"महाभारत आदि पर्व अध्याय 2 श्लोक 237-260" के अवतरणों में अंतर
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− | == द्वितीय अध्याय: | + | ==द्वितीय (2) अध्याय: आदि पर्व (पर्वसंग्रह पर्व)== |
+ | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: आदि पर्व: द्वितीय अध्याय: श्लोक 237-260 का हिन्दी अनुवाद</div> | ||
− | + | शत्रुसूदन श्रीकृष्ण ने हस्तिानापुर से उपप्लव्य नगर आकर जैसा कुछ वहाँ हुआ था, सब पाण्डवों को कह सुनाया। शत्रुघाती पाण्डव उनके वचन सुनकर और क्या करने में हमारा हित है-यह परामर्श करके युद्ध सम्बन्धी सब सामग्री जुटाने में लग गयें। इसके पश्चात हस्तिनापुर नामक नगर में युद्ध के लिये मनुष्य, घोड़े, रथ और हाथियों की चतुरंगिणी सेना ने कूच किया। इसी प्रसंग में सेना की गिनती की गयी। फिर यह कहा गया है कि शाक्शिाली राजा दुर्योधन ने दूसरे दिन प्रातःकाल से होने वाले महायुद्ध के सम्बन्ध में उलूक को दूत बनाकर पाण्डवों के पास भेजा। इसके अनन्तर इस पर्व में रथ, अतिरथी आदि के स्वरूप का वर्णन तथा अम्बा का उपाख्यान आता है। इस प्रकार माहभारत में उद्योग पर्व पाँचवा पर्व है और इसमें बहुत से सुन्दर-सुन्दर वृत्तान्त हैं। इस उद्योग पर्व में श्रीकृष्ण के द्वारा सन्धि संदेश और उलूक के विग्रह संदेश का महत्वपूर्ण वर्णन हुआ है। तपोधन महर्षियों ! विशाल बुद्धि [[व्यास|महर्षि व्यास]] ने इस पर्व में एक सौ छियासी अध्याय रखे हैं और श्लोकों की संख्या छः हजार छःसौ अट्ठानवे (6698) बतायी है। के नाम से प्रसिद्ध है)। इसी पर्व में यह कथा भी है कि युधिष्ठिर के हित मे संलग्न रहने वाले निर्भय, उदार बुद्धि, अधोक्षज, भक्तवत्सल भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन की शिथिलता देख शीघ्र ही हाथ में चाबुक लेकर भीष्म को मारने के लिये स्वयं रथ से कूद पड़े और बड़े वेग से दौड़े। | |
− | साथ ही सब शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ गाण्डीवधन्वा अर्जुन को युद्ध भूमि में भगवान श्रीकृष्ण ने व्यगंय वाक्य के चाबुक से मार्मिक चोट पहँचायी। तब महाधर्नुधर अर्जुन ने शिखण्डी को सामने करके तीखे बाणों से घायल करते हुए भीष्म पितामह को रथ से गिरा दिया। जब कि भीष्म पितामह शरशय्यापर शयन करने लगे। महाभारत में यह छठा पर्व विस्तार पूर्वक कहा गया है। वेद के मर्मज्ञ विद्वान श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यास ने इस भीष्म पर्व में एक सौ सत्रह अध्याय रखे है। श्लोकों की संख्या पाँच हजार आठ सौ चौरासी (5884) कही गयी है। तदनन्तर अनेक वृत्तान्तों से पूर्ण अदभुत द्रौणपर्व की कथा आरम्भ होती है, जिसमें परम प्रतापी आचार्य द्रोण के सेनापति पद पर अभिषिक्त होने का वर्णन है। वहीं यह भी कहा गया है कि अस़्त्र-विद्या के परमाचार्य द्रौण ने दुर्योधन को प्रसन्न करने क लिये बुद्धिमान धर्मराज युधिष्ठिर को पकड़ने की प्रतिज्ञा कर ली। इसी पर्व में यह बताया गया है कि संशप्तक योद्धा अर्जुन को रणांग से दूर हटा ले गये। वहीं यह कथा भी आयी है कि ऐरावतवंशीय