महाभारत अादि पर्व अध्याय 1 श्लोक 1-11

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प्रथम अध्‍याय: आदिपर्व (अनुक्रमणिकापर्व)

’ब‍दरिका श्रम निवासी प्रसिद्ध ऋषि श्री नारायण तथा श्रीनर (अन्‍तर्यामी नारायण स्‍वरूप भगवान् श्रीकृष्‍ण ‘उनके नित्‍यासखा नरस्‍वरूप नरश्रेष्‍ठ अर्जुन), उनकी लीला प्रकट करने वाली भगवती सरस्‍वती और उसके वक्‍ता महर्षि वेदव्‍यास को नमस्‍कार कर (आसुरी सम्‍पत्तियों का नाश करके अन्‍त: करण पर दैवी सम्‍पत्तियों को विजय प्राप्‍त करने वाले जय[१] (महाभारत एवं अन्‍य इतिहास–पुराणादि) का पाठ करना चाहिये।[२]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जय शब्‍द का अर्थ महाभारत नामक इतिहास ही है। आगे चलकर कहा है – जयो नामेतिहासोअयम् इत्‍यादि। अथवा अठारहों पुराण, वाल्‍मीकि रामायण आदि सभी आर्ष-ग्रन्‍थें की संज्ञा ‘जय’ है।
  2. मंगलाचरण का श्‍लोक देखने पर ऐसा जान पड़ता है कि यहाँ नारायण शब्‍द का अर्थ है भगवान श्री कृष्‍ण और नरोत्‍तम नरका अर्थ है नरल अर्जुन। महाभारत में प्राय: सर्वत्र इन्‍हीं दोनों का नर-नारायण के अवतार के रूप में उल्‍लेख हुआ है। इससे मंगलाचरण में ग्रन्‍थ के इन दोनो प्रधान पात्र तथा भगवान के मूर्ति-युगल को प्रणाम करना मंगलाचरण को नमस्‍कारात्‍मक होने के साथ ही वस्‍तु निर्देशात्‍मक भी बना देता है। इसलिये अनुवाद में श्रीकृष्‍ण और अर्जुन का ही उल्लेख किया गया है।

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