"महाभारत अादि पर्व अध्याय 1 श्लोक 1-11" के अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
पंक्ति २२: पंक्ति २२:
 
|शीर्षक 9=
 
|शीर्षक 9=
 
|पाठ 9=
 
|पाठ 9=
|शीर्षक 10=मुख्य पात्र
+
|शीर्षक 10=
|पाठ 10=[[कृष्ण|श्रीकृष्ण]], [[शांतनु]], [[सत्यवती]], [[भीष्म]], [[विदुर]], [[पाण्डव]], [[पांडु]], [[कुंती]], [[कौरव]], [[धृतराष्ट्र]], [[गांधारी]], [[युधिष्ठिर]], [[भीम]], [[अर्जुन]], [[नकुल]], [[सहदेव]], [[दुर्योधन]], [[दुशासन]], [[द्रोणाचार्य]], [[अश्वत्थामा]], [[महाभारत]]
+
|पाठ 10=
|संबंधित लेख=[[सभा पर्व महाभारत|सभापर्व]], [[वन पर्व महाभारत|वनपर्व]], [[विराट पर्व महाभारत|विराटपर्व]], [[उद्योग पर्व महाभारत|उद्योगपर्व]], [[भीष्म पर्व महाभारत|भीष्मपर्व]], [[द्रोण पर्व महाभारत|द्रोणपर्व]], [[आश्वमेधिक पर्व महाभारत|आश्वमेधिकपर्व]], [[महाप्रास्थानिक पर्व महाभारत|महाप्रास्थानिकपर्व]], [[सौप्तिक पर्व महाभारत|सौप्तिकपर्व]], [[स्त्री पर्व महाभारत|स्त्रीपर्व]], [[शान्ति पर्व महाभारत|शान्तिपर्व]], [[अनुशासन पर्व महाभारत|अनुशासनपर्व]], [[मौसल पर्व महाभारत|मौसलपर्व]], [[कर्ण पर्व महाभारत|कर्णपर्व]], [[शल्य पर्व महाभारत|शल्यपर्व]], [[स्वर्गारोहण पर्व महाभारत|स्वर्गारोहणपर्व]], [[आश्रमवासिक पर्व महाभारत|आश्रमवासिकपर्व]]
+
|संबंधित लेख=[[कृष्ण|श्रीकृष्ण]], [[शांतनु]], [[सत्यवती]], [[भीष्म]], [[विदुर]], [[पाण्डव]], [[पांडु]], [[कुंती]], [[कौरव]], [[धृतराष्ट्र]], [[गांधारी]], [[युधिष्ठिर]], [[भीम]], [[अर्जुन]], [[नकुल]], [[सहदेव]], [[दुर्योधन]], [[दुशासन]], [[द्रोणाचार्य]], [[अश्वत्थामा]] आदि।
 
|अन्य जानकारी=
 
|अन्य जानकारी=
 
|बाहरी कड़ियाँ=
 
|बाहरी कड़ियाँ=

१०:०८, २८ जून २०१५ का अवतरण

प्रथम अध्‍याय: आदिपर्व (अनुक्रमणिका पर्व)

महाभारत अादि पर्व अध्याय 1 श्लोक 1-11
विवरण 'महाभारत' भारत का अनुपम, धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ है। इसके 'आदिपर्व' के प्रारम्भ में महाभारत के पर्वों, उपपर्वों और उनके विषयों का संक्षिप्त संग्रह है।
रचयिता वेदव्यास
पर्व आदिपर्व
उप-पर्व 19 (अनुक्रमणिका पर्व, पर्वसंग्रह पर्व, पौष्य पर्व, पौलोम पर्व, आस्तीक पर्व, अंशावतार पर्व, सम्भाव पर्व, जतुगृह पर्व, हिडिम्बवध पर्व, बकवध पर्व, चैत्ररथ पर्व, स्वयंवर पर्व, वैवाहिक पर्व, विदुरागमनराज्यलम्भ पर्व, अर्जुनवनवास पर्व, सुभद्राहरण पर्व, हरणाहरण पर्व, खाण्डवदाह पर्व, मयदर्शन पर्व।)
अध्याय प्रथम
कुल अध्याय 233
मूल भाषा संस्कृत
संबंधित लेख श्रीकृष्ण, शांतनु, सत्यवती, भीष्म, विदुर, पाण्डव, पांडु, कुंती, कौरव, धृतराष्ट्र, गांधारी, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, दुर्योधन, दुशासन, द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा आदि।
महाभारत अादिपर्व प्रथम अध्याय श्लोक 1-11 का हिन्दी अनुवाद

’ब‍दरिकाश्रम निवासी प्रसिद्ध ऋषि श्री नारायण तथा श्री नर [१], उनकी लीला प्रकट करने वाली भगवती सरस्‍वती और उसके वक्‍ता महर्षि वेदव्‍यास को नमस्‍कार कर अासुरी शक्तियों का नाश करके अंत:करण पर दैवी शक्तियों पर विजय प्राप्‍त करने वाले जय[२] महाभारत एवं अन्‍य इतिहास–पुराणादि का पाठ करना चाहिये।[३]

  • ॐकारस्‍वरूप भगवान वासुदेव को नमस्‍कार है।
  • ॐकारस्‍वरूप भगवान पितामह को नमस्‍कार है।
  • ॐकारस्‍वरूप प्रजापतियों को नमस्‍कार है।
  • ॐकारस्‍वरूप श्रीकृष्‍ण द्वैपायन को नमस्‍कार है।
  • ॐकारस्‍वरूप सर्वविघ्‍नाशक विनायकों को नमस्‍कार है।