सुप्रतीक नामक हाथी के साथ महाराज भगदत्त भी, जो युद्ध में इन्द्र के समान थे, किरीटधारी अर्जुन के द्वारा मौत के घाट उतार दिये गये। इसी पर्व में यह भी कहा गया है कि शूरवीर बालक अभिमन्यु को, जो कभी जवान भी नहीं हुआ था और अकेला था, जयद्रथ आदि बहुत से विख्यात महारथियों ने मार डाला। अभिमन्यु के वध से कुपित होकर अर्जुन ने रणभूमि में सात अक्षौहिणी सेनाओं का संहार करके राजा जयद्रथ को भी मार डाला। उसी अवसर पर महाबाहु भीमसेन और महारथी सात्यकि धर्मराज युधिष्ठिर की आज्ञा से अर्जुन को ढूँढ़ने के लिये कौरवों की उस सेना में घुस गये, जिसकी मोर्चेबन्दी बड़े-बड़े देवता भी नहीं तोड़ सकते थे। | + | साथ ही सब शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ गाण्डीवधन्वा अर्जुन को युद्ध भूमि में भगवान श्रीकृष्ण ने व्यगंय वाक्य के चाबुक से मार्मिक चोट पहँचायी। तब महाधर्नुधर अर्जुन ने शिखण्डी को सामने करके तीखे बाणों से घायल करते हुए भीष्म पितामह को रथ से गिरा दिया। जब कि भीष्म पितामह शरशय्यापर शयन करने लगे। महाभारत में यह छठा पर्व विस्तार पूर्वक कहा गया है। वेद के मर्मज्ञ विद्वान श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यास ने इस भीष्म पर्व में एक सौ सत्रह अध्याय रखे है। श्लोकों की संख्या पाँच हजार आठ सौ चौरासी (5884) कही गयी है। तदनन्तर अनेक वृत्तान्तों से पूर्ण अदभुत द्रौणपर्व की कथा आरम्भ होती है, जिसमें परम प्रतापी आचार्य द्रोण के सेनापति पद पर अभिषिक्त होने का वर्णन है। वहीं यह भी कहा गया है कि अस़्त्र-विद्या के परमाचार्य द्रौण ने दुर्योधन को प्रसन्न करने क लिये बुद्धिमान धर्मराज युधिष्ठिर को पकड़ने की प्रतिज्ञा कर ली। इसी पर्व में यह बताया गया है कि संशप्तक योद्धा अर्जुन को रणांग से दूर हटा ले गये। वहीं यह कथा भी आयी है कि ऐरावतवंशीय सुप्रतीक नामक हाथी के साथ महाराज भगदत्त भी, जो युद्ध में इन्द्र के समान थे, किरीटधारी अर्जुन के द्वारा मौत के घाट उतार दिये गये। इसी पर्व में यह भी कहा गया है कि शूरवीर बालक अभिमन्यु को, जो कभी जवान भी नहीं हुआ था और अकेला था, जयद्रथ आदि बहुत से विख्यात महारथियों ने मार डाला। अभिमन्यु के वध से कुपित होकर अर्जुन ने रणभूमि में सात अक्षौहिणी सेनाओं का संहार करके राजा जयद्रथ को भी मार डाला। उसी अवसर पर महाबाहु भीमसेन और महारथी सात्यकि धर्मराज युधिष्ठिर की आज्ञा से अर्जुन को ढूँढ़ने के लिये कौरवों की उस सेना में घुस गये, जिसकी मोर्चेबन्दी बड़े-बड़े देवता भी नहीं तोड़ सकते थे। |
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०५:२३, २० जुलाई २०१५ के समय का अवतरण
द्वितीय (2) अध्याय: आदि पर्व (पर्वसंग्रह पर्व)
