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*गोमेध यज्ञविशेष। इस यज्ञ में गो का आलंभन किया जाता है, अत: इसके लिये गवालंभ शब्द भी प्रयुक्त होता है। पहले अनेक अवसरों पर गो या वृष का वध किया जाता था, (हिस्ट्री ऑव धर्मशास्त्र, भाग 2, पृ. 627)। मधुपर्क में गोवध भी बहुधा कहा गया है।<ref>वही, भाग 2, पृ. 543-545</ref>  
 
*गोमेध यज्ञविशेष। इस यज्ञ में गो का आलंभन किया जाता है, अत: इसके लिये गवालंभ शब्द भी प्रयुक्त होता है। पहले अनेक अवसरों पर गो या वृष का वध किया जाता था, (हिस्ट्री ऑव धर्मशास्त्र, भाग 2, पृ. 627)। मधुपर्क में गोवध भी बहुधा कहा गया है।<ref>वही, भाग 2, पृ. 543-545</ref>  
*श्राद्ध में भी गोवध का प्रसंग है। शूलगव में भी वृषवध उल्लिखित हुआ है।<ref>वही, भाग 2, पृ.831-532</ref>बाद में ये कर्म कलिवर्ज्य मान लिए गए हैं।<ref>वही, भाग 3, पृ. 939-94०</ref>
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*श्राद्ध में भी गोवध का प्रसंग है। शूलगव में भी वृषवध उल्लिखित हुआ है।<ref>वही, भाग 2, पृ.831-532</ref>बाद में ये कर्म कलिवर्ज्य मान लिए गए हैं।<ref>वही, भाग 3, पृ. 939-940</ref>
 
*गोमेध या गोसव के विशिष्ट विवरण अनेकत्र हैं, जिससे यह निश्चित होता है कि प्राचीनकाल में यज्ञ में गोवध वैध रूप से किया जाता था। बाद में हानि देखकर क्रमश: यह प्रथा त्याज्य हो गई। चरकसंहिता सदृश प्रामाणिक ग्रंथ में यज्ञीय गोवध पर कहा गया है कि पृष्घ्रा ने पहले गोवध किया था।  
 
*गोमेध या गोसव के विशिष्ट विवरण अनेकत्र हैं, जिससे यह निश्चित होता है कि प्राचीनकाल में यज्ञ में गोवध वैध रूप से किया जाता था। बाद में हानि देखकर क्रमश: यह प्रथा त्याज्य हो गई। चरकसंहिता सदृश प्रामाणिक ग्रंथ में यज्ञीय गोवध पर कहा गया है कि पृष्घ्रा ने पहले गोवध किया था।  
 
*गोमेध और पशुयज्ञसंबंधी विशिष्ट तथ्य इतिहासपुराणों में हैं और पूर्वव्याख्याकारों ने उसे गोपशु का साक्षात्‌ वध ही माना है।
 
*गोमेध और पशुयज्ञसंबंधी विशिष्ट तथ्य इतिहासपुराणों में हैं और पूर्वव्याख्याकारों ने उसे गोपशु का साक्षात्‌ वध ही माना है।

१२:००, १८ अगस्त २०११ का अवतरण

  • गोमेध यज्ञविशेष। इस यज्ञ में गो का आलंभन किया जाता है, अत: इसके लिये गवालंभ शब्द भी प्रयुक्त होता है। पहले अनेक अवसरों पर गो या वृष का वध किया जाता था, (हिस्ट्री ऑव धर्मशास्त्र, भाग 2, पृ. 627)। मधुपर्क में गोवध भी बहुधा कहा गया है।[१]
  • श्राद्ध में भी गोवध का प्रसंग है। शूलगव में भी वृषवध उल्लिखित हुआ है।[२]बाद में ये कर्म कलिवर्ज्य मान लिए गए हैं।[३]
  • गोमेध या गोसव के विशिष्ट विवरण अनेकत्र हैं, जिससे यह निश्चित होता है कि प्राचीनकाल में यज्ञ में गोवध वैध रूप से किया जाता था। बाद में हानि देखकर क्रमश: यह प्रथा त्याज्य हो गई। चरकसंहिता सदृश प्रामाणिक ग्रंथ में यज्ञीय गोवध पर कहा गया है कि पृष्घ्रा ने पहले गोवध किया था।
  • गोमेध और पशुयज्ञसंबंधी विशिष्ट तथ्य इतिहासपुराणों में हैं और पूर्वव्याख्याकारों ने उसे गोपशु का साक्षात्‌ वध ही माना है।
  • एक गोसव नामक एकाह सोमयज्ञ है।[४]इस यज्ञ का विचित्र वर्णन है। वत्सर पर्यंत इस कर्म को करनेवाला पशुव्रत पदवाच्य होता है।[५]गोसव संबंधी विवरण यज्ञतत्वप्रकाश में द्रष्टव्य है।[६]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वही, भाग 2, पृ. 543-545
  2. वही, भाग 2, पृ.831-532
  3. वही, भाग 3, पृ. 939-940
  4. तै.ब्रा. 2/7/6
  5. आ.श्रौ.सू.
  6. पृ. 124