थाइलैण्ड

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थाइलैण्ड - स्थिति : १६°०' उo अo तथा १०२°०' पूo देo। यह दक्षिण-पूर्व एशिया में स्थित राजतंत्र है। इसका प्राचीन नाम स्याम था। १९3९ ईo में स्याम की सरकार ने अपने देश का नाम 'स्याम' से बदलकर 'थाइलैण्ड' रखा। इसका क्षेत्रफल १,९८,४५५ वर्ग मील तथा जनसंख्या २,७१,८१,००० (१९६१) थी। इसके पश्चिम तथा उत्तर-पश्चिम में बर्मा, उत्तर-पूर्व और पूर्व में लाओस तथा कंबोडिया, दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व में स्याम की खाड़ी और मलएशिया स्थित हैं।

मानचित्र

थाइलैण्ड की अधिकतम ऊँचाई ६,००० फुट से भी अधिक है। यहाँ की पहाड़ियाँ उत्तर-दक्षिण दिशा में फैली हैं। इनसे निकलनेवाली नदियाँ सोलवीन, मीनाम, मेकाँग नदियों में मिल जाती हैं। उत्तर-पूर्व में खोरट का पठार स्थित है। यह ५०० से २,००० फुट तक ऊँचा है। इसके पूर्व तथा उत्तर में मेकांग नदी प्रवाहित होती है। पश्चिमी थाइलैण्ड, शान पठार का पूर्वी भाग है और १,००० से लेकर २,००० फुट तक ऊँचा है। दक्षिणी थाइलैण्ड वास्तव में एक सँकरा भाग है, जो दक्षिण की ओर मुड़ गया है। कहीं कहीं यह १२ मील से भी कम सँकरा है।

जलवायु

थाइलैण्ड का जलवायु उष्णकटिबंधीय है। ग्रीष्मकाल मार्च से प्रारंभ होता है तथा ताप 3८°सेंo से भी अधिक हो जाता है। जुलाई से अक्टूबर तक वर्षा काल होता है। पश्चिमी खुली ढालों पर वर्षा १२० सेंमीo से भी अधिक होती है। यहाँ ताप १५ सेंo से कभी भी कम नहीं होता है।

भाषा व आर्थिक दशा

यहाँ कई भाषाएँ एवं धर्म प्रचलित हैं। संपूर्ण जनसंख्या का ७४ प्रतिशत स्यामी या थाई, २० प्रतिशत चीनी, और ६ प्रतिशत में भारतीय और मलय जाति के लोग हैं। धार्मिक रचना भी विभिन्न है, जैसे संपूर्ण जनसंख्या का ९५ प्रति शत बौद्ध, ४ प्रति शत मुसलमान और १ प्रति शत अन्य धर्म के लोग हैं। भाइलैंड गरीब राष्ट्र है। १९५९ ईo में राष्ट्रीय आर्थिक विकास बोर्ड ने आर्थिक दशा सुधारने के लिये योजनाएँ बनाई हैं। यहाँ का प्रमुख व्यवसाय कृषि है। संपूर्ण जनसंख्या के ४५ प्रतिशत व्यक्ति कृषि उद्योग एवं २२ प्रति शत व्यावसायिक कार्यों मे लगे हैं।

कृषि

कृषि उत्पादों में धान का प्रमुख स्थान है। कृषि के अन्य उत्पाद रबर, रुई, ईख नारियल एवं तंबाकू हैं। समुद्री तट मछली उद्योग के लिये प्रसिद्ध है, किंतु यहाँ का मछली मारने का धंधा पश्चिमी राष्ट्रों की भाँति वैज्ञानिक आधारवाला नहीं है। वर्षा में नदी, तालाबों और नहरों से लगभग ६०,००० टन तथा समुद्रों से लगभग १,६०,००० टन मछली पकड़ी जाती है। कृषि, सिंचाई, तथा वनों की रक्षा और विकास के लिये यहाँ अनेक छोटी बड़ी योजनाएँ बनाई गई हैं। चाओ -- फ्राया योजना से सिंचाई में अधिक वृद्धि की गई है। यहाँ वनसंपत्ति पर विशेष ध्यान दिया गया है। संपूर्ण देश की लगभग ७० प्रति शत भूमि वनों से ढकी है। उत्तरी थाइलैण्ड में पतझड़वाले वन मुख्य हैं। इनमें सागौन के जंगल महत्वपूर्ण हैं। उत्तरी पूर्व थाइलैण्ड में कड़ी लकड़ी के जंगल अधिक हैं, जिनमें शोरिया, आवतुश तथा कुर्ज के पेड़ अधिक हैं। वन प्रदेशों से लकड़ी ढोने के लिये नदियों का अत्यधिक उपयोग होता है। टीक का उत्पादन दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है। रबर का भी उद्योग दिन प्रति दिन विकसित हो रहा है।

