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गोर हेलमन घाटी तथा हिरात के मध्य का वह भाग जिसमें आधुनिक हजारिस्तान सम्मिलित है। 1०वीं सती ई. में, इब्ने होकल नामक भूगोलवेत्ता के अनुसार यह स्थान बड़ा ही आबाद एवं चाँदी तथा सोने की खानों के लिये प्रसिद्ध था। 11४८ तथा 1२1५ ई. के मध्य, साम के वंशज गोरी सुल्तानों के कारण इस स्थान को बड़ी प्रसिद्धि प्राप्त हो। 11४९ ई. में बहाउद्दीन साम ने गोर पर अधिकार जमा लिया और ज़कोह ने किले को पूरा करवा कर उसे सेना के रहने के योग्य बनाया, शीघ्र ही उसकी मृत्यु हो गई और उसके स्थान पर उसका भाई अलाउद्दीन सिंहासनारूढ़ हुआ। उसने गज़नी पर आक्रमण कर उसे नष्टभ्रष्ट कर और गजनवी सुल्तानों की कब्रों से उनकी हड्डियाँ खोद-खोदकर जलवा डालीं इसी कारण उसका नाम अलाउद्दीन जहाँसोज़ (संसार को जलानेवाला) पड़ गया। किंतु कुछ समय उपरांत सुल्तान सजर सलजूक ने उसपर आक्रमण कर उसे परजित कर दिया। अलाउद्दीन बंदी बना लिया गया किंतु संजर ने कुछ समय उपरात उसे मुक्त कर गोर का राज्य उसे वापस कर दिया। उसने अपनी शक्ति उत्तर की ओर गरजिस्तान में बढ़ा ली और तूलक नामक किले को अपने अधिकार में कर लिया। (11५६. ई.) में उसकी मृत्यु हो गई और उसके स्थान पर उसका पुत्र सैफुद्दीन मुहम्मद फीरोजकोह में सिंहासनारूढ़ हुआ। उसने साम के दोनों पुत्रों गयासुद्दीन तथा मुईजुद्दीन को मुक्त कर दिया और मलाहिदा अथवा इस्माईलियों की शक्ति को भी नष्ट करने का प्रयत्न किया किंतु 11६२ ई. में व गुज़ तुर्कों से युद्ध करता हुआ मर्व के समीप मारा गया। सेना गयासुद्दीन बिन साम के साथ फीरोजकोह लौट आई और उसे वहाँ सिंहासनारूढ़ कर दिया। उसका भाई मुईनुद्दीन उसका मुख्य सहायक बन गया। 11७३ ई. में मुईजुद्दीन ने गजनवियों के पूरे राज्य को अपने अधिकार में कर लिया। गयासुद्दीन ने हिरात पर भी आक्रमण किए जो उस समय सुल्तान संजर के तुर्क दास तुगरिल के अधीन था और 11७५ ई. में उसपर अधिकार जमा लिया। किंतु तुगरिल निरंतर अपने राज्य के लिये संघर्ष करता रहा।  
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गोर हेलमन घाटी तथा हिरात के मध्य का वह भाग जिसमें आधुनिक हजारिस्तान सम्मिलित है। 1०वीं सती ई. में, इब्ने होकल नामक भूगोलवेत्ता के अनुसार यह स्थान बड़ा ही आबाद एवं चाँदी तथा सोने की खानों के लिये प्रसिद्ध था। 11४८ तथा 121५ ई. के मध्य, साम के वंशज गोरी सुल्तानों के कारण इस स्थान को बड़ी प्रसिद्धि प्राप्त हो। 11४९ ई. में बहाउद्दीन साम ने गोर पर अधिकार जमा लिया और ज़कोह ने किले को पूरा करवा कर उसे सेना के रहने के योग्य बनाया, शीघ्र ही उसकी मृत्यु हो गई और उसके स्थान पर उसका भाई अलाउद्दीन सिंहासनारूढ़ हुआ। उसने गज़नी पर आक्रमण कर उसे नष्टभ्रष्ट कर और गजनवी सुल्तानों की कब्रों से उनकी हड्डियाँ खोद-खोदकर जलवा डालीं इसी कारण उसका नाम अलाउद्दीन जहाँसोज़ (संसार को जलानेवाला) पड़ गया। किंतु कुछ समय उपरांत सुल्तान सजर सलजूक ने उसपर आक्रमण कर उसे परजित कर दिया। अलाउद्दीन बंदी बना लिया गया किंतु संजर ने कुछ समय उपरात उसे मुक्त कर गोर का राज्य उसे वापस कर दिया। उसने अपनी शक्ति उत्तर की ओर गरजिस्तान में बढ़ा ली और तूलक नामक किले को अपने अधिकार में कर लिया। (11५६. ई.) में उसकी मृत्यु हो गई और उसके स्थान पर उसका पुत्र सैफुद्दीन मुहम्मद फीरोजकोह में सिंहासनारूढ़ हुआ। उसने साम के दोनों पुत्रों गयासुद्दीन तथा मुईजुद्दीन को मुक्त कर दिया और मलाहिदा अथवा इस्माईलियों की शक्ति को भी नष्ट करने का प्रयत्न किया किंतु 11६2 ई. में व गुज़ तुर्कों से युद्ध करता हुआ मर्व के समीप मारा गया। सेना गयासुद्दीन बिन साम के साथ फीरोजकोह लौट आई और उसे वहाँ सिंहासनारूढ़ कर दिया। उसका भाई मुईनुद्दीन उसका मुख्य सहायक बन गया। 11७३ ई. में मुईजुद्दीन ने गजनवियों के पूरे राज्य को अपने अधिकार में कर लिया। गयासुद्दीन ने हिरात पर भी आक्रमण किए जो उस समय सुल्तान संजर के तुर्क दास तुगरिल के अधीन था और 11७५ ई. में उसपर अधिकार जमा लिया। किंतु तुगरिल निरंतर अपने राज्य के लिये संघर्ष करता रहा।  
  
