्या कर ली। नेत्रहीन ग्लस्टर और विक्षिप्त लियर इधर-उधर भटकते रहे। इसी बीच कारडीलिया फ्रांसीसी सेना के साथ अपने पिता की सहायता के लिए इंग्लैंड आई। कारडीलिया और लियर का मिलन हुआ। चिकित्सा और पुत्री की स्नेहपूर्ण परिचर्या के फलस्वरूप लियर का मानसिक संतुलन कुछ ठीक हुआ। किंतु दुर्भाग्यवश युद्ध में फ्रांसीसी सेना पराजित हुई और एडमंड ने लियर और कारडीलिया को कारावास में डाल दिया। कारडीलिया को फांसी दे दी गई और दु:ख के कारण लियर की मृत्यु हो गई। एडगर और एडमंड के द्वंद्व में एडमंड की भी मृत्यु हुई और अंत में राज्य पर ड्यूक ऑव एलबेनी का अधिकार हुआ जिसने सज्जन होने के कारण अपनी पत्नी गोनेरिल के दुष्कृत्यों का कभी समर्थन नहीं किया था।

इस कृति में दैवी और आसुरी प्रवृत्तियों का घोर संघर्ष व्यक्त किया गया है। इस नाटक से करुणा और भय की तीव्र अनुभूति होती है। काव्यात्मक प्रभाव के लिए यह अनुपम है।