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*'''कुंचन नंबियार''' (लगभग 1705-1770 ई.) मलयालम के विख्यात कवि। | *'''कुंचन नंबियार''' (लगभग 1705-1770 ई.) मलयालम के विख्यात कवि। | ||
*कुंचन का जन्म मध्य केरल के कोच्चि स्थान में हुआ था; अंपलप्पुषा के देवनारायण नामक शासक के सरंक्षण में वहीं बस गए और बाद में त्रिवांकुर के शासक मार्तंड वर्मा के दरबार में प्रविष्ट हुए। | *कुंचन का जन्म मध्य केरल के कोच्चि स्थान में हुआ था; अंपलप्पुषा के देवनारायण नामक शासक के सरंक्षण में वहीं बस गए और बाद में त्रिवांकुर के शासक मार्तंड वर्मा के दरबार में प्रविष्ट हुए। |
०७:२८, २८ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण
नंबियार कुंचन
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 6 |
पृष्ठ संख्या | 218 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | राम प्रसाद त्रिपाठी |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1966 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | जी० बालमोहन तंपी |
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- कुंचन नंबियार (लगभग 1705-1770 ई.) मलयालम के विख्यात कवि।
- कुंचन का जन्म मध्य केरल के कोच्चि स्थान में हुआ था; अंपलप्पुषा के देवनारायण नामक शासक के सरंक्षण में वहीं बस गए और बाद में त्रिवांकुर के शासक मार्तंड वर्मा के दरबार में प्रविष्ट हुए।
- कुंचन यौवनकाल के प्रारंभिक दिनों में उन्होंने विभिन्न शैलियों में काव्य रचना की।
- कुंचन की प्रारंभिक कविताओं में भगवद्दूत भागवतम् नलचरितम् और चाणक्यूसूत्रम् के नाम लिए जा सकते हैं।
- कुंचन नवीन एवं अद्भुत मलयालय काव्यशैली 'तुक्कलप्पाट्ट' के प्रवर्त्तक हैं।
- तुक्कल द्रुत गति से प्रचलित होने वाला नृत्य है जिसमें नर्तक स्वयं पद्यबद्ध कहानियाँ का गायन करती है।
- कुंचन ने लगभग साठ तुक्कल कविताएँ लिखी हैं।
- इनमें उन्होंने नम्र काव्य शैली का विकास किया जिसने समाज के सभी वर्गों को आकृष्ट किया।
- कुंचन के द्वारा उन्होंने समाज की वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने का प्रयत्न किया है।
- कुंचन ने इतिहास एवं पुराणों से ही अपनी कविताओं के लिए कहानियाँ चुनी हैं किंतु उन्हें समकालीन सामाजिक जीवन के प्रसंग में ही चित्रित किया है।
- कुंचन हास्य एवं व्यंग के भी वे महान् कवि माने जाते हैं।
- कुंचन ने अहंकारी सामंतों, भ्रष्ट कर्मचारियों, लोभी और स्त्रीपरायण ब्राह्मणों और तुच्छ नायरों इत्यादि समस्त श्रेणी के लोगों पर व्यंग किया है।
- कुंचन की अनेक पदोक्तियाँ सर्वसाधारण में यथेष्ट प्रचलित हैं और उन्होंने लोकोक्तियों का स्थान ग्रहण कर लिया है।
- कल्याणसौगंधिकम्, कार्त्तवीरार्जुनविजयम् विकरातम् सभाप्रवेशम्, त्रिपुरदहनम्, हरिणीस्वयंरम्, रूग्मिणीस्वयम्वरम्, प्रदोषमाहात्म्यम्, स्यमन्तकम् एवं घोषयात्रा उनकी प्रमुख तुक्कल रचनाएँ हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