"भगवद्गीता -राधाकृष्णन पृ. 43" के अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
छो (Text replace - "भगवद्गीता -राधाकृष्णन भाग-" to "भगवद्गीता -राधाकृष्णन पृ. ")
छो (भगवद्गीता -राधाकृष्णन भाग-43 का नाम बदलकर भगवद्गीता -राधाकृष्णन पृ. 43 कर दिया गया है: Text replace - "भगव...)
 
(कोई अंतर नहीं)

१०:५८, २२ सितम्बर २०१५ के समय का अवतरण

10.ज्ञानमार्ग

योग का विधिवत् अभ्यास करने का परिणाम गौण रूप से यह भी होता है कि साधक को अलौकिक शक्तियां प्राप्त हो जाती है; परन्तु इन शक्तियों को प्राप्त करने के लिए योगाभ्यास करना व्यर्थ और बेकार है। बहुधा इसका परिणाम स्‍नायुरोग और विफलता होता है। आध्यात्मिक जीवन के साधक को यह चेतावनी दी जाती है कि वह अलौकिक शक्तियों के आकर्षण में न फंसे। इन शक्तियों से हमारी सांसारिक उन्नति भले हो जाए, परन्तु वे साधुता की ओर नहीं ले जाती। आध्यात्मिक दृष्टि से ये निरर्थक और संगत हैं। गुप्त विद्याओं को जानने वाले व्यक्ति में, जो भौतिक क्षेत्र से ऊपर की वस्तुओं को देखने में समर्थ हो जाता है, कुछ ऐसी क्षमताएं विकसित हो जाती हैं, जिनके कारण वह सामान्य मानव-प्राणियों ऊपर उठ जाता है; ठीक उसी प्रकार, जैसे आधुनिक तकनीक विज्ञान के जानने वाले लोग पुराने ज़माने के किसानों की अपेक्षा अधिक साधन-सम्पन्न होते हैं। परन्तु उसकी यह प्रगति बाह्म दिशा में होता है और आत्मा को अन्तर्मुख करने की ओर नहीं होती। योग का अभ्यास सत्य को प्राप्त करने के लिए, वास्तविकता (ब्रह्म) से सम्पर्क स्थापित करने के लिए किया जाना चाहिए। कृष्ण योग का स्वामी (योगेश्वर)[१] है, जो हमें अपने जीवन में अपनी रक्षा करने में सहायता देता है। वह आध्यात्मिक अनुभव का भी सर्वोच्च स्वामी है, जो दिव्य गौरव के उन क्षणों को हम तक लाता है, जिनमें कि मनुष्य शारीरिक आवरण के परे पहुँच जाता है और दैनिक अस्तित्व की समस्याओं के साथ उन दिव्य गौरव के क्षणों के सच्चे सम्बन्ध का भी संकेत करता है।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 18, 78

संबंधित लेख

साँचा:भगवद्गीता -राधाकृष्णन