महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 14 श्लोक 1-20

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित ११:२०, ९ जुलाई २०१५ का अवतरण
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

चतुर्दश (14) अध्याय :अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: चतुर्दश अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद
भीष्‍म जी की आज्ञा से भगवान श्रीकृष्‍ण का युधिष्ठिर से महादेवजी के माहात्‍म्‍य की कथा में उपमन्‍यु द्वारा महादेवजी की स्‍तुति-प्रार्थना, उनके दर्शन और वरदान पाने का तथा अपने को दर्शन प्राप्‍त होने का कथन

युधिष्ठिर ने कहा – गंगानन्‍दन ! आपने ब्रह्माजी के भी ईश्‍वर कल्‍याणकारी जगदीशवर भगवान शिव के जो नाम सुने हों, उन्‍हें यहां बताइये। जो विराट विश्‍वरूपधारी हैं, अव्‍यक्‍त के भी कारण हैं, उन सुरासुरगुरू भगवान शंकर के माहात्‍म्‍य का यथार्थरूप से वर्णन कीजिये। भीष्‍म जी कहते हैं- राजन् ! मैं परम बुद्धिमान महादेवजी के गुणों का वर्णन करने में असमर्थ हूं । जो भगवान सर्वत्र व्‍यापक हैं, किन्‍तु (सबके आत्‍मा होने के कारण) सर्वत्र देखने में नहीं आते हैं, ब्रह्मा, विष्‍णु और देवराज इन्‍द्र के भी स्‍त्रष्‍टा तथा प्रभु हैं, ब्रह्मा आदि देवताओं से लेकर पिशाचक तक जिनकी उपासना करते हैं, जो प्रकृति से भी परे और पुरूष से भी विलक्षण हैं, योगवेता तत्‍वदर्शी ऋषि जिनका चिन्‍तन करते हैं, जो अविनाशी परम ब्रह्मा एवं सदसत्‍स्‍वरूप हैं, जिन देवाधिदेव प्रजापति शिव ने अपने तेजसे प्रकृति और पुरूष को क्षुब्‍ध करके ब्रह्माजी की सृष्टि की, उन्‍हीं देवदेव बुद्धिमान् महादेवजी के गुणों का वर्णन करने में गर्भ, जन्‍म, जरा और मृत्‍यु से युक्‍त कौन मनुष्‍य समर्थ हो सकता है ? बेटा ! शंख, चक्र और गदा धारण करने वाले भगवान नारायण को छोड़कर मेरे-जैसा कौन पुरूष परमेश्‍वर शिव के तत्‍व को जान सकता है ? ये भगवान विष्‍णु सर्वज्ञ, गुणों में सबसे श्रेष्‍ठ, अत्‍यंत दुर्जय, दिव्‍य नेत्रधारी तथा महातेजस्‍वी हैं । ये योगदृष्टि से सब कुछ देखते हैं। भरतनन्‍दन ! रूद्रदेव के प्रति भक्ति के कारण ही महात्‍मा श्रीकृष्‍ण ने सम्‍पूर्ण जगत को व्‍याप्त कर रखा है । राजन् ! कहते हैं कि पूर्वकाल महादेवजी को बदरि का श्रम में प्रसन्‍न करके उन दिव्‍य दृष्टि‍ महेश्‍वर से श्रीकृष्‍ण ने सब पदार्थों की अपेक्षा प्रियतर भाव को प्राप्‍त कर लिया, अर्थात् वे सम्‍पूर्ण लोकों के प्रियतम बन गये। इन माधव ने वरदायक देवता चराचर गुरू भगवान शिव को प्रसन्‍न करते हुए पूर्वकाल में पूरे एक हजार वर्ष तक तपस्‍या की थी। श्रीकृष्‍ण ने प्रत्‍येक युग में महेश्‍वर को संतुष्‍ट किया है । महात्‍मा श्रीकृष्‍ण की परम भक्ति से वे सदा प्रसन्‍न रहते हैं। जगत के कारणभूत परमात्‍मा शिव का ऐश्‍वर्य जैसा, उसे पुत्र के लिये तपस्‍या करते हुए इन अच्‍युत श्रीहरि ने प्रत्‍यक्ष देखा है। भारत ! उसी के एश्‍वर्य के कारण मैं परात्‍पर श्रीकृष्‍ण के सिवा किसी दूसरो को ऐसा नहीं देखता जो देवाधिदेव महादेवजी के नामों की पूर्ण रूप से व्‍याख्‍या कर सके। नरेश्‍वर ! ये महाबाहु श्रीकृष्‍ण ही भगवान महेश्‍वर के गुणों तथा उनके यथार्थ ऐश्‍वर्य का पूर्णत: वर्णन करने में समर्थ हैं। वैशम्‍पायनजी कहते हैं - जनमेजय ! महायशस्‍वी पितामह भीष्‍म ने युधिष्ठिर से ऐसा कहकर भगवान वासुदेव के प्रति शंकरजी की महिमा से युक्‍त यह बात कही । भीष्‍म जी बोले - देवसुरगुरों ! विष्‍णुदेव ! राजा युधिष्ठिर ने मुझसे जो पूछा है, उस विश्वरूप शिव के माहात्‍म्‍यकोबताने के योग्‍य आप ही हैं। पूर्वकाल में ब्रह्मापुत्र तण्‍डीमुनि के द्वारा ब्रह्मालोक में ब्रह्माजी के समक्ष जिस शिव-सहस्‍त्र नाम का निरूपण किया गया था, उसी का आप वर्णन करें और ये उत्‍तम व्रत का पालन करने वाले व्‍यास आदि तपोधन एवं जितेन्द्रिय महर्षि आपके मुख से इसका श्रवण करें।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

Insert non-formatted text here