खनिज

थाइलैण्ड में खनिज कम उपलब्ध हैं। टिन और टंग्स्टन का, स्थानीय उपयोग न होने के कारण, निर्यात किया जाता है। टिन दक्षिणी प्रायद्वीप में और टंग्स्टन प्रायद्वीप तथा बर्मा की सीमा के समीप पहाड़ी स्थानों में पाया जाता है। लिगनाइट, कोयला, सोना, चांदी, नीलम, पुखराज, माणिक तथा जर्कन भी यहाँ पाया जाता है।

शिक्षा

शिक्षा की दृष्टि से एशिया का यह देश अत्यधिक पिछड़ा है। अत: १४ वर्ष तक के लड़कों के लिये प्रारंभिक शिक्षा आवश्यक कर दी गयी है। यहाँ २२,७५४ प्रारंभिक स्कूल, १,८५२ उत्तर माध्यमिक स्कूल, 3८ टीचर्स ट्रेनिंग कालेज एवं ५ विश्वविद्यालय हैं। विश्वविद्यालयों में क्रमश: चूलालोनकोरन विश्वविद्यालय (स्थापित १९१७ ईo), थान मार्साट विश्वविद्यालय (१९3४ ईo) तथा बैङकॉक में मेडिकल, कृषि एवं चित्रकला से संबंधित विश्वविद्यालय हैं। १९६० ईo में यहाँ अध्यापकों की संख्या ६,४६० और विद्यार्थियों की संख्या १,१९,५८१ थी।

परिवहन के साधन

आवागमन के साधनों की दृष्टि से भी यह भाग अविकसित है। १९५९ ईo में सड़कों की कुल लंबाई ८,२८५ किमीo थी। १९५९ ईo के अंत तक ११ अंतर्देशीय और 3 अंतरराष्ट्रीय हवाई मार्ग कार्य कर रहे थे। २४ अगस्त, १९५९ ईo में थाई हवाई मार्ग और स्केनडीनेविया एयर लाइंस ने मिलकर थाई ऐयरवेज इंटरनेशनल का निर्माण किया, जो यहाँ से अन्य देशों को जाने के लिये हवाई मार्ग की सुविधा प्रदान करता है। थाइलैण्ड की राजधानी एवं प्रमुख नगर बैङकॉक है, जो मीनाम नदी के डेल्टा में बसा है। यहाँ प्रति वर्ष १,००० जलयान आते हैं, जिनके माल का भार लगभग २० लाख टन होता है। यहाँ धान कूटने, लकड़ी चीरने, सीमेंट आदि के उद्योग स्थापित किए गए हैं। यहाँ की जनसंख्या २3,१८,००० (१९६१) थी।

इतिहास

थाई लोग अपनी जातीय विशेषताओं में चीनियों के निकट हैं। इन लोगों ने चीन के दक्षिण भाग में नान चाऊ नामक एक शक्ति शाली राज्य स्थापित किया था। किंतु उत्तरी चीनियों और तिब्बतियों के दबाव तथा १२५3 में कुबलई खाँ के आक्रमणों के कारण थाई लोगों को दक्षिणी पूर्वी एशिया की ओर हटना पड़ा। चाओ फ्राया नदी की घाटी में पहुँच कर उन्होंने वहाँ के निवासियों को कम्बोडिया की ओर भगा दिया और थाईलैंड नामक देश बसाया। १७वीं शताब्दी तक थाईलैंड में सामंततंत्र स्थापित रहा। इन्हीं दिनों उसने डचों, पुर्तगालियों, फ्रांसीसियों और अंग्रेजों से व्यापार संबंध भी जोड़ लिए थे।

राज्यतंत्र की स्थापना

१९वीं शताब्दी में मांकूट (१८५१-६८) और उसके पुत्र चूलालोंगकार्न (१८६८-१९१०) के शासनकाल में सामंतवाद की व्यवस्था शनै: शनै: समाप्त हुई और थाईलैंड का वर्तमान संसार में आगमन हुआ। सम्मति दाताओं की एक समिति गठित हुई तथा ब्रिटेन (१८५५) संयुक्त राज्य अमरीका और फ्रांस (१८५६) से व्यापार संधियाँ हुई। पुराने सामंतों के अधिकार सीमित कर दिए गए और दास प्रथा बिल्कुल उठा दी गई। १९3२ में रक्तहीन क्रांति द्वारा संवैधानिक राज्यतंत्र की स्थापना हुई। किंतु उसके बाद से भी थाईलैण्ड की राजनीति में स्थिरता नहीं आई। द्वितीय विश्वयुद्ध के आरंभ में थाईलेण्ड ने जापान से संधि की और ब्रिटेन और अमरीका के विरुद्ध युद्ध ठाना। लेकिन युद्ध के बाद उसने संयुक्तराज्य अमरीका से संधि की। १९६२ में लाओस की ओर से साम्यवादी संकट से थाईलैंड की रक्षा के लिये संयुक्तराज्य की सैनिक टुकड़ियाँ भी वहाँ रहीं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