शत्रुसूदन श्रीकृष्ण ने हस्तिानापुर से उपप्लव्य नगर आकर जैसा कुछ वहाँ हुआ था, सब पाण्डवों को कह सुनाया। शत्रुघाती पाण्डव उनके वचन सुनकर और क्या करने में हमारा हित है-यह परामर्श करके युद्ध सम्बन्धी सब सामग्री जुटाने में लग गयें। इसके पश्चात हस्तिनापुर नामक नगर में युद्ध के लिये मनुष्य, घोड़े, रथ और हाथियों की चतुरंगिणी सेना ने कूच किया। इसी प्रसंग में सेना की गिनती की गयी। फिर यह कहा गया है कि शाक्शिाली राजा दुर्योधन ने दूसरे दिन प्रातःकाल से होने वाले महायुद्ध के सम्बन्ध में उलूक को दूत बनाकर पाण्डवों के पास भेजा। इसके अनन्तर इस पर्व में रथ, अतिरथी आदि के स्वरूप का वर्णन तथा अम्बा का उपाख्यान आता है। इस प्रकार माहभारत में उद्योग पर्व पाँचवा पर्व है और इसमें बहुत से सुन्दर-सुन्दर वृत्तान्त हैं। इस उद्योग पर्व में श्रीकृष्ण के द्वारा सन्धि संदेश और उलूक के विग्रह संदेश का महत्वपूर्ण वर्णन हुआ है। तपोधन महर्षियों ! विशाल बुद्धि महर्षि व्यास ने इस पर्व में एक सौ छियासी अध्याय रखे हैं और श्लोकों की संख्या छः हजार छःसौ अट्ठानवे (6698) बतायी है। के नाम से प्रसिद्ध है)। इसी पर्व में यह कथा भी है कि युधिष्ठिर के हित मे संलग्न रहने वाले निर्भय, उदार बुद्धि, अधोक्षज, भक्तवत्सल भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन की शिथिलता देख शीघ्र ही हाथ में चाबुक लेकर भीष्म को मारने के लिये स्वयं रथ से कूद पड़े और बड़े वेग से दौड़े।
साथ ही सब शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ गाण्डीवधन्वा अर्जुन को युद्ध भूमि में भगवान श्रीकृष्ण ने व्यगंय वाक्य के चाबुक से मार्मिक चोट पहँचायी। तब महाधर्नुधर अर्जुन ने शिखण्डी को सामने करके तीखे बाणों से घायल करते हुए भीष्म पितामह को रथ से गिरा दिया। जब कि भीष्म पितामह शरशय्यापर शयन करने लगे। महाभारत में यह छठा पर्व विस्तार पूर्वक कहा गया है। वेद के मर्मज्ञ विद्वान श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यास ने इस भीष्म पर्व में एक सौ सत्रह अध्याय रखे है। श्लोकों की संख्या पाँच हजार आठ सौ चौरासी (5884) कही गयी है। तदनन्तर अनेक वृत्तान्तों से पूर्ण अदभुत द्रौणपर्व की कथा आरम्भ होती है, जिसमें परम प्रतापी आचार्य द्रोण के सेनापति पद पर अभिषिक्त होने का वर्णन है। वहीं यह भी कहा गया है कि अस़्त्र-विद्या के परमाचार्य द्रौण ने दुर्योधन को प्रसन्न करने क लिये बुद्धिमान धर्मराज युधिष्ठिर को पकड़ने की प्रतिज्ञा कर ली। इसी पर्व में यह बताया गया है कि संशप्तक योद्धा अर्जुन को रणांग से दूर हटा ले गये। वहीं यह कथा भी आयी है कि ऐरावतवंशीय सुप्रतीक नामक हाथी के साथ महाराज भगदत्त भी, जो युद्ध में इन्द्र के समान थे, किरीटधारी अर्जुन के द्वारा मौत के घाट उतार दिये गये। इसी पर्व में यह भी कहा गया है कि शूरवीर बालक अभिमन्यु को, जो कभी जवान भी नहीं हुआ था और अकेला था, जयद्रथ आदि बहुत से विख्यात महारथियों ने मार डाला। अभिमन्यु के वध से कुपित होकर अर्जुन ने रणभूमि में सात अक्षौहिणी सेनाओं का संहार करके राजा जयद्रथ को भी मार डाला। उसी अवसर पर महाबाहु भीमसेन और महारथी सात्यकि धर्मराज युधिष्ठिर की आज्ञा से अर्जुन को ढूँढ़ने के लिये कौरवों की उस सेना में घुस गये, जिसकी मोर्चेबन्दी बड़े-बड़े देवता भी नहीं तोड़ सकते थे।
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