मुईजुद्दीन ने गजनी में अपनी सत्ता बढ़ाकर हिंदुस्तान पर आक्रमण करने प्रारंभ कर दिए। उस समय लाहौर में गजनवियों का अंतिम बादशाह खुसरो मलिक राज्य करता था और मुल्तान करामतियों के अधिकार में था। मुईजुद्दीन ने 11७४ ई. में मुल्तान और उसके उपरांत उच्च पर अधिकार कर लिया। उच्च उस समय भट्टी वंश के राजा के अधीन था। 11७८ ई. में अन्हिलवाड़ा (गुजरात) के राजा भीमदेव पर आक्रमण कर दिया किंतु-सुल्तान को वापस होना पड़ा। 11७९ ई. में उसने पेशावर पर अधिकार किया। 11८२ ई. में उसने सिंध के समुद्री तट पर स्थित देवल को जीता। 11८६ अथवा 11८७ ई. में उसने खुसरो मलिक को पराजित कर लाहौर पर कब्जा कर लिया। 11९1 ई. में भटिंडा के दृढ़ किले पर अधिकार कर उसने पृथ्वीराज पर चढ़ाई की। तलवड़ी (तरायन) के युद्ध में पृथ्वीराज ने मुईजुद्दीन को बुरी तरह पराजित कर दिया और सुल्तान स्वयं बड़ी कठिनाई से रणक्षेत्र से भाग सका। पृथ्वीराज भटिंडा तक बढ़ता चला गया किंतु 11९२ ई. में सुल्तान ने पुन: पृथ्वीराज पर आक्रमण किया और तलवड़ी (तरायन) के युद्ध में उसे पराजित कर दिया। सुल्तान गजनी वापस चला गया। 11९३ ई. में उसने कन्नौज पर आक्रमण किया। इटावा के समीप चंदवार में घोर युद्ध हुआ। जयचंद मारा गया। दूसरे वर्ष उसने थनकिर (ब्याना) तथा ग्वालियर पर भी अधिकार कर लिय। 1२०४ ई. में उसने ख्वारिज्म पर पुन: आक्रमण किया किंतु उसे पराजित होकर गजनी वापस आना पड़ा। इसी बीच में पंजाब के कबीलों, विशेषकर खोक्खरों ने लाहौर के समीप विद्रोह कर दिया। सुल्तान उन्हें दंड देने के लिये पुन: हिंदुस्तान पहुँचा किंतु वापस होते समय सिंध नदी पर स्थित दमियक नामक स्थान पर मुलहिदों ने 1२०६ में उसकी हत्या कर दी। उसकी मृत्यु के उपरांत गोर वंश की भी शक्ति छिन्न भिन्न हो गई और 1२1५ ई. में ख्वरिज्मशाहियों ने उनका पूर्णत: अंत कर दिया।
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मुईजुद्दीन ने गजनी में अपनी सत्ता बढ़ाकर हिंदुस्तान पर आक्रमण करने प्रारंभ कर दिए। उस समय लाहौर में गजनवियों का अंतिम बादशाह खुसरो मलिक राज्य करता था और मुल्तान करामतियों के अधिकार में था। मुईजुद्दीन ने 11७४ ई. में मुल्तान और उसके उपरांत उच्च पर अधिकार कर लिया। उच्च उस समय भट्टी वंश के राजा के अधीन था। 11७८ ई. में अन्हिलवाड़ा (गुजरात) के राजा भीमदेव पर आक्रमण कर दिया किंतु-सुल्तान को वापस होना पड़ा। 11७९ ई. में उसने पेशावर पर अधिकार किया। 11८2 ई. में उसने सिंध के समुद्री तट पर स्थित देवल को जीता। 11८६ अथवा 11८७ ई. में उसने खुसरो मलिक को पराजित कर लाहौर पर कब्जा कर लिया। 11९1 ई. में भटिंडा के दृढ़ किले पर अधिकार कर उसने पृथ्वीराज पर चढ़ाई की। तलवड़ी (तरायन) के युद्ध में पृथ्वीराज ने मुईजुद्दीन को बुरी तरह पराजित कर दिया और सुल्तान स्वयं बड़ी कठिनाई से रणक्षेत्र से भाग सका। पृथ्वीराज भटिंडा तक बढ़ता चला गया किंतु 11९2 ई. में सुल्तान ने पुन: पृथ्वीराज पर आक्रमण किया और तलवड़ी (तरायन) के युद्ध में उसे पराजित कर दिया। सुल्तान गजनी वापस चला गया। 11९३ ई. में उसने कन्नौज पर आक्रमण किया। इटावा के समीप चंदवार में घोर युद्ध हुआ। जयचंद मारा गया। दूसरे वर्ष उसने थनकिर (ब्याना) तथा ग्वालियर पर भी अधिकार कर लिय। 12०४ ई. में उसने ख्वारिज्म पर पुन: आक्रमण किया किंतु उसे पराजित होकर गजनी वापस आना पड़ा। इसी बीच में पंजाब के कबीलों, विशेषकर खोक्खरों ने लाहौर के समीप विद्रोह कर दिया। सुल्तान उन्हें दंड देने के लिये पुन: हिंदुस्तान पहुँचा किंतु वापस होते समय सिंध नदी पर स्थित दमियक नामक स्थान पर मुलहिदों ने 12०६ में उसकी हत्या कर दी। उसकी मृत्यु के उपरांत गोर वंश की भी शक्ति छिन्न भिन्न हो गई और 121५ ई. में ख्वरिज्मशाहियों ने उनका पूर्णत: अंत कर दिया।
  