एक समय की बात है, नैमिषारण्‍य[४] में कुलपति[५] महर्षि शौनक के बारह वर्षो तक चालू रहने वाले सत्र[६] में जब उत्‍तम एवं कठोर ब्रह्मर्षिगण अवकाश के समय सुखपूर्वक बैठे थे, सूत कुल को आनन्दित करने वाले लोमहर्षण पुत्र उग्रश्रवा सौति स्‍वयं कौतूहलवश उन ब्रह्मर्षियों के समीप बड़े विनीत भाव से आये।

वे पुराणों के विद्वान और कथावाचक थे। उस समय नैमिषारण्‍यवासियों के आश्रम में पधारे हुए उन उग्रश्रवा जी को, उनसे चित्र-विचित्र कथाएँ सुनने के लिये, सब तपस्वियों ने वहीं घेर लिया। उग्रश्रवा जी ने पहले हाथ जोड़कर उन सभी मुनियों का अभिवादन किया और ‘आप लोगों की तपस्‍या सुखपूर्वक बढ़ रही है न? इस प्रकार कुशल प्रश्र किया। उन सत्‍पुरूषों ने भी उग्रश्रवा जी का भली भाँति स्‍वागत-सत्‍कार किया। इसके उपरांत जब वे सभी तपस्‍वी अपने-अपने आसन पर विराजमान हो गये, तब लोमहर्षण पुत्र उग्रश्रवा जी ने भी उनके बताये हुए आसन को विनयपूर्वक ग्रहण किया।

तत्‍पश्‍चात यह देखकर कि उग्रश्रवा जी थकावट से रहित होकर आराम में बैठे हुए हैं, किसी म‍हर्षि ने बातचीत का प्रसंग उपस्थित करते हुए यह प्रश्‍न पूछा- 'कमलनयन सूतकुमार ! आपका शुभागमन कहाँ से हो रहा है ? अब तक आपने कहाँ आनन्‍दपूर्वक समय बिताया है?' मेरे इस प्रश्‍न का उत्‍तर दीजिये। उग्रश्रवा जी एक कुशल वक्‍ता थे। इस प्रकार प्रश्‍न किये जाने पर वे शुद्ध अन्‍त:करण वाले मुनियों की उस विशाल सभा में ऋषियों तथा राजाओं से सम्‍बन्‍ध रखने वाली उत्‍तम एवं यथार्थ कथा कहने लगे। उग्रश्रवा जी ने कहा–महर्षियों ! चक्रवर्ती सम्राट महात्‍मा राजर्षि परीक्षित-नन्‍दन जनमेजय के सर्पयज्ञ में उन्‍ही के पास वैशम्‍पायन ने श्रीकृष्‍ण द्वैपायन व्‍यास जी के द्वारा निर्मित परमपुण्‍यमयी चित्र-विचित्र अर्थ से युक्‍त महाभारत की जो विविध कथाएँ विधिपूर्वक कही हैं, उन्हें मैं सुन कर आ रहा हूँ।


आगे जाएँ »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अंर्तयामी नारायण स्‍वरूप भगवान् श्रीकृष्‍ण उनके नित्‍यासखा नरस्‍वरूप नरश्रेष्‍ठ अर्जुन
  2. जय शब्‍द का अर्थ महाभारत नामक इतिहास ही है। आगे चलकर कहा है – जयो नामेतिहासोअयम् इत्‍यादि। अथवा अठारहों पुराण, वाल्‍मीकि रामायण आदि सभी आर्ष-ग्रन्‍थों की संज्ञा ‘जय’ है।
  3. मंगलाचरण का श्‍लोक देखने पर ऐसा जान पड़ता है कि यहाँ नारायण शब्‍द का अर्थ है भगवान श्री कृष्‍ण और नरोत्‍तम नर का अर्थ है नर अर्जुन। महाभारत में प्राय: सर्वत्र इन्‍हीं दोनों का नर-नारायण के अवतार के रूप में उल्‍लेख हुआ है। इससे मंगलाचरण में ग्रन्‍थ के इन दोनों प्रधान पात्र तथा भगवान के मूर्ति-युगल को प्रणाम करना मंगलाचरण को नमस्‍कारात्‍मक होने के साथ ही वस्‍तु निर्देशात्‍मक भी बना देता है। इसलिये अनुवाद में श्रीकृष्‍ण और अर्जुन का ही उल्लेख किया गया है।
  4. नैमिष नाम की व्‍यवस्‍था वाराह पुराण में इस प्रकार मिलती है – एवं कृत्‍वा ततो देवो मुनि गोरमुर्ख तदा । उवाच निमिषेणेदं निहतं दानवं बलम् ।। अरण्‍येअस्मिस्‍ततस्‍वत्‍वे तन्‍नैमिषारण्‍यसंज्ञितम् ।। ऐसा करके भगवान ने उस समय गौरमुख मुनि से कहा–‘मैने निमिषमात्र में इस अरण्‍य (वन) के भीतर इस दानव सेना का संहार किया है। अत: यह वन नैमिषारण्‍य के नाम से प्रसिद्ध होगा।
  5. जो विद्वान् ब्राह्मण अकेला ही दस सहस्‍त्र जिज्ञासु व्‍यक्तियों का अत्र-दानादि के द्वारा भरण-पोषण करता है, उसे कुलपति कहते हैं।
  6. जो कार्य अनेक व्‍यक्तियों के सहयोग से किया गया हो और जिसमें बहुतों को ज्ञान, सदाचार आदि की शिक्षा तथा अत्र-वस्‍त्रादि वस्‍तुएँ दी जाती हों, जो बहुतों के लिये तृप्तिकारक एवं उपयोगी हो, उसे ‘सत्र’ कहते हैं।

संबंधित लेख