तबरी

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तबरी अथवा टबरी (अबू जाफर मुहम्मद इब्न, जरी उत्‌ तबरी) एक महान्‌ अरब इतिहासकार और इस्लाम धर्मशास्त्री था। संभवत: ८३८-३९ ई० में तबरिस्तान क्षेत्र का आमुल नामक स्थान में उसका जन्म हुआ था। संपन्न परिवार में जन्म, कुशाग्रबुद्धि और मेघावी होने के कारण बचपन से ही वह अत्यंत होनहार दीख पड़ता था। कहते हैं, सात वर्ष की अवस्था में ही संपूर्ण कुरान इसे कंठस्थ हो गया। अपने नगर में रहकर तो उसने बहुमूल्य शिक्षा पाई ही, उस समय के इस्लाम जगत्‌ के अन्य सभी प्रसिद्ध विद्याकेंद्रों में भी वह गया और अनेक प्रसिद्ध विद्वानों से पढ़ा। बसरा, बगदाद, कूफ और मिस्र की उसने अनेक बार यात्राएँ की। दूसरी बार मिस्र जाते हुए सिरिया में उसने हदीस का अध्यन किया और शीघ्र ही उन क्षेत्रों में वह प्रकांड गिना जाने लगा। तबरी की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वह विद्वान्‌ होने के साथ साथ अत्यंत चरित्रवान्‌ भी था। राज्य की ओर से अर्थिक लाभवाले कई सम्मानजनक पदों को स्वीकृति के लिये उससे आग्रह किए गए किंतु किसी भी प्रलोभन में न पड़कर उसने पढ़ने पढ़ाने और साहित्यिक सेवा में ही अपना जीवन बिताया। यद्यपि कोई भी विषय-इतिहास, कुरान का पाठ और उसकी व्याख्या, काव्यरचना, व्याकरण और शब्दकोष, नीतिशास्त्र, गणित और भैषज्य-उससे अछूता नहीं रहा, वह मुख्यत: इतिहास और इस्लामी धर्मशास्त्र के ज्ञाता और लेखक के रूप में ही प्रसिद्ध है। उसकी प्रमुख रचना तारीख 'अल रसूल वल-मुलूक' नामक विश्व का इतिहास है, जो ३० हजार कागज की तख्तियों पर लिखा गया। अनुश्रुतियों, दंतकथाओं और बूढे लोगों से सुनी हुई कहानियों के आधार पर लिखे गए अरब इतिहास के इस महोदधि को छान सकना किसी भी एक व्यक्ति के लिये दुष्कर है। तबरी के जीवनकाल के थोड़े ही समय पश्चात्‌ फारसी में उसका अनुवाद हुआ था और उस अनुवाद का पुन: तुर्की भाषा में भी अनुवाद हुआ। इस तारीख के अतिरिक्त उसने 'जामी अल्‌-बयान की तफसीर अल-कुरान' पर एक टीका भी लिखी थी, जिसे संक्षेप में 'तफसीर' कहा जाता है। लगभग ७५ वर्षों की अवस्था तक साहित्यसर्जन करते हुए तबरी ने ९२३ ई० में शरीर त्याग दिया।

टीका टिप्पणी और संदर्भ