  

०७:०९, १४ अगस्त २०११ का अवतरण

लेख सूचना
गोर
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4
पृष्ठ संख्या 26
भाषा हिन्दी देवनागरी
लेखक तबकाते नासिरी
संपादक फूलदेव सहाय वर्मा
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
स्रोत तबकाते नासिरी; ताजुल मआसिर; तारीख फ्रखूद्दीन मुबारक शाह; रिजबी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक सैयद अतहर अब्बास रिज़वी.

गोर हेलमन घाटी तथा हिरात के मध्य का वह भाग जिसमें आधुनिक हजारिस्तान सम्मिलित है। 1०वीं सती ई. में, इब्ने होकल नामक भूगोलवेत्ता के अनुसार यह स्थान बड़ा ही आबाद एवं चाँदी तथा सोने की खानों के लिये प्रसिद्ध था। 11४८ तथा 121५ ई. के मध्य, साम के वंशज गोरी सुल्तानों के कारण इस स्थान को बड़ी प्रसिद्धि प्राप्त हो। 11४९ ई. में बहाउद्दीन साम ने गोर पर अधिकार जमा लिया और ज़कोह ने किले को पूरा करवा कर उसे सेना के रहने के योग्य बनाया, शीघ्र ही उसकी मृत्यु हो गई और उसके स्थान पर उसका भाई अलाउद्दीन सिंहासनारूढ़ हुआ। उसने गज़नी पर आक्रमण कर उसे नष्टभ्रष्ट कर और गजनवी सुल्तानों की कब्रों से उनकी हड्डियाँ खोद-खोदकर जलवा डालीं इसी कारण उसका नाम अलाउद्दीन जहाँसोज़ (संसार को जलानेवाला) पड़ गया। किंतु कुछ समय उपरांत सुल्तान सजर सलजूक ने उसपर आक्रमण कर उसे परजित कर दिया। अलाउद्दीन बंदी बना लिया गया किंतु संजर ने कुछ समय उपरात उसे मुक्त कर गोर का राज्य उसे वापस कर दिया। उसने अपनी शक्ति उत्तर की ओर गरजिस्तान में बढ़ा ली और तूलक नामक किले को अपने अधिकार में कर लिया। (11५६. ई.) में उसकी मृत्यु हो गई और उसके स्थान पर उसका पुत्र सैफुद्दीन मुहम्मद फीरोजकोह में सिंहासनारूढ़ हुआ। उसने साम के दोनों पुत्रों गयासुद्दीन तथा मुईजुद्दीन को मुक्त कर दिया और मलाहिदा अथवा इस्माईलियों की शक्ति को भी नष्ट करने का प्रयत्न किया किंतु 11६2 ई. में व गुज़ तुर्कों से युद्ध करता हुआ मर्व के समीप मारा गया। सेना गयासुद्दीन बिन साम के साथ फीरोजकोह लौट आई और उसे वहाँ सिंहासनारूढ़ कर दिया। उसका भाई मुईनुद्दीन उसका मुख्य सहायक बन गया। 11७३ ई. में मुईजुद्दीन ने गजनवियों के पूरे राज्य को अपने अधिकार में कर लिया। गयासुद्दीन ने हिरात पर भी आक्रमण किए जो उस समय सुल्तान संजर के तुर्क दास तुगरिल के अधीन था और 11७५ ई. में उसपर अधिकार जमा लिया। किंतु तुगरिल निरंतर अपने राज्य के लिये संघर्ष करता रहा।

