"महाभारत आदि पर्व अध्याय 35 श्लोक 1-19" के अवतरणों में अंतर
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− | == | + | ==पञ्चत्रिंश (35) अध्याय: आदि पर्व (आस्तीक पर्व)== |
− | + | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: आदि पर्व: पञ्चत्रिंश अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद</div> | |
− | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: | ||
शौनकजी ने कहा— सूतनन्दन ! सर्पों को उनकी माता से और विनता देवी को उनके पुत्र से जो शाप प्राप्त हुआ था, उसका कारण आपने बता दिया। कद्रू और विनता को उनके पति कश्यप जी से जो वर मिले थे, वह कथा भी कह सुनायी तथा विनता के जो दोनों पुत्र पक्षीरूप में प्रकट हुए थे, उनके नाम भी आपने बताये हैं। किंतु सूतपुत्र ! आप सर्पों के नाम नहीं बता रहे हैं। यदि सबका नाम बताना सम्भव न हो, तो उनमें जो मुख्य-मुख्य सर्प हैं, उन्हीं के नाम हम सुनना चाहते हैं। उग्रश्रवाजी ने कहा—तपोधन ! सर्पों की संख्या बहुत है; अतः उन सबके नाम तो नहीं कहूँगा, किंतु उनमें जो मुख्य-मुख्य सर्प हैं, उनके नाम मुझसे सुनिये। नागों में सबसे पहले शेष जी प्रकट हुए हैं। तदनन्तर वासुकि, ऐरावत, तक्षक, कर्कोटक, धनंजय, कालिय, मणिनाग, आपूरण, पिञजरक, एलापत्र, वामन नील, अनील, कल्माष, शबल, आर्यक, उग्रक, कलशपोतक, सुमनाख्य, दधिमुख, विमल पिण्डक, आप्त, कर्कोटक (द्वितीय), शंख, वालिशिख, निष्टानक, हेमगुह, नहुष, पिंगल, बाह्मकर्ण, हस्तिपद, मुद्ररपिण्डक, कम्बल, अश्वतर, कालीयक, वृत्त, संवतर्क, पह्म(प्रथम), पह्म(द्वितीय), शंखमुख, कूष्माण्डक, क्षेमक, पिण्डारक, करवीर, पुष्पदंष्ट्र, बिल्वक, बिल्वपाण्डुर, मूषकाद, शंखशिरा, पूर्णभद्र, हरिद्रक, अपराजित, ज्योतिक, श्रीवह, कौरव्य, धृतराष्ट्र, पराक्रमी शंखपिण्ड, विरजा, सुबाहु, वीर्यवान् शालिपिण्ड, हस्तिपिण्ड, पिठरक, सुमुख, कोणपाशन, कुठर, कुंजर, प्रभाकर, कुमुद, कुमुदाक्ष, तित्तिरि, हलिक, महानाग, कर्दम, बहुमूलक, कर्कर, अकर्कर, कुण्डोदर और महोदर--ये नाग उत्पन्न हुए। द्विजश्रेष्ठ ! ये मुख्य-मुख्य नाग यहाँ बताये गये हैं। सर्पों की संख्या अधिक होने से उनके नाम भी बहुत हैं। अतः अन्य अप्रधान नागों के नाम यहाँ कहेे गये हैं। तपोधन ! इन नागों की संतान तथा उन संतानों की भी संतति असंख्य है। ऐसा समझकर उनके नाम मैं नहीं कहता हूँ। तपस्वी शौकनजी ! नागों की संख्या यहाँ कई हजारों से लेकर लाखों-अरबों तकर पहुँच जाती हे। अतः उनकी गणना नहीं की जा सकती है। | शौनकजी ने कहा— सूतनन्दन ! सर्पों को उनकी माता से और विनता देवी को उनके पुत्र से जो शाप प्राप्त हुआ था, उसका कारण आपने बता दिया। कद्रू और विनता को उनके पति कश्यप जी से जो वर मिले थे, वह कथा भी कह सुनायी तथा विनता के जो दोनों पुत्र पक्षीरूप में प्रकट हुए थे, उनके नाम भी आपने बताये हैं। किंतु सूतपुत्र ! आप सर्पों के नाम नहीं बता रहे हैं। यदि सबका नाम बताना सम्भव न हो, तो उनमें जो मुख्य-मुख्य सर्प हैं, उन्हीं के नाम हम सुनना चाहते हैं। उग्रश्रवाजी ने कहा—तपोधन ! सर्पों की संख्या बहुत है; अतः उन सबके नाम तो नहीं कहूँगा, किंतु उनमें जो मुख्य-मुख्य सर्प हैं, उनके नाम मुझसे सुनिये। नागों में सबसे पहले शेष जी प्रकट हुए हैं। तदनन्तर वासुकि, ऐरावत, तक्षक, कर्कोटक, धनंजय, कालिय, मणिनाग, आपूरण, पिञजरक, एलापत्र, वामन नील, अनील, कल्माष, शबल, आर्यक, उग्रक, कलशपोतक, सुमनाख्य, दधिमुख, विमल पिण्डक, आप्त, कर्कोटक (द्वितीय), शंख, वालिशिख, निष्टानक, हेमगुह, नहुष, पिंगल, बाह्मकर्ण, हस्तिपद, मुद्ररपिण्डक, कम्बल, अश्वतर, कालीयक, वृत्त, संवतर्क, पह्म(प्रथम), पह्म(द्वितीय), शंखमुख, कूष्माण्डक, क्षेमक, पिण्डारक, करवीर, पुष्पदंष्ट्र, बिल्वक, बिल्वपाण्डुर, मूषकाद, शंखशिरा, पूर्णभद्र, हरिद्रक, अपराजित, ज्योतिक, श्रीवह, कौरव्य, धृतराष्ट्र, पराक्रमी शंखपिण्ड, विरजा, सुबाहु, वीर्यवान् शालिपिण्ड, हस्तिपिण्ड, पिठरक, सुमुख, कोणपाशन, कुठर, कुंजर, प्रभाकर, कुमुद, कुमुदाक्ष, तित्तिरि, हलिक, महानाग, कर्दम, बहुमूलक, कर्कर, अकर्कर, कुण्डोदर और महोदर--ये नाग उत्पन्न हुए। द्विजश्रेष्ठ ! ये मुख्य-मुख्य नाग यहाँ बताये गये हैं। सर्पों की संख्या अधिक होने से उनके नाम भी बहुत हैं। अतः अन्य अप्रधान नागों के नाम यहाँ कहेे गये हैं। तपोधन ! इन नागों की संतान तथा उन संतानों की भी संतति असंख्य है। ऐसा समझकर उनके नाम मैं नहीं कहता हूँ। तपस्वी शौकनजी ! नागों की संख्या यहाँ कई हजारों से लेकर लाखों-अरबों तकर पहुँच जाती हे। अतः उनकी गणना नहीं की जा सकती है। | ||
− | {{लेख क्रम |पिछला=महाभारत | + | {{लेख क्रम |पिछला=महाभारत आदि पर्व अध्याय 34 श्लोक 20-26|अगला=महाभारत आदि पर्व अध्याय 36 श्लोक 1-17}} |
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
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०७:३६, २७ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण
पञ्चत्रिंश (35) अध्याय: आदि पर्व (आस्तीक पर्व)
शौनकजी ने कहा— सूतनन्दन ! सर्पों को उनकी माता से और विनता देवी को उनके पुत्र से जो शाप प्राप्त हुआ था, उसका कारण आपने बता दिया। कद्रू और विनता को उनके पति कश्यप जी से जो वर मिले थे, वह कथा भी कह सुनायी तथा विनता के जो दोनों पुत्र पक्षीरूप में प्रकट हुए थे, उनके नाम भी आपने बताये हैं। किंतु सूतपुत्र ! आप सर्पों के नाम नहीं बता रहे हैं। यदि सबका नाम बताना सम्भव न हो, तो उनमें जो मुख्य-मुख्य सर्प हैं, उन्हीं के नाम हम सुनना चाहते हैं। उग्रश्रवाजी ने कहा—तपोधन ! सर्पों की संख्या बहुत है; अतः उन सबके नाम तो नहीं कहूँगा, किंतु उनमें जो मुख्य-मुख्य सर्प हैं, उनके नाम मुझसे सुनिये। नागों में सबसे पहले शेष जी प्रकट हुए हैं। तदनन्तर वासुकि, ऐरावत, तक्षक, कर्कोटक, धनंजय, कालिय, मणिनाग, आपूरण, पिञजरक, एलापत्र, वामन नील, अनील, कल्माष, शबल, आर्यक, उग्रक, कलशपोतक, सुमनाख्य, दधिमुख, विमल पिण्डक, आप्त, कर्कोटक (द्वितीय), शंख, वालिशिख, निष्टानक, हेमगुह, नहुष, पिंगल, बाह्मकर्ण, हस्तिपद, मुद्ररपिण्डक, कम्बल, अश्वतर, कालीयक, वृत्त, संवतर्क, पह्म(प्रथम), पह्म(द्वितीय), शंखमुख, कूष्माण्डक, क्षेमक, पिण्डारक, करवीर, पुष्पदंष्ट्र, बिल्वक, बिल्वपाण्डुर, मूषकाद, शंखशिरा, पूर्णभद्र, हरिद्रक, अपराजित, ज्योतिक, श्रीवह, कौरव्य, धृतराष्ट्र, पराक्रमी शंखपिण्ड, विरजा, सुबाहु, वीर्यवान् शालिपिण्ड, हस्तिपिण्ड, पिठरक, सुमुख, कोणपाशन, कुठर, कुंजर, प्रभाकर, कुमुद, कुमुदाक्ष, तित्तिरि, हलिक, महानाग, कर्दम, बहुमूलक, कर्कर, अकर्कर, कुण्डोदर और महोदर--ये नाग उत्पन्न हुए। द्विजश्रेष्ठ ! ये मुख्य-मुख्य नाग यहाँ बताये गये हैं। सर्पों की संख्या अधिक होने से उनके नाम भी बहुत हैं। अतः अन्य अप्रधान नागों के नाम यहाँ कहेे गये हैं। तपोधन ! इन नागों की संतान तथा उन संतानों की भी संतति असंख्य है। ऐसा समझकर उनके नाम मैं नहीं कहता हूँ। तपस्वी शौकनजी ! नागों की संख्या यहाँ कई हजारों से लेकर लाखों-अरबों तकर पहुँच जाती हे। अतः उनकी गणना नहीं की जा सकती है।
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