"महाभारत अादि पर्व अध्याय 1 श्लोक 28-42" के अवतरणों में अंतर
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११:५६, २७ जून २०१५ का अवतरण
प्रथम अध्याय: आदिपर्व (अनुक्रमणिकापर्व)
पृथ्वी पर इस इतिहास का अनेकों कवियों ने वर्णन किया है और इस समय भी बहुत से वर्णन करते हैं। इसी प्रकार अन्य कवि आगे भी इसका वर्णन कते रहेंगे। इस महाभारत की तीनों लोकों में एक महान ज्ञान के रूप में प्रतिष्ठा है। ब्राह्मणादि द्विजाति संक्षेप और विस्ताभर दोनों ही रूपों में अध्ययन और अध्यािपन की परम्परा के द्वारा इसे अपने हृदय में धारण करते हैं। यह शुभ (ललित एवं मंगलमय) शब्दयविन्याठस से अलंकृत है तथा वैदिक-लौकिक या संस्कृत-प्राकृत संकेतों से सुशोभित है। अनुष्टमप् आदि नाना प्रकार के छन्दह भी इसमें प्रयुक्तद हुए है; अत: यह ग्रन्थ विद्वानों को बहुत ही प्रिय है। हिमालयो की पवित्र तलह्टी में पर्वतीय गुफा के भीतर धर्मात्माा व्यास जी स्नारनादि सें शरीर-शुद्धि करके पवित्र हो कुशका आसन बिछाकर बैठै थे। उस समय नियम पालन पूर्वक शान्त चित हो वे तपस्याव में संलग्न थे। ध्यासन योग में स्थित हो उन्होंने धर्मपूर्वक महाभारत-इतिहास के स्वृरूप का विचार करके ज्ञानदृष्टि द्वारा आदि से अन्ता तक सब कुछ प्रत्यक्ष की भाँति देखा (और इस ग्रन्थ का निर्माण किया)। सृष्टि के प्रारम्भय में जब यहाँ वस्तुु विशेष या नाम रूप आदि का मान नहीं होता था, प्रकाश का कहीं नाम नहीं था; सर्वत्र अन्धकार-ही-अन्धकार छा रहा था, उस समय एक बहुत बड़ा अण्डक प्रकट हुआ, जो सम्पूर्ण प्रजाओं का अविनाशी बीज था। ब्रह्मकल्प के आदि में उसी महान् एवं दिव्य अण्डहको चार प्रकार के प्राणि-समुदाय का कारण कहा जाता है। जिसमें
सत्य स्वपरूप ज्योंतिर्मय सनातन ब्रह्म अन्तहर्यामीरूप से प्रविष्टर हुआ है, ऐसा श्रुति वर्णन करती है[१] वह ब्रह्म अद्भुत, अचिन्त्य, सर्वत्र समान रूप से व्याप्त, अव्यशक्त, सूक्ष्म, कारण स्वरूप एवं अनिर्वचनीय है और जो कुछ सत्-असत् रूप में उपलब्ध होता है, सब वही है। उस अण्डु से ही प्रथम देहधारी,प्रजापालक प्रभु, देवगुरू पितामह ब्रह्म तथा रूद्र, मनु, प्रजापति, प्रमेष्ठी्, प्रचेताओं के पुत्र, दक्ष तथा दक्ष के सात पुत्र (क्रोध, तम, दम, विक्रीत, अडिगरा, कर्दम और अश्व ) प्रकट हुए। तत्पेश्चात इक्कीतस प्रजापति (मरीचि आदि सात ऋषि और चौदह मनु) पैदा हुए।[२]जिन्हे मत्य कूर्म आदि अवतारों के रूप में सभी ऋषिमुनि जानते हैं, वे अप्रमेयात्मा विष्णु रूप पुरूष और उनकी विभूति रूप विश्व देव, आदित्यआ, वसु एवं अश्विनी कुमार आदि भी क्रमश: प्रकट हुए हैं। तदनन्तर यक, साध्य, पिशाच, गुह्मक और पितर एवं तत्वज्ञानी सदाचार परायण साधुशिरोमणि ब्रह्मर्षिगण प्रकट हुए। इसी प्रकार बहुत से राजर्षियों का प्रदुर्भाव हुआ है, जो सब के सब शौर्यादि सद्रुणों से सम्पन्न थे। क्रमश: उसी ब्रह्माण्ड से जल, द्युलोक, पृथ्वी, वायु, अन्तरिक्ष ओर दिशाएँ भी प्रकट हुई हैं। |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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