मुईजुद्दीन ने गजनी में अपनी सत्ता बढ़ाकर हिंदुस्तान पर आक्रमण करने प्रारंभ कर दिए। उस समय लाहौर में गजनवियों का अंतिम बादशाह खुसरो मलिक राज्य करता था और मुल्तान करामतियों के अधिकार में था। मुईजुद्दीन ने 11७४ ई. में मुल्तान और उसके उपरांत उच्च पर अधिकार कर लिया। उच्च उस समय भट्टी वंश के राजा के अधीन था। 11७८ ई. में अन्हिलवाड़ा (गुजरात) के राजा भीमदेव पर आक्रमण कर दिया किंतु-सुल्तान को वापस होना पड़ा। 11७९ ई. में उसने पेशावर पर अधिकार किया। 11८2 ई. में उसने सिंध के समुद्री तट पर स्थित देवल को जीता। 11८६ अथवा 11८७ ई. में उसने खुसरो मलिक को पराजित कर लाहौर पर कब्जा कर लिया। 11९1 ई. में भटिंडा के दृढ़ किले पर अधिकार कर उसने पृथ्वीराज पर चढ़ाई की। तलवड़ी (तरायन) के युद्ध में पृथ्वीराज ने मुईजुद्दीन को बुरी तरह पराजित कर दिया और सुल्तान स्वयं बड़ी कठिनाई से रणक्षेत्र से भाग सका। पृथ्वीराज भटिंडा तक बढ़ता चला गया किंतु 11९2 ई. में सुल्तान ने पुन: पृथ्वीराज पर आक्रमण किया और तलवड़ी (तरायन) के युद्ध में उसे पराजित कर दिया। सुल्तान गजनी वापस चला गया। 11९३ ई. में उसने कन्नौज पर आक्रमण किया। इटावा के समीप चंदवार में घोर युद्ध हुआ। जयचंद मारा गया। दूसरे वर्ष उसने थनकिर (ब्याना) तथा ग्वालियर पर भी अधिकार कर लिय। 12०४ ई. में उसने ख्वारिज्म पर पुन: आक्रमण किया किंतु उसे पराजित होकर गजनी वापस आना पड़ा। इसी बीच में पंजाब के कबीलों, विशेषकर खोक्खरों ने लाहौर के समीप विद्रोह कर दिया। सुल्तान उन्हें दंड देने के लिये पुन: हिंदुस्तान पहुँचा किंतु वापस होते समय सिंध नदी पर स्थित दमियक नामक स्थान पर मुलहिदों ने 12०६ में उसकी हत्या कर दी। उसकी मृत्यु के उपरांत गोर वंश की भी शक्ति छिन्न भिन्न हो गई और 121५ ई. में ख्वरिज्मशाहियों ने उनका पूर्णत: अंत कर दिया।



टीका टिप्पणी और संदर